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अधर में लटकी कॉमनवेल्थ खेलों की तैयारी

कॉमनवेल्थ खेलों की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है लेकिन तैयारियां है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही और ये डर अब सबको सता रहा है कि अगर काम की रफ्तार यही रही तो ये बदइंतजामी खेलों के दौरान हमारी नाक न कटवा दे.

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कॉमनवेल्थ खेलों की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है लेकिन तैयारियां है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही और ये डर अब सबको सता रहा है कि अगर काम की रफ्तार यही रही तो ये बदइंतजामी खेलों के दौरान हमारी नाक न कटवा दे. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में पिछले कॉमनवेल्थ खेलों के समापन के मौके पर हिंदुस्तान ने दुनिया से वादा किया था कि दिल्ली में धमाल होगा.

कॉमनवेल्थ खेलों की तैयारियों को लेकर पहले दिसंबर 2009 का डेडलाइन सेट किया गया था जिसे बाद में बदल कर मार्च 2010 कर दिया गया. जब काम पूरा नहीं हुआ तो इसे फिर से बढ़ाकर जून 2010 किया गया. अब 31 जुलाई की नई अंतिम समय सीमा को भी बढ़ाकर 31 अगस्त कर दिया गया है. लेकिन आलम यह है कि अब भी कई स्टेडियम अधूरे हैं. सरकारी लेट-लतीफी की वजह से खेलों की तैयारिंया अधर में लटकी हुई है और आयोजकों की घटिया प्लानिंग से देश की इज्जत दांव पर लगी हुई है.

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जवाहरलाल नेहरू स्टेडियमः यह वो स्टेडियम जहां से दुनिया दिल्ली में कॉमनवेल्थ खेलों का शानदार आगाज और अंजाम देखेगी. यहां खेलों का उद्घाटन और समापन समारोह होना है. साथ ही यहां एथेलेटिक्स की सारी अहम प्रतियोगिताएं भी होना है. खेलों के दो महीने पहले इस स्टेडियम के चारो तरफ बिखरी निर्माण सामग्री मलवा मुंह बाए सवाल की तरह कि क्या वक्त रहते इस सबसे अहम स्टेडियम में काम पूरा हो पाएगा. जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम को नए सिरे से बनाने में तकरीबन एक हज़ार करोड़ रुपए फूंक दिए गए.
शुरुआती डेडलाइन के हिसाब से इस स्टेडियम को दिसंबर 2009 में ही पूरा हो जाना था, लेकिन उसके सात महीने बाद भी स्टेडियम में 15-20 फीसदी काम बाकी है.
कॉमनवेल्थ खेलों की कहानी शुरु से ही उल्टी रही है. तैयारियां भले अपने आखिरी मुकाम पर हों मगर प्लॉट अब भी नहीं बदला. खेलों के लिए सबसे अहम स्टेडियम वो होता है जहां उद्घाटन और समापन समारोह हों मगर वही स्टेडियम सबसे बाद में तैयार होगा.

यमुना स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्सः दिल्ली में हुई बारिश के बाद यमुना स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स का हाल हुआ बदहाल. 12 जुलाई को बारिश और तेज आंधी में यमुना स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स स्टेडियम की छत उड़ गई और बारिश से वुडेन फ्लोरिंग बुरी तरह खराब हो गया. हाल ये है कि स्टेडियम का प्लेयिंग फील्ड 15 अगस्त के बाद ही तैयार हो पाएगा. इस बीच इसके निर्माण की लागत 32.5 करोड़ से बढ़कर 100 करोड़ हो चुका है.

