भारत के महान धावक मिल्खा सिंह का एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद शुक्रवार को निधन हो गया. मिल्खा सिंह के नाम 400 मीटर का राष्ट्रीय रिकॉर्ड 38 साल तक रहा. यह रिकॉर्ड उन्होंने 1960 के रोम ओलंपिक में बनाया, जहां वह सेकेंड के दसवें हिस्से से पदक से चूक गए थे. 1998 में परमजीत सिंह (45.70s) ने मिल्खा का यह रिकॉर्ड तोड़ा था. मिल्खा ने भारत के लिए कई पदक जीते, लेकिन रोम में चौथे स्थान पर रहना उनकी बड़ी उपलब्धि थी. क्योंकि ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में भारतीय खिलाड़ियों का ओलंपिक में प्रदर्शन काफी खराब रहा है. कोई भी भारतीय एथलीट ओलंपिक खेलों में अबतक पदक नहीं जीत सका है.
मिल्खा सिंह के अलावा गुरबचन सिंह रंधावा, श्रीराम सिंह, पीटी उषा, अंजू बॉबी जॉर्ज और कृष्णा पूनिया ही ओलंपिक के ट्रैक एंड फील्ड के फाइनल में पहुंच पाए हैं. गुरबचन रंधावा ने 1964 के टोक्यो ओलंपिक में 110 मीटर हर्डल्स में पांचवां स्थान हासिल किया था. इसके बाद श्रीराम सिंह 1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक के फाइनल में पहुंचे. लेकिन वह 1:45.77 का समय निकाल कर सातवें स्थान पर रहे.
1984 के लॉस एंजेलिस ओलंपिक में पीटी उषा महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ के फाइनल मुकाबले में पहुंचीं. मिल्खा सिंह की तरह वो भी ओलंपिक पदक जीतने से सेकेंड के सौवें हिस्से से चूक गई थीं. 2004 के एथेंस ओलंपिक में अंजू बॉबी जॉर्ज ने लंबी कूद के फाइनल में जगह बनाई थी. फाइनल में अंजू 6.83 मीटर जंप लगाकर छठे स्थान पर रही थीं. 2007 में अमेरिका की मरियन जोन्स को डोपिंग आरोपों के कारण अयोग्य घोषित किए जाने के बाद अंजू को 5वां स्थान दिया गया था. आखिरी बार 2012 के लंदन ओलंपिक में कृष्णा पूनिया डिस्कस थ्रो के फाइनल में पहुंची थीं. फाइनल में पूनिया 63.62 मीटर दूरी तक डिस्कस थ्रो कर छठे स्थान पर रहीं.
... वो 0.1 सेकेंड का रहा मलाल
मिल्खा ने अपने करियर में 80 में से 77 रेस जीती. लेकिन उस रोम ओलंपिक को शायद ही कोई भारतीय खेलप्रेमी भूल सकता है, जब वह 0.1 सेकंड के अंतर से चौथे स्थान पर रहे. खुद मिल्खा को भी इसका ताउम्र मलाल रहा. वैसे मिल्खा रोम ओलंपिक में जीत की पक्की उम्मीद के साथ गए थे. क्योंकि 1958 के एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में कुल तीन स्वर्ण पदक जीतकर वह आत्मविश्वास से लबरेज थे. कार्डिफ राष्ट्रमंडल खेलों में मिल्खा ने तो तत्कालीन विश्व रिकॉर्ड होल्डर मेल स्पेंस को मात दे दी थी. मिल्खा रोम ओलंपिक से पहले अमेरिका के ओटिस डेविस को छोड़कर लगभग सभी प्रतिद्वंद्वियों को हरा चुके थे.
रोम में मिल्खा सिंह 400 मीटर की शुरुआती रेस की पांचवीं हीट में दूसरे स्थान पर आए. क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल में भी उनका स्थान दूसरा रहा. मिल्खा जब फाइनल मुकाबले में 'स्टेडियो ओलंपिको' में जब दौड़ रहे थे, तो वह ढाई सौ मीटर तक रेस में सबसे आगे थे. तब उन्हें लगा कि वे जरूरत से ज्यादा तेज दौड़ रहे हैं. आखिरी छोर तक पहुंचने से पहले उन्होंने पीछे मुड़कर देखना चाहा कि दूसरे धावक कहां पर हैं. इसी वजह से उनकी रफ्तार और लय टूट गई. उन्होंने उस समय का ओलंपिक रिकॉर्ड तोड़ते हुए 45.6 सेकंड का समय (इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम द्वारा स्वत: सुधारा गया 45.73 सेकेंड) तो निकाला, लेकिन एक सेकेंड के दसवें हिस्से से पिछड़कर वे चौथे स्थान पर रहे.
....वो अधूरा ख्वाब होगा पूरा?
मिल्खा सिंह का यह सपना था कि कोई भारतीय ट्रैक और फील्ड में ओलंपिक पदक जीते. मिल्खा को टोक्यो ओलंपिक में एथलीट हिमा दास से खासी उम्मीदें थीं. इस बाबत उन्होंने हिमा को तैयारी के टिप्स भी दिए थे. मिल्खा सिंह ने कहा था कि हिमा में काफी टैलेंट दिखाई दे रहा है. हालांकि हिमा अब तक ओलंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर सकी हैं. 21 जून से पटियाला में होने वाले इंडियन ग्रां प्री 4 के जरिए वह ओलंपिक कोटा हासिल कर सकती हैं.