क्रिकेट की गड़बड़ियों पर लगाम कसने के लिए बना बोर्ड खुद इतना बेलगाम हो जाएगा यह किसने सोचा था. देश के दिग्गज नेताओं से भरा बीसीसीआई श्रीनिवासन को इस्तीफे के लिए मजबूर नहीं कर पा रहा है.
सब चाहते तो हैं कि श्रीनिवासन इस्तीफा दें लेकिन बात घुमा फिराकर कर रहे हैं. राजीव शुक्ला ने भी सिर्फ इतना कहा कि श्रीनिवासन फिक्सिंग की जांच में दखल ना दें.
ये बड़ा अच्छा है. कोतवालों की बी कंपनी क्रिकेट के चमन को भरोसे का कब्रिस्तान बनाके छोड़ दे, हम दीदा फाड़कर बिकी हुई आत्माओं को दुनिया का देवता बनाएं, भरोसे के डकैत अपने ड्राइंगरूम में बैठकर डपोरशंखी की डुगडुकी पीटें और जब पुलिस चिल्लाए चोर है, चोर है तो आप कहें हमारा क्या, उनके ईमान का अल्लाह जाने.
बेलगाम हो जाने की ये इंतिहाई क्रिकेट को बर्बाद करके छोड़ दे तो छोड़ दे लेकिन बोर्ड की बेहयाई नहीं जाएगी. ये वो कंपनी है जिसकी सबसे ऊंची कुर्सी कलंक की कीलों पर टिकी हुई है. एन श्रीनिवासन ने तो जैसे ठान लिया है कि क्रिकेट रहे या जाए लेकिन वो नहीं जाएंगे. चाहे जो हो जाए.
बोर्ड न हुआ बपौती हो गई. कुछ भी हो जाए हिलेंगे नहीं. हिंदुस्तान के खेल मंत्री तक बोल रहे हैं तो क्या हुआ. क्रिकेट के मालिक हम हैं या वो. जो भी कूड़ा करना है करके जाएंगे. किसने-किसने नहीं कहा. लेकिन कुछ नहीं हुआ. ये तो अब पता चला है कि सीमेंट की कंपनी चलाने वाला आदमी वाकई पक्का होता है. इतना पक्का कि नज़र का पानी भी फिसल-फिसल जाता है.
सीबीआई तो तकदीर वाली थी, सुप्रीम कोर्ट ने तोता बना दिया. लेकिन क्रिकेट को जो श्रीनिवासन ने मुर्गा बना रखा है उसका क्या करें. हिटलर स्वर्ग या नरक जहां भी होगा अपने आपको तकदीर वाला मानता होगा जो श्रीनिवासन उनके जमाने में नहीं थे. वर्ना उसका नंबर ही नहीं आता.
अब तो यही समझ में नहीं आता है कि बीसीसीआई में बोर्ड के नाम पर है क्या. क्योंकि वहां तो एक से 10 तक श्रीनिवासन ही श्रीनिवासन हैं. बाकियों को उन्होंने या तो बुद्धू बना रखा है और नहीं तो बेचारा. जो बचता है उसमें कंट्रोल की ज़रूरत कहां बचती है.