विशेषज्ञ भले ही प्रोदुनोवा को ‘वॉल्ट ऑफ डेथ’’ मानते हों, लेकिन दीपा कर्माकर ऐसा नहीं मानतीं और उनका कहना है कि वह इस जानलेवा वॉल्ट से जुड़े खतरों के बावजूद इसे करती रहेंगी.
ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय जिम्नास्ट दीपा उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन करते हुए रियो ओलंपिक के वॉल्ट फाइनल में पहुंची और पदक से मामूली अंतर से चूकते हुए चौथे स्थान पर रहीं. दुनिया के सर्वश्रेष्ठ जिम्नास्ट ‘वॉल्ट ऑफ डेथ’ के नाम से मशहूर प्रोदुनोवा वॉल्ट करने से बचते हैं, लेकिन दीपा इसका अपवाद हैं.
‘प्रोदुनोवा करती रहूंगी’
दीपा ने रियो से यहां लौटने पर हुए अपने शानदार स्वागत के बाद कहा, ‘मैं प्रोदुनोवा करती रहूंगी, मैं इस समय किसी दूसरे वॉल्ट के बारे में नहीं सोच रही. मुझे नहीं लगता कि यह एक जानलेवा वॉल्ट है, अगर हम अभ्यास करें तो सबकुछ आसान हो जाता है, मेरे कोच ने मुझसे खूब अभ्यास कराया.’
‘प्रैक्टिस से प्रोदुनोवा बना आसान’
त्रिपुरा की खिलाड़ी के कोच बिश्वेश्वर नंदी ने कहा, ‘सब में जोखिम है, अगर आप सही से अभ्यास करें तो वह आसान बन जाता है. मैंने दीपा को इस वॉल्ट का खूब अभ्यास कराया और इस तरह प्रोदुनोवा उसके लिए आसान बन गया.’ जिम्नास्ट खिलाड़ी ने फाइनल के अपने अनुभव को याद करते हुए कहा कि प्रोदुनोवा के कारण दर्शकों ने उनके लिए खूब तालियां बजाईं.
‘ओलंपिक में मशहूर हो गई’
उन्होंने कहा, ‘मैं अपने वॉल्ट के लिए ओलंपिक में मशहूर हो गई, कुछ ने मुझे ‘प्रोदुनोवा गर्ल’ कहा तो दूसरों ने ‘दीपा प्रोदुनोवा’, फाइनल में बहुत सारे लोग मेरे लिए तालियां बजा रहे थे. मुझे लगा कि मैंने यह वॉल्ट चुनकर सही फैसला किया.’