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एश‍ियाई खेलों में फिर महिला खिलाड़‍ियों ने लहराया परचम

एशियाई खेलों में एक बार फिर महिला खिलाड़‍ियों ने अपना जबरदस्‍त प्रदर्शन दिया. भारत कुल 57 पदकों के साथ 8वें स्थान पर रहा. इन 57 पदकों में महिलाओं ने 28 पदक जीतते हुए पुरुषों को बराबर की टक्कर दी. भारत ने कुल 11 स्वर्ण पदक जीते.

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सरिता देवी
सरिता देवी

एशियाई खेलों में एक बार फिर महिला खिलाड़‍ियों ने अपना जबरदस्‍त प्रदर्शन दिया. भारत कुल 57 पदकों के साथ 8वें स्थान पर रहा. इन 57 पदकों में महिलाओं ने 28 पदक जीतते हुए पुरुषों को बराबर की टक्कर दी. भारत ने कुल 11 स्वर्ण पदक जीते.

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यहां भी महिलाओं ने लगभग बराबरी की टक्कर देते हुए 5 पदक अपने नाम किये. ये संख्या तब और बड़ी लगने लगती है जब हम ये देखते हैं कि पुरुष खिलाड़ियों के मुकाबले महिलाओं का छोटा दल भेजा जाता है. भारत में खेलों के प्रति यूं ही ज्यादा जागरुकता नहीं दिखती ऐसे में महिला खिलाड़ियों के लिए चुनौती काफी बढ़ जाती है. ज्यादातर महिला खिलाड़ी छोटे शहरों और गांवों से ताल्लुक रखती हैं, जिन इलाकों में शिक्षा जैसी बुनियादी चीजों तक के लिए लड़कियों को संघर्ष करना पड़ता हो वहां से खेलों मे करियर बनाना किसी सपने से कम नहीं है.

सबसे ज्यादा मेडल देने वाले राज्य हरियाणा में महिलाओं की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लिंग अनुपात में हरियाणा में प्रति हजार पुरुषों के मुकाबले सिर्फ 879 महिलाएं है. देश भर में यह आंकड़ा प्रति हजार पुरुषों पर 940 का है. भारतीय महिलाओं के पदक संघर्ष की एक ऐसी दास्तान है, जिसे सिर्फ आंकड़ों के सहारे नहीं जाना जा सकता. हरियाणा की ही बात लीजिए महिलाओं को शिक्षा जैसी बुनियादी चीज हासिल करने के लिए भी जूझना पड़ता है. 2011 के सर्वे के मुताबिक जहां राज्य में 84 फीसदी पुरुष साक्षर हो चुके हैं वहीं केवल 56 फीसदी महिलाएं साक्षर हो पाई है.

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तीन बच्चों की मां मैरीकॉम के संघर्ष से सभी वाकिफ है. भारतीय बॉक्सर सरिता देवी भी एक बच्चे की मां है. हाल ही में अपना दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा था कि उनका दो साल का बेटा उन्हें नहीं पहचानता, क्योंकि वे बॉक्सिंग की प्रैक्टिस के चलते उसे समय नहीं दे पाती थीं. इन महिला खिलाड़ियों की आर्थिक हालत भी कोई बहुत बेहतर नहीं होती. इसका अंदाजा आप इसी तथ्य से लगाइए कि बॉक्सिंग में बेईमानी का शिकार हुई सरिता देवी को निर्णायकों के फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए लगभग 30 हजार रुपये देने थे. इतने पैसे भी उनके पास नहीं थे और एक पत्रकार से पैसे उधार लेने पड़े.

सरिता के मुताबिक, 'मैं अपने परिवार से दूर रही और बहुत मेहनत की, लेकिन एक खिलाड़ी का दर्द एक खिलाड़ी ही जान सकता है. किसी अफसर ने मेरी मदद नहीं की, लेकिन भारत के लिए कुर्बानी देकर मैं खुश हूं.' हालांकि इस पूरे विवाद में सरिता को ही झुकना पड़ा और बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी.

इन एशियाई खेलों को इस बात के लिए भी याद रखना चाहिए कि तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी भारतीय महिला खिलाड़ियों ने जो पा लिया है वो अतुलनीय है. चीन जैसा देश भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा राशि खेल पर खर्च करता है. खेलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी वो हमसे मीलों आगे है. इसलिए जब आप चीन के मुकाबले भारत के पदकों की तुलना करें तो भारत सरकार की खेलों के प्रति तंगदिली को भी याद कर लीजिएगा.

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फिलहाल तो बधाई दीजिए इन महिलाओं को जिन्होंने भारत का नाम पूरी दुनियां में रौशन कर दिया है. इन्हें जरूरत है सम्मान और समान अवसरों की. इस मुश्किल दौर में जब भारतीय महिलाएं पुरुषों को बराबरी की टक्कर दे रही हैं तो जरा सोचिए अगर इन्हें जरूरी सुविधा और प्रोत्साहन दिया जाए तो ये क्या कुछ नहीं हासिल कर सकती.

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