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{mospagebreak}सीरी फोर्ट स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्सः सीरीफोर्ट में भी काम अधुरा ही हो रखा है. जब मीडिया ने इस सच्चाई को जगजाहिर करने के इरादे से यहां घुसना चाहा तो मीडिया के भीतर जाने पर ही पाबंदी लगा दी गई. अंदर की बदहाली का आलम लोग देख नहीं पाएं इसलिए डीडीए ने वक्त से पहले ही स्टेडियम में सीआरपीएफ को तैनात कर दिया है. इस हिदायत के साथ कि मीडिया के लोग अंदर न जाने पाएं. गेट पर पहरा बैठाकर डीडीए ने भले ही अंदर के हालात पर पर्दा डाल दिया है, लेकिन अंदर की बात ये है काम अभी अधूरा है और इसे पूरा करने में डीडीए के अफसरों के पसीने छूट रहे हैं. यही वजह है कि डीडीए का कोई भी अफसर कैमरे पर आकर बात करने को तैयार नहीं है.

तालकटोरा स्टेडियमः यह वो स्टेडियम है जिसे लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे. 18 जुलाई को इसका उद्घाटन तक हो चुका है लेकिन हककीत ये है कि स्टेडियम में इतना काम बाकी है कि दो महीने में उसे पूरा करने में पसीने छूट जाएंगे. जो काम पूरा हो चुका है उसमें में भी खुद एनडीएमसी 18 खामियां गिनवा चुका है. मसलन, बिजलीघर के ऊपर बाथरूम, मेनगेट की कम ऊंचाई वगैरह लेकिन अबतक एक भी कमी दूर नहीं की गई. जबकि हकीकत ये है कि इनमें से कई खामियां सुरक्षा के लिए खतरनाक हैं. ऐसे में सवाल सिर्फ स्टेडियम तैयार होने का नहीं है. बड़ा सवाल ये है कि हड़बड़ी में तैयार किए गए ये स्टेडियम क्या सुरक्षा के मानकों पर खरे उतरेंगे.

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शिवाजी स्टेडियमः अंदाज़ा लगाइए कि जिस स्टेडियम में अभी पैवेलियन ही बन रहे हों, उसे किसी अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन के लिए तैयार होने में कितना वक्त लगेगा. सामान्य ज्ञान तो यही कहता है कि इसे खेलों के पहले तैयार करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन दिखता है. लेकिन आयोजकों यह दावा कर रहे हैं कि स्टेडिमय में काम तेज़ी से चल रहा है. लेकिन एनडीएमसी के दावे की हवा निकल जाती है जब यही सवाल इसे बना रहे लोगों से करने पर यह पता चलता है कि इसे पूरा करने में दो महीने और लगेंगे और अगस्त में काम पूरा होना असंभव लगता है.

{mospagebreak}खेलगांवः कॉमनवेल्थ गेम का वो प्रोजेक्ट जिस पर काम सबसे पहले शुरू हुआ था लेकिन ढाई साल बाद भी वहां काफी काम बाकी है. आलम ये है कि खिलाड़ियों के रहने के लिए फ्लैट्स तो जैसे-तैसे तैयार भी हो जाएंगे लेकिन प्रैक्टिस वेन्यू का भगवान ही मालिक है. टेक्निकल स्टाफ के रहने के लिए बनाया जा रहा स्टाफ क्वार्टर का तो अभी अधूरा ही बना है. यहां का काम पूरा करने की डेडलाइन मार्च 2010 तय की गई थी. खेलगांव को बना रही कंपनी ने अबतक 35 में से  सिर्फ 25 टावर ही डीडीए को सौंपे हैं और उनमें से भी डीडीए ने सिर्फ 2 ही टावर फरनिश करके आर्गनाइज़िंग कमेटी को दिए हैं. अब दिल्ली के उपराज्यपाल ने खेल गांव के पूरा होने की नई डेडलाइन दी है एक अगस्त. मुमकिन है कि पूरी ताकत लगाकर डीडीए खेलगांव के फ्लैट्स तैयार कर दे. लेकिन खेलगांव के साथ ही 43 करोड़ की लागत से बन रहे प्रैक्टिस वेन्यू का क्या जो तय समयसीमा से काफी पीछे चल रहा है. प्रैक्टिस वेन्यू खेलगांव का अहम हिस्सा है जिसमें खिलाड़ियों के लिए एथेलेटिक ट्रैक, स्विमिंग पूल, वेटलिफ्टिंग और कुश्ती ग्राउंड बनाए जाने हैं. इसके अलावा इसमें गेम्स विलेज में ठहरने वाले 8500 खिलाड़ियों के लिए जिम, पॉलिक्लिनिक, डायनिंग एरिया और धार्मिक स्थल भी बनाया जाना है. लेकिन इनमें से एक भी चीज अब तक बनकर तैयार नहीं हुई.
खेल गांव यानी वो जगह जहॉ खिलाड़ी सबसे पहले आकर अपना बोरिया बिस्तर रखेंगे. भले ही खेल गांव तब तक बनकर तैयार हो जाए लेकिन इसके साथ में बन रहें प्रैक्टिस वेन्यू को देखकर तो यही लगता है कि गेम्स के दौरान खिलाड़ी यहॉ पर प्रैक्टिस करने के बजाय अपने प्लैट की खिड़की से यहॉ पर चल रहे काम को ही देख पाए.
इसी तरह खेल गांव के सौंदर्यीकरण का काम किस कदर अधर में है, ये चारो तरफ बिखरा मलबा इसकी कहानी खुद बयां कर रहा है.

