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ज्वाला गुट्टा के निशाने पर गोपीचंद, बोलीं- उनकी वजह से नहीं मिले कई मौके

कभी भारत के बैडमिंटन सितारे रहे पुलेला गोपीचंद और ज्वाला गुट्टा टीम में साथ होते थे. दोनों ने 2004 में मिक्स्ड डबल्स में राष्ट्रीय बैडमिंटन चैम्पियनशिप का खिताब हासिल किया था.

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Jwala Gutta lashed out Gopichand (File photo)
Jwala Gutta lashed out Gopichand (File photo)

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  • मौजूदा बैडमिंटन पर खुलकर बोलीं ज्वाला
  • राष्ट्रीय कोच गोपीचंद को आड़े हाथों लिया

कभी भारत के बैडमिंटन सितारे रहे पुलेला गोपीचंद और ज्वाला गुट्टा टीम में साथ होते थे. दोनों ने 2004 में मिक्स्ड डबल्स में राष्ट्रीय बैडमिंटन चैम्पियनशिप का खिताब हासिल किया था. लेकिन पिछले कुछ वषों में दोनों के संबंधों में खटास आ गई है.

ज्वाला अक्सर पूर्व ऑल इंग्लैंड चैम्पियन गोपीचंद को निशाने पर लेती रही हैं, जो अब मुख्य राष्ट्रीय कोच हैं. भारतीय युगल सर्किट के प्रमुख नामों में शुमार ज्वाला गुट्टा अपने बैडमिंटन करियर के दौरान कई मौके गंवाने के लिए गोपीचंद को जिम्मेदार ठहराती हैं.

36 साल की ज्वाला ने इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान कहा, 'मुझे जो परेशानी भरा दौर देखना पड़ा, मानसिक पीड़ा से गुजरी... उसके लिए मैं उन्हें (गोपीचंद) जिम्मेदार ठहराती हूं. मैं मुखर हूं और मुझे इसके लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है.'

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ज्वाला ने कहा, 'मैं मानती है कि उन्होंने (गोपी) जो हासिल किया है और मुझे उनसे उम्मीदें थीं. उन्हें पता था कि मैं क्या करने में सक्षम हूं. मैं उनसे जुड़ी थी... वह मेरी क्षमता को जानते थे, इसलिए उनसे अपेक्षाएं रखना मेरे लिए स्वाभाविक था.'

उन्होंने कहा, 'अगर आप गौर करें तो गोपी के खेलने के दिनों में दूसरे राज्यों के खिलाड़ी भी उभरते थे. एक समय था, जब देश के विभिन्न हिस्से से शीर्ष खिलाड़ी आते थे. लेकिन पिछले 10-12 वर्षों से केवल हैदराबाद के खिलाड़ी या तेलुगू खिलाड़ी ही आगे बढ़ते दिखाई देते हैं. यदि कोई खिलाड़ी एक विशेष एकेडमी से है, तभी उसे मान्यता मिलेगी.'

2011 में विश्व चैम्पियनशिप में अश्विनी पोनप्पा के साथ भारत के लिए पहला युगल पदक जीतने में वाली ज्वाला ने कहा, 'अगर भारत पदक जीतता है, तो यह गोपीचंद की वजह से... और अगर हम अच्छा नहीं करते हैं, तो सिस्टम को दोषी ठहराया जाता है.'

विदेशी कोच अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही लौट जाते हैं, ज्वाला ने इसके पीछे की वजह भी बताई. उन्होंने कहा, 'आंतरिक राजनीति... यही वजह है कि विदेशी कोच अपना कार्यकाल पूरा किए बिना ही चले जाते हैं. उन्हें (विदेशी कोच) पहचान नहीं मिलती और वे अपमानित महसूस करते हैं. इसके लिए सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि प्रबंधन भी जिम्मेदार है... और मैं प्रत्यक्षदर्शी हूं.'

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