आसमान में एक अजीब-सी अधीरता छाई है, न जाने एक सप्ताह बाद ओलंपिक में लंदन का भाग्य कैसी करवट लेगा. जैसे ही जुबली लाइन ट्रेन अपने अंतिम पड़ाव, स्ट्रैटफोर्ड, पर पहुंचती है, लोगों का हुजूम ईस्ट लंदन के पुनः जीवंत हो उठे माहौल में डूब जाने के लिए उतावला हो बाहर उमड़ पड़ता है.
आप जैसे ही स्टेशन से बाहर निकलते हैं, आप खुद को नए वेस्ट फील्ड मॉल में पाएंगे, जहां चमकती टी-शर्ट पहने और लंबी प्लास्टिक साइन (जिसका नाम लॉलीपॉप है) हाथों में लिए ओलंपिक स्वयंसेवकों के छोटे-छोटे समूह आपकी मदद के लिए तत्पर नजर आएंगे; इसके अतिरिक्त आपको जगहक्वजगह पर साइनबोर्ड नजर आएंगे जो धातु और स्टील से बने क्वीन एलिजाबेथ पार्क की ओर जाने के लिए आपका मार्गदर्शन करेंगे जो महज दस मिनट की दूरी पर है पर जनाब, यह दूरी घनघोर बारिश में तय होगी या धूप की किरणों में, यह तो आपकी किस्मत ही तय करेगी.
अगर ईस्ट एंड जाने के लिए आप ट्यूब (मेट्रो ट्रेन) की बजाए बस लेते हैं तो जैसे ही टावर ब्रिज से गुजरेंगे, लंदन की सारी तड़क-भड़क सादगी में तब्दील होने लगेगी. ऊंची-ऊंची इमारतों की जगह छोटी इमारतें और मकान नजर आने लगेंगे और दुकानों में विविध नस्लीय समूहों की झलक दिखने लगेगी. यह वाकई किसी अन्य शहर-सा ही दिखता है, लेकिन पिछली एक सदी से लंदन के इस भाग में रहने वाले लोगों ने बिना किसी प्रतिरोध 'आउटकास्ट' का लेबल अपना रखा है.
हिंसा की स्याह लकीरें धुल चुकी हैं पर गरीबी, दमन और अविश्वास की किरचें अभी भी यहां के माहौल पर तारी हैं जो कभी औद्योगिक कचरे का ढेर हुआ करता था. लंदन के इस मूल अन्न उत्पादक क्षेत्र ने औद्योगीकरण की राह पकड़ ली थी और ली नदी से लगे लहलहाते उपजाऊ खेतों की हरियाली से सजी-संवरी जमीन में कारखानों, रासायनिक संयत्रों और मशीनरी का शोर और धुंआ भरने लगा था. इस तरह शुरू हुआ था मलिन गर्द भरे माहौल के साथ ईस्ट लंदन के रिश्ते का सफर.
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इसे पूरी तरह से रौंद दिया गया था, फिर दशकों बाद भी कम लागत से बनी झेंपड़ियों में अतीत की परछाइयां डोलती हुई नजर आती हैं. एक ऐसी जगह जिसका जॉर्ज ऑरवेल और मार्टिन एमिस के उपन्यासों में खूब व्यंगात्मक चित्रण किया गया है. यह कुख्यात जैक द रिपर के निवास स्थान के रूप में सबसे ज्यादा जाना गया-यह एक ऐसा मिथक बन गया है जिसे पर्यटन के नजरिए से लोकप्रियता मिली.
लेकिन जिनका घर यहां है उनके लिए ये सारी रूखी और व्यंगात्मक बातें कठोर वास्तविकता हैं. उनके लिए लंदन का मतलब खुला आसमान और निम्न आय वर्ग के मकान हैं.
इस सियाह अतीत के बावजूद ओलंपिक की चुनौती का सामना करने के लिए ईस्ट एंड ने पूरी शिद्दत के साथ 2005 से ही अपनी भूमिका की तैयारी शुरू कर दी थी जब लंदन ने पेरिस के मुकाबले ओलंपिक खेलों की बोली जीत ली. यही एकमात्र दिशा थी जिस ओर यह शहर विकास कर सकता था.
तब से लगभग 7.3 अरब पाउंड (लगभग 72,789 करोड़ रु.) पांच क्षेत्रों-न्यूहैम, टावर हैमलेट, हैक्नी, ग्रीनविच और वाल्टहैम फॉरेस्ट-को 'सस्टेनेबल जेंट्रिफिकेशन' के लिए दिया जा चुका है. एक ओर जहां इन सारे प्रयासों (और निवेश) का मकसद यही है कि इस जगह को गरिमापूर्ण रूप दिया जाए, वहीं कुछ बेहद चिंताजनक मामले हैं.
आइरिश, यहूदी, बांग्लादेशी और बाद में ईस्ट यूरोपियंस ने 1960 के दशक में ईस्ट एंड को अपना शरणस्थल बनाया था, क्योंकि उनके पास कोई बेहतर विकल्प नहीं था. यह जगह उन्हें लंदन में रहते हुए भी लंदन की नजरों से परे एक आश्रय दे रही थी जिसके लिए उन्हें कोई बड़ी कीमत नहीं चुकानी पड़ रही थी. उनके लिए शैवाल भरी नदी ली के दलदली इलाके का खूबसूरत इमारतों, जगमगाती दुकानों और एक विशाल सांस्कृतिक क्लब से सजे हुए शहर में बदलना एक अद्भुत अनुभव है जिसके पीछे एक दशक लंबी प्रक्रिया जुड़ी हुई है.