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कॉमनवेल्थ स्टाफ क्वार्टरः यहां अभी आधा काम बाकी है. वसंतकुंज में कॉमनवेल्थ स्टाफ़ के लिए बन रहे फ्लैट्स भी बदतर हालत में हैं. चार हज़ार फ्लैट्स रहने लायक तो दूर अभी कदम रखने लायक भी नहीं बन पाया है. काम यहां भी वक्त पर पूरा होगा इसकी उम्मीद कम ही दिखती है और अगर ऐसा हुआ तो कॉनवेल्थ खेलों के टेक्निकल स्टाफ के लिए न सिर्फ वैकल्पिक इंतज़ाम करना होगा बल्कि सुरक्षा का पूरा प्लान भी बदलना पड़ेगा.

कॉमनवेल्थ खेलों की तैयारियों से जुड़े कई प्रोजेक्ट वक्त से पिछड़ रहे हैं और यहां काम काफी जल्दबाजी में किया जा रहा है. डेडलाइन तो कब की डेड हो चुकी है, अब तो बस एक तारीख का इंतज़ार है जिस दिन स्टेडियम का काम पूरा होगा. क्योंकि अब तो काम खत्म होने और खेल शुरु होने की तारीखों के बीच इतना भी फासला नहीं बचा है कि किस एक तारीख तो डेडलाइन का नाम दिया जा सके.

{mospagebreak}जब कॉमनवेल्थ खेलों की मेजबानी की एलान हुआ तो दिल्ली वालों को उम्मीद जगी थी कि आने वाले सालों में दिल्ली की सूरत बदल जाएगी. लेकिन खेलों के आयोजन में दिन अब गिनती के बचे हैं लेकिन दिल्ली का चेहरा और बदरंग दिखाई दे रहा है. हर तरफ खुदी हुई सड़कें और बिखरा हुआ मलबा.

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पहाड़गंज बना मलबागंजः दिल्ली का पहाड़गंज इलाका जो होटलगंज के नाम से मशहूर है. यहां कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए सौंदर्यकरण के नाम पर शुरु किए गए प्रोजेक्ट्स के नाम पर ऐसी तोड़फोड़ मची कि अब यहां सांस लेना भी मुश्किल है. साल भर पहले शुरू हुए प्रोजेक्ट्स जैसे-जैसे आगे बढ़े सूरत सुधरने की बजाय और बिगड़ती चली गई. सड़क,सीवर, स्ट्रीट लाइट सब तैयारियों की भेंट चढ़ गए. अब दोबारा वो कब बनेंगे भगवान ही जानता है. हां, इस क्रम में स्थानीय कारोबारियों का बंटाधार जरूर हो रहा है.

