कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में भारत ने निसंदेह बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की हों, लेकिन जब बात विदेशी सरजमीं की होती है तो आंकड़ें कुछ और ही बयां करते हैं. 2007 में टी-20 विश्व कप जीतने से लेकर 2011 में वनडे का विश्व चैंपियन बनना, इसके अलावा टेस्ट क्रिकेट की नंबर वन टीम का तमगा पाना, ये सारे यादगार लम्हें माही की कप्तानी में ही आए पर इन विदेशी दौरों में कुछ ऐसा भी होता रहा जो कैप्टन कूल के इस शानदार करियर पर बट्टा लगाता है.
इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के दौरों की बात करें तो मानो माही की चमक फीकी पड़ जाती है. अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2011 वर्ल्ड कप में शानदार जीत के बाद भारत ने विदेशी जमीन पर अब तक कुल 10 टेस्ट मैच खेले हैं जिनमें से उन्हें 9 में हार का सामना करना पड़ा.
एक सफल कप्तान की परिभाषा क्या होती है इसको लेकर हर किसी के अलग-अलग विचार हो सकते हैं, लेकिन कायमाबी का सही आकलन तो विदेश में आपके प्रदर्शन को परखने के बाद ही होगा. धोनी का रिकॉर्ड भारत में बेहद ही शानदार है, लेकिन जब वे बाहर जाते हैं तो उनके निजी प्रदर्शन के साथ-साथ टीम का परफॉर्मेंस भी गोते खाने लगता है. धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने अपने घर में 30 में से 21 टेस्ट मैचों में जीत दर्ज की, सिर्फ 3 हारे और 6 मैच ड्रा रहे. लेकिन जैसे ही विदेशी धरती की बात आती है, उनकी सफलता का ग्राफ काफी नीचे चला जाता है.
माही की अगुवाई में भारत ने विदेश में कुल 21 मैच खेले हैं जिसमें सिर्फ 5 मैचों में भारत को जीत नसीब हुई, 10 हारे और 6 मैच ड्रा रहे. इन आंकड़ों से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि विदेश में माही का जादू बिलकुल भी नहीं चला है. एक दिवसीय विश्व कप जीतने के बाद भारत का विदेशी धरती पर प्रदर्शन और भी लचर हो गया है, अब तक खेले गए 10 टेस्ट मैचों में भारत महज एक मैच ड्रा करा सका और बाकी 9 में उसे मुंह की खानी पड़ी. ऐसे में धोनी की टेस्ट कप्तानी पर सवाल उठना लाजमी है.