जब किसी को खिताब जीतने की आदत पड़ जाए तो दुनिया बस देखती रह जाती है. भारत की बेटी मैरीकॉम ने एक बार फिर अपने मुक्कों का दम दिखाया. पांच बार की वर्ल्ड चैंपियन ने इस बार एशियाई खेलों में भी सुनहरा तमगा हासिल करके दिखा दिया कि वो जीतने की आदी हो चुकी हैं.
मैरी दुनिया में पहली महिला हैं, जिन्होंने छह वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीता है और वह पहली भारतीय महिला बॉक्सर हैं जिन्होंने एशियाई खेलों में गोल्ड जीता है. फ्लाईवेट वर्ग (51 किलो) में इस मुक्केबाज ने 2012 ओलंपिक खेलों में भी मेडल जीता था. मणिपुर की सुरम्य घाटियों में पैदा हुई इस शानदार खिलाड़ी ने भारत का नाम इतनी बार रौशन किया कि सभी की आंखें चकाचौंध हो जाती हैं.
जब मैरी रिंग में उतरती हैं, तो भारत का तिरंगा फहराना तय माना जाता है. लंदन ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडलिस्ट ने अपने करियर में इतने मेडल जीत लिए हैं कि अब शायद उन्हें भी याद न हो कि उनके खाते में कितने तमगे हैं. देश ही नहीं विदेश में भी वह खाली हाथ लौटने की आदी नहीं हैं.
जाहिर है इतने मेडल जीतने वाली का देश में सम्मान भी बहुत हुआ और उन्हें पद्म भूषण तक मिला. उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड भी मिल चुका है. इसके अलावा खेलों से जुड़े जितने बड़े अवॉर्ड हैं, सब उनकी झोली में आ चुके हैं.
बॉलीवुड की मशहूर एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा ने उनका किरदार सफलता से निभाकर उन्हें अमर बना दिया है. आज उन्हें देश का बच्चा-बच्चा जानता है. उनकी उपलब्धियों के गुनगाण हो रहे हैं और उनसे सारे देश को हमेशा उम्मीदें रहती हैं. एक गरीब किसान की बेटी का नाम सारी दुनिया में रौशन है.
पांच फुट दो इंच की इस बॉक्सर का माथा किसी एवरेस्ट से कम ऊंचा नहीं है. लंबाई में कम होने के कारण उन्हें विदेशी लंबी बॉक्सरों से दो-दो हाथ करने पड़ते हैं. यह बेहद कठिन होता है, लेकिन मैरीकॉम के जज़्बे को सलाम जो उसे फिर भी विजेता बनाता है. मैरीकॉम की सफलता में यह बात और भी हैरान करती है कि वह तीन बच्चों की मां हैं और अपने परिवार का पूरा ख्याल रखती हैं.
गरीबी, कठिनाइयां, कोचिंग की समस्या वगैरह सभी को मात देती हुई भारत मां की इस 31 वर्षीया बेटी ने वह कर दिखाया जो दुनिया में बहुत कम खिलाड़ियों ने किया है. देश को उस पर नाज है और अभी भी ढेर सारी उम्मीदें. लेकिन देश की एक और बेटी के साथ इंचिओन में बड़ा अन्याय हुआ. सरिता देवी को बॉक्सिंग के एक अन्य मुकाबले में बेईमानी से हरा दिया गया. टीवी रिप्ले बार-बार कह रहे हैं कि उनका प्रदर्शन शानदार रहा फिर भी उन्हें गोल्ड जीतने के मौके से वंचित करके मेजबान टीम की बॉक्सर को जिता दिया गया.
यह बहुत ही शर्मनाक है और कम से कम मेजबान टीम को शोभा नहीं देता है. खेलों के शौकीनों को याद होगा कि 1988 में किस तरह मेजबान कोरिया ने गलत तरीके से कितने मेडल जीते थे. इस बार भी यही दिख रहा है. बहरहाल भारत के लिए मैरीकॉम की जीत बहुत मायने रखती है और खेलों की दुनिया में हमारे झंडे को ऊंचा रखने में एक बड़ा प्रयास है. उनकी जीतने की आदत उन तमाम खिलाड़ियों के लिए एक संदेश है कि अगर कोई दिल से जीतना चाहे और उसमें प्रतिबद्धता है तो उसे कोई रोक नहीं सकता!