करोल बागः यहां चौराहों से लेकर बाज़ार की गलियां तक सब खुदी पड़ी है. करोल बाग में 50 करोड़ की लागत से 22 सड़कों और 7 गलियों को दुरूस्त किया जाना था लेकिन 17 जून 2010 तक यहां केवल 14 प्रतिशत काम ही पूरा हुआ था. लेकिन अब यानि एक महीने बाद ही दिल्ली के मेयर पृथ्वीराज साहनी को जाने कौन सा जादुई चिराग हाथ लग गया कि 90 प्रतिशत तक काम पूरा होने का दावा कर रहे है.

कनॉटप्लेसः कनॉट प्लेस यानि दिल्ली का दिल. कॉमनवेल्थ गेम्स प्रोजेक्टस के तहत यहां स्ट्रीट लाइटिंग, स्ट्रीट स्केपिंग, सबवे का काम शुरु किया गया. यूं तो एनडीएमसी दावा कर रही है कि 31 अगस्त तक कनॉट प्लेस को चमका दिया जाएगा, लेकिन अंग्रेज़ो के ज़माने के इस बाज़ार में बड़े बड़े गड्ढ़े. टूटे फुटपाथ, चारों ओर फैला मलबे को देखकर ये विश्वास कर पाना मुश्किल है.

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कॉमनवेल्थ गेम्स के प्रोजेक्टस हैं या बीरबल की खिचड़ी, जो पक कर तैयार ही नही हो रहे है. साल-डेढ़ साल से चल रहे इन प्रोजेक्टस का अभी ये हाल है तो कहना मुश्किल है कि इस नई डेडलाइन तक भी ये पूरे हो पाएंगे या नही. हां अगर सरकार के हाथ अलाद्दीन का चिराग लग जाए तो शायद, उसे घिस कर दिल्ली को चमकाया जा सकता है. लेकिन सवाल सिर्फ चमकाने का नहीं है. उस चमक के साथ आने वाली परेशानियों का भी है.

{mospagebreak}प्लानिंग जिसका कोई निदान नहीं सोचा गया
पानी का इकट्ठा होना

सीएससी की वैज्ञानिक सुष्मिता का कहना है कि आने वाले दिनों में वॉटर लॉगिंग की समस्या बढ़ जाएगी. हर जगह पर पत्थर लगाने से बहने वाले पानी की मात्रा बढ़ गयी है और ड्रेनेज सिस्टम वही पुराना है. इसलिए वॉटर लॉगिंग की समस्या और ज्यादा बढ़ गयी है. उनका मानना है कि बिना किसी प्लानिंग के हर जगह पत्थर का इस्तेमाल सिर्फ वॉटर लॉगिंग को ही नहीं बढ़ाएगा अपितु शहर के वातावरण पर बेहद खराब असर भी डालेगा.

उधर भूवैज्ञानिक जीएस रुनवाल का कहना है कि पहले से तैयारी की नहीं गई. ग्रीन कवर डिवेलप किया नहीं और अब अचानक सब कुछ ढकने के लिए हर जगह पत्थर लगाए जा रहे हैं. पत्थर दिन में गर्म हो जाता है और फिर धीरे धीरे देर रात तक उस गर्मी को छोड़ता है. पत्थर के इस बेतरतीब इस्तेमाल से इन इलाकों का शाम और रात का तापमान 3-4 डिग्री तक बढ जाएगा.

कॉमनवेल्थ का मलबा
कॉमनवेल्थ के नाम पर हो रही बेहिसाब तोड़फोड़ का मलबा कहां जा रहा है इसकी भी किसी को परवाह नहीं. ये मलबा आनंद पर्वत रिज को तबाह कर रहे हैं. दिल्ली के लोग कॉमनवेल्थ खेलों को शायद कभी नहीं भूल पाएंगे. ये अलग बात है कि इनकी यादें खूबसूरत नहीं बल्कि एक जख्म की तरह होंगी और रिज को तबाह करने वाला कॉमनवेल्थ का ये मलबा इस ज़ख्म को हमेशा कुरेदता रहेगा.

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