उन्होंने स्ट्रैटफोर्ड के पश्चिमी इलाके के प्रदूषित और कम मूल्य वाले खेतों के 740 एकड़ क्षेत्र में विकसित ओलंपिक स्टेडियम को देखा है. वहां और भी बदलाव हुए हैं. स्ट्रैटफोर्ड स्टेशन जो हाल तक असुरक्षित माना जाता था, आज देश-विदेश से आने वाले लाखों लोगों के लिए 27 जुलाई से शुरू होने वाले ओलंपिक खेलों को देखने का प्रवेश द्वार बनने वाला है. यह लंदन से पेरिस जाने वाली अत्यंत तेज गति वाली यूरोस्टार लाइन की ट्रेनों का पड़ाव भी बन गया है.
2.5 वर्ग किमी में फैले ओलंपिक पार्क में लगभग 28,000 नए घर होंगे, जिनमें से ज्यादातर बाद में स्थानीय लोगों के लिए कम लागत के उपयोगी आवास में बदल दिए जाएंगे. इस जगह पर ब्रिटेन का सबसे बड़ा शहरी पार्क विकसित किया गया है जिसमें 3,00,000 जलीय पौधे, 2,000 पेड़ और ली से लगा पांच मील का क्षेत्र पहले की तरह खूबसूरत बना दिया गया है.
लंदन लिगेसी डेवलपमेंट कॉर्पोरव्शन फॉर वेन्यूज के निदेशक पीटर ट्यूडर का कहना है, ''लंदन को ओलंपिक खेलों के आयोजन का अधिकार इस अभाव और बदहाली से ग्रस्त क्षेत्र के लिए विकास का संदेश लेकर आया है. एक विरासत को सुनिश्चित करने की हमारी रणनीति में ओलंपिक पार्क के स्वरूप और निर्माण को सबसे ज्यादा अहमियत दी गई थी.''
करीब 20 लाख टन प्रदूषित मिट्टी को साफ कर, फिर से उपयोगी बनाकर दलदली इलाके को हरियाली भरी आकर्षक जगह में बदल दिया गया है. औद्योगिक कचरे से लो-कार्बन कंक्रीट बनाकर और बचे हुए गैस पाइपों का इस्तेमाल कर 80,000 सीटों वाला स्टेडियम बनाया गया है जो ग्रीन कंस्ट्रक्शन का मॉडल माना जा रहा है.
यूनाइटेड किंगडम ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंट के प्रबंध निदेशक सर ऐलेन कॉलिंस कहते हैं, ''हम विचार कर रहे हैं कि जब खेल खत्म हो जाएंगे तो उसके बाद क्या किया जाए.'' ऐसी योजना है कि स्टेडियम को फुटबॉल टीम के उपयोग के लिए तैयार कर दिया जाए और यहां के निवासी यह आशा कर सकते है कि जाहा हदीद का तैयार किया गया एक्वेटिक सेंटर कम्युनिटी पूल बन जाए.
पिछले सात सालों से जहां सारा ध्यान निर्माण, मलबे और आने वाले ओलंपिक खेलों पर टिका था, वहीं यहां के निवासी अपनी एक अलग विशिष्ट उपसंस्कृति का विकास करने में व्यस्त थे. कोई भी उस खास परिवर्तनकारी दिन के बारे में नहीं बता सकता जब एक अनजाना-सा, बेकार सा ईस्ट ऐंड अपने बेमानी चोले से निकल कर आमूल बदलाव के साथ जगमगाता, प्रदीप्त रूप लेकर सामने खड़ा हो गया. आज इसके संवरे हुए मनोहारी रूप ने अभिनेता रैल्फ फियेंस और अभिनेत्री कीरा नाइट्ली जैसी हस्तियों को अपनी ओर इस कदर आकर्षित किया कि उन्होंने यहां अपना घर बना लिया है. उनके इस इलाके में घर बनाने से इसका मान बढ़ा है.
आम संगीत उत्सवों से लेकर नए प्रयोग करने वाले बहुसांस्कृतिक शेफों, फूहड़ दीर्घाओं या सीमाहीन स्वरूपों और कला तक ईस्ट एंड एक मौलिक और ऊर्जावान रूप में सामने आया है जिसके सामने लंदन भी फीका हो गया है. दिन के दौरान जहां लोग अपनी पसंद की चीजों की तलाश में बुटिक स्टोर्स में घूम रहे होते हैं, वहीं रात उतरते ही मौज-मस्ती करने वालों का समूह यहां की सड़कों और गलियों को नया पार्टी वेन्यू बनाकर आनंद मना रहा होता है.
आने वाले कुछ ही सप्ताह में ओलंपिक खेलों का समापन हो जाएगा, लेकिन ईस्ट एंड ने जो एक नई आवाज पाई है उसके आरोही स्वर की तान अब हर तरफ गूंजने वाली है और उसके साथ वह बुनियादी ढांचे की विरासत भी मशहूर होने वाली है जो ओलंपिक खेल अपने पीछे छोड़कर जाने वाले हैं. इन सबका न्यूयॉर्क की तर्ज पर तैयार ईस्ट एंड विलेज के वजूद पर एक गहरा और दीर्घकालिक प्रभाव रहने वाला है जिसने अपने अंदर कई जातीय समूहों को समेट रखा है.