2015 क्रिकेट वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में पराजय के बाद हमने बहुत सारी प्रतिक्रियाएं देखीं. हर तरह के बयान-विचार देखने को मिले जिनमें तारीफ कम और गुस्सा ज्यादा था. जिस देश में क्रिकेट धर्म की तरह हो वहां ज़ाहिर है, यह तो होना ही था. इसके अलावा भारत की लगातार जीत के कारण भी क्रिकेट प्रेमियों के मन में यह भावना भर गई थी कि हमारी टीम यह कप जीत सकती है.
यह सही है कि हमने सात मैच ही नहीं जीते बल्कि हर मैच में प्रतिद्वंद्वी टीम को आउट किया. इससे यह विश्वास मन में घर कर गया कि हम किसी को भी हरा सकते हैं जो सच नहीं था. हम भूल गए थे कि इसी ऑस्ट्रेलिया ने हमें लगातार हराया था, टेस्ट में भी और वन डे में भी. लगातार हार के उस सिलसिले को किनारे रखते हुए धोनी ने जिस तरह से टीम को फिर से ऊर्जावान बनाया, उसे भी हम भूल गए. हम यह भी भूल गए कि वर्ल्ड कप शुरू होने के पहले तो हम स्पर्धा में कहीं थे भी नहीं.
1983 की ही तरह माना जा रहा था कि भारत जल्दी ही वापस आएगा. लेकिन धोनी की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने एक परास्त और कमज़ोर सी दिखने वाली टीम को फिर से खड़ा कर दिया. बिना किसी तरह के दबाव में आए उन्होंने अपने खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाया. उन्होंने अपने कमज़ोर पक्ष गेंदबाजी को सुधारा और तेज गेंदबाजों को कुछ कर दिखाने के लिए प्रोत्साहित किया.
तेज गेंदबाजी के लिए भारत कभी भी नहीं जाना जाता था लेकिन धोनी ने अपने गेंदबाजों पर भरोसा जताकर उनसे वह करवा लिया जो लगभग असंभव था. हमारे तेज गेंदबाज चर्चा का विषय बने और सभी की तारीफ की गई. किसी भी वर्ल्ड कप में भारत की ओर से तेज गेंदबाजों ने सबसे ज्यादा विकेट चटकाईं और इसका अंदाजा इसी से लगता है कि अकेले मोहम्मद शमी ने इस टूर्नामेंट में 17 विकेटें लीं. उमेश यादव और मोहित शर्मा ने भी कमाल कर दिया. उमेश ने तो सबसे अधिक 18 विकेट लिए जिनमें 4 ऑस्ट्रेलिया के ही थे. मोहित शर्मा को चतुराई से इस्तमाल करके धोनी ने उन्हें एक बेहतरीन गेंदबाज बना दिया. इन तीनों की सफलता का श्रेय धोनी को जाता है जिन्होंने उन पर विश्वास रखा और उनके लिए सटीक रणनीति बनाई. उन्होंने हर खिलाड़ी पर भरोसा जताया और उनके बारे में शायद ही कभी कड़वे वचन बोले हों.
यह धोनी की बेहतरीन कप्तानी और टीम वर्क का उदाहरण है कि भारत इस वर्ल्ड कप में देखते ही देखते दावेदार बन गया. धोनी ने टीम को उन ऊंचाइयों पर पहुंचाया जहां के बारे में कल्पना भी नहीं की जाती थी. इस बार भी उनका प्रयास सराहनीय रहा. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अगर कुछ महत्वपूर्ण खिलाड़ी नहीं चले तो इसमे कप्तान क्या कर सकता है. धोनी ने टीम को बुरे स्कोर से बाहर निकालने की पूरी कोशिश की और सबसे ज्यादा रन बनाए. एक कप्तान से आप और क्या उम्मीद कर सकते हैं?
धोनी ने इस टूर्नामेंट के सबसे बेहतरीन कप्तान के रूप में अपने को स्थापित किया और यह बहुत बड़ी उपलब्धि है. धोनी पर हमें गर्व होना चाहिए. खेल को खेल की भावना से खेलना चाहिए और इसे उन्माद से दूर रखना चाहिए.