इतिहास में पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों की तैराकी स्पर्धा के फाइनल में जगह बनाने वाले भारतीय तैराक कोई पदक हासिल नहीं कर पाये और इसके लिये सितारा तैराक विर्धवाल खाड़े ने कम संसाधनों को जिम्मेदार ठहराया.
राष्ट्रमंडल खेलों की किसी तैराकी स्पर्धा के फाइनल में पहली बार जगह बनाते हुए खाड़े ने चार गुणा 100 मीटर की फ्रीस्टाइल तैराकी में रिले टीम का नेतृत्व किया.
उन्होंने कहा, ‘भारतीय तैराक होना मुश्किल होता है. आपके पास काफी कम संसाधन होते हैं जो तैराक और कोच के लिये चीजों को काफी मुश्किल कर देते हैं. हमें समझौते करने होते हैं.’ उन्होंने बीजिंग ओलंपिक 2008 के लिये बतौर सबसे युवा भारतीय एथलीट क्वालिफाई किया था.
एक और तैराक एरन डी’सूजा ने कहा, ‘अपने ही शहर में तैराकी स्पर्धा में भाग लेना काफी उत्साहजनक होता है. यह काफी विशेष रहा. मैंने अपने परिवार के समक्ष प्रदर्शन किया. हम इससे पहले कभी भी राष्ट्रमंडल खेलों में तैराकी के फाइनल में जगह नहीं बना पाये थे.’