टीम इंडिया के पूर्व सलामी बल्लेबाज मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने अपनी कितान 'प्लेइंग इट माई वे' में एक बड़ा खुलासा किया है. तेंदुलकर ने टीम इंडिया के पूर्व कोच ग्रेग चैपल पर तीखा हमला करते हुए लिखा है कि चैपल का व्यवहार एक रिंग मास्टर की तरह था और वह अपनी बात खिलाड़ियों पर थोपते थे.
सचिन तेंदुलकर ने खुलासा किया है कि ग्रेग चैपल ने 2007 वर्ल्ड कप से कुछ महीने पहले उन्हें राहुल द्रविड़ की जगह टीम इंडिया की कप्तानी संभालने का सुझाव दिया था. उन्होंने खुलासा किया है चैपल ने उनके घर पर आकर उनसे कहा था कि हम दोनों मिलकर सालों पर भारतीय क्रिकेट पर राज कर सकते हैं.
तेंदुलकर ने 2005 से 2007 के बीच टीम इंडिया के कोच रहे चैपल की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें ‘रिंगमास्टर’ करार दिया, जो खिलाड़ियों पर अपने विचार थोपता था. तेंदुलकर के अनुसार चैपल को इस बात की तनिक भी परवाह नहीं रहती थी कि उनके इस व्यवहार से खिलाड़ी सहज महसूस कर रहे हैं या नहीं.
द्रविड़ की जगह उन्हें कप्तान बनाने की कोच की कोशिश पर तेंदुलकर ने विस्तार से लिखा है, ‘विश्व कप से कुछ महीने पहले चैपल मेरे घर आए और सुझाव दिया कि मुझे राहुल द्रविड़ से कप्तानी ले लेनी चाहिए.’ उन्होंने लिखा है, ‘अंजलि भी मेरे साथ बैठी थी और वह भी यह सुनकर हैरान थी कि ‘हम दोनों मिलकर सालों तक भारतीय क्रिकेट को नियंत्रित कर सकते हैं. और वह टीम की कप्तानी हासिल करने में मेरी मदद करेंगे.’
तेंदुलकर ने लिखा है, ‘मुझे हैरानी हुई कि कोच कप्तान के प्रति थोड़ा भी सम्मान नहीं दिखा रहा है, जबकि क्रिकेट का सबसे बड़ा टूर्नामेंट कुछ महीनों बाद होना है.’ इस स्टार बल्लेबाज ने कहा कि उन्होंने चैपल का सुझाव सिरे से खारिज कर दिया. ‘वह दो घंटे तक रहे, मुझे मनाने की कोशिश करते रहे और आखिर में चले गए.’
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तेंदुलकर ने बोर्ड को सुझाव दिया कि सीनियर खिलाड़ी टीम पर नियंत्रण रख सकते हैं और टीम को एकजुट रख सकते हैं. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है, ‘ऐसा नहीं हुआ और 2007 के अभियान का अंत भयावह हुआ.’ टीम इंडिया केवल एक मैच बरमुडा के खिलाफ जीत पाई, बांग्लादेश और श्रीलंका से हार का मुंह देखना पड़ा.
चैपल को आड़े हाथों लेते हुए तेंदