scorecardresearch
 

कटक की घटना देख गांधी-मंडेला की आत्मा ऊपर से रोई होगी

भारत में क्रिकेट का खेल किसी जुनून से कम नहीं है. यहां शायद ही कोई ऐसी गली, मोहल्ला या चौराहा होगा जहां क्रिकेट की बात न होती हो. एक समय था जब क्रिकेट पर चर्चा सिर्फ बड़े-बड़े रईसों के डिनर टेबल पर हुआ करती थी. उस समय लोग वहां इस खेल के बारे में बात करना प्रतिष्ठा और सम्मान की बात समझा करते थे.

Advertisement
X
कटक की घटना देख गांधी-मंडेला की आत्मा ऊपर से रोई होगी
कटक की घटना देख गांधी-मंडेला की आत्मा ऊपर से रोई होगी

भारत में क्रिकेट का खेल किसी जुनून से कम नहीं है. यहां शायद ही कोई ऐसी गली, मोहल्ला या चौराहा होगा जहां क्रिकेट की बात न होती हो. एक समय था जब क्रिकेट पर चर्चा सिर्फ बड़े-बड़े रईसों के डिनर टेबल पर हुआ करती थी. उस समय लोग वहां इस खेल के बारे में बात करना प्रतिष्ठा और सम्मान की बात समझा करते थे.

Advertisement

समय बदला, और यह खेल बड़े लोगों के कमरों से निकलकर गली, नुक्कड़, खेत, खलिहान और गांवों तक जा पहुंचा. और तो और दीवानगी इस कदर हावी हुई कि यह सिर्फ एक खेल न रहकर धर्म बन गया.लेकिन पिछले दिनों कटक में जो हुआ उसे देखकर यही ख्याल आता है कि शायद हिंदुस्तान में अब 'धर्म' संकट में है.

अपनी न सही उन दो महापुरुषों की लाज भी न रख पाए हम
भारत और दक्षिण अफ्रीका की टीमें इन दिनों गांधी-मंडेला सीरीज खेल रही हैं. महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला दो ऐसे नाम हैं, जिन्होंने पूरे विश्व को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाया. लेकिन अफ़सोस की बात है कि जिन दो महापुरुषों के नाम पर सीरीज खेली जा रही है उन दोनों की आत्माओं को हम भारतीयों ने जबरदस्त ठेस पहुंचाया है. हार और जीत खेल का हिस्सा है. लेकिन कटक में दूसरे टी20 मैच में भारत को हारता देख दर्शकों का जैसा बर्ताव रहा वो किसी भी सूरत में काबिल-ए-क़ुबूल नहीं है. इस घटना ने दुनिया भर में भारत की किरकिरी करा दी. और इसके लिए कोई और नहीं हम खुद जिम्मेदार हैं.

Advertisement

हारे तो बोतलें, लेकिन जीते तो खिलाड़ियों पर अपने आभूषण क्यों नहीं फेंकते लोग?
कोई भी खिलाड़ी मैदान पर मैच हारने नहीं उतरता. वो चाहता है कि हर कीमत पर जीत उसे ही मिले. लेकिन ये कहां का इंसाफ है कि अगर टीम हारे तो उनपर बोतलें फेंकी जाए. टीम हारी तो आपने खिलाड़ियों पर बोतलों की बौछार कर दी. लेकिन क्या कभी किसी ने ऐसा किया है कि टीम जीती हो, और ख़ुशी में उसने अपने कीमती आभूषण उतारकर खिलाड़ियों की तरफ फेंक दिया हो? आखिर ये दोहरापन क्यों? जुनून ही दिखानी है तो फिर दोनों ही स्थितियों में दिखाई क्यों नहीं देती?

क्रिकेट की गरिमा को बनाए रखना अब हमारे लिए चुनौती
हिंदुस्तान सभ्य लोगों का देश है और क्रिकेट सज्जनों का खेल. यहां की संस्कृति कभी हिंसा या उपद्रव की इजाजत नहीं देती. लेकिन जो दाग कटक में हमने खुद के ऊपर लगाया उसे धोना भी अब हमारी ही जिम्मेदारी है.किसी ने सही कहा है कि इज्जत बनाने में सदियां गुजर जाती हैं लेकिन इज्जत गंवाने में एक पल नहीं लगता. टीम इंडिया के क्रिकेटरों ने सालों साल मेहनत कर खेल की दुनिया में भारत को एक मुकाम दिलाया, एक इज्जत दिलाई. लेकिन अफ़सोस की बात है कि हमने उन खिलाड़ियों की बरसों की मेहनत पर चंद लम्हों में पानी फेर दिया.

Advertisement
Advertisement