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जीत से गदगद महिला हॉकी टीम कोच बोले- हर टूर्नामेंट में चाहिए मेडल

महिला टीम के साथ हरेंद्र का बतौर कोच यह पहला टूर्नामेंट था. उन्होंने जीत के बाद काकामिगहरा से न्यूज एजेंसी भाषा को दिए इंटरव्यू में कहा, मैं इस फलसफे को नहीं मानता कि जीत हार से ज्यादा अहम भागीदारी है. मुझे इस टीम से हर टूर्नामेंट में पदक चाहिये. हरेंद्र बोले कि मैं एक जीत से संतुष्ट होने वालों में से नहीं हूं.

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महिला हॉकी टीम (फाइल फोटो)
महिला हॉकी टीम (फाइल फोटो)

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पहले भारतीय महिला क्रिकेट टीम और अब महिला हॉकी टीम ने अच्छा प्रदर्शन कर देश का नाम रोशन किया है. लेकिन अब देश की उम्मीदें भी लगातार उनसे बढ़ती जा रही हैं. पिछले साल जूनियर पुरूष टीम को विश्व कप दिलाने के बाद भारतीय महिला हाकी टीम को 13 बरस बाद एशिया कप जिताने के बावजूद हरेंद्र सिंह संतुष्ट होने वाले कोचों में से नहीं है और उनका कहना है कि इस टीम से अब उन्हें हर टूर्नामेंट में पदक चाहिये.

पिछले साल दिसंबर में लखनऊ में जूनियर टीम ने हरेंद्र के मार्गदर्शन में वर्ल्डकप जीता और अब महिला टीम ने 2004 के बाद पहली बार एशिया कप अपने नाम किया है. आपको बता दें कि जापान के काकामिगहरा में खेले गए टूर्नामेंट के फाइनल में भारत ने अपने से बेहतर रैंकिंग वाली चीन की टीम को पेनल्टी शूटआउट में हराया.

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महिला टीम के साथ हरेंद्र का बतौर कोच यह पहला टूर्नामेंट था. उन्होंने जीत के बाद काकामिगहरा से न्यूज एजेंसी भाषा को दिए इंटरव्यू में कहा, मैं इस फलसफे को नहीं मानता कि जीत हार से ज्यादा अहम भागीदारी है. मुझे इस टीम से हर टूर्नामेंट में पदक चाहिये. हरेंद्र बोले कि मैं एक जीत से संतुष्ट होने वालों में से नहीं हूं.

क्या दिया था चक दे इंडिया वाला भाषण?

जब उनसे पूछा गया कि फाइनल मैच से पहले क्या उन्होंने चक दे इंडिया जैसा कोई 70 मिनट वाला भाषण टीम को दिया था, हरेंद्र ने ना में जवाब दिया. उन्होंने कहा कि मैं चक दे इंडिया का बड़ा फैन नहीं हूं. मैंने कोई 70 मिनट वाली स्पीच नहीं दी लेकिन इतना जरूर कहा कि आपने पदक तो पक्का कर लिया है लेकिन इसका रंग आपको तय करना है.

कोच ने कहा कि भारतीय खिलाड़ी स्वर्ण के लिये ही खेलेंगी. खिताबी जीत का उनके परिवारों के लिये क्या महत्व है , यह मैं जानता हूं क्योंकि अधिकांश खिलाड़ी गरीब घरों से आई हैं.

उन्होंने कहा कि उन्होंने टीम को प्रतिद्वंद्वी की रैंकिंग से नहीं घबराने का हौसला दिया था. हरेंद्र बोले कि जब मैं लड़कियों की टीम का कोच बना तो सबसे ज्यादा खुश मेरी बेटी ही थी. वह आज मेरे साथ नहीं थी लेकिन इन 18 लड़कियों ने मुझे गले लगकर बधाई दी तो गौरवान्वित पिता की तरह महसूस हुआ. यही मेरे लिये सबसे बड़ा जश्न था.

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