इंडियन प्रीमियर लीग स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी मामले की जांच कमेटी पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. बीसीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट से मामले की जांच जस्टिस मुकुल मुद्गल कमेटी से नहीं कराने की गुजारिश की. इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने एन श्रीनिवासन और 12 क्रिकेटरों के खिलाफ जांच के लिए कमेटी के गठन पर फैसला सुरक्षित रख लिया.
न्यायाधीश एके पटनायक की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह बताए जाने के बाद कि न्यायाधीश मुकुल मुद्गल ने इस समिति की अध्यक्षता की इच्छा जाहिर की है, न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखने की बात कही. मुद्गल ने खिलाड़ियों और श्रीनिवासन के खिलाफ जांच की इच्छा जाहिर की है.
सीनियर काउंसिल गोपाल सुब्रमण्यम ने अदालत को बताया कि मुद्गल ने जांच दल की अगुवाई स्वीकार करते हुए यह भी कहा है कि वह चाहते हैं कि इस काम में सीबीआई के पूर्व निदेशक एमएल शर्मा और दो पुलिसकर्मी उनकी मदद करें. एक पुलिसकर्मी चेन्नई पुलिस और एक दिल्ली पुलिस का है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पिछली सुनवाई के दौरान यह जानना चाहा था कि क्या मुद्गल इस नई जांच समिति का प्रमुख बनने को तैयार हैं. बीसीसीआई ने हालांकि इस जांच समिति का विरोध किया है. बीसीसीआई वकील की दलील है कि मुद्गल की जांच के आधार पर ही श्रीनिवासन और खिलाड़ियों के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं, ऐसे में अगर इस मामले की नए सिरे से जांच होती है तो वह किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की जानी चाहिए.
जस्टिस पटनायक बीसीसीआई की इस दलील से प्रभावित नहीं दिखे और कहा कि इसे लेकर न्यायालय ही कोई फैसला करेगा और फिलहाल अपना फैसला सुरक्षित रखते हैं.
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर मुद्गल ने आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी मामले की जांच की थी और न्यायालय के सामने पेश की गई अपनी रिपोर्ट में श्रीनिवासन सहित कुल 18 लोगों को आरोपी बनाया था.
इसके बाद न्यायालय ने श्रीनिवासन को कहा था कि जब तक इस मामले की जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक वह बीसीसीआई प्रमुख नहीं बने रह सकते. न्यायालय के आदेश पर श्रीनिवासन को अपना पद छोड़ना पड़ा था और न्यायालय के ही निर्देशक पर पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर को बीसीसीआई और आईपीएल-7 का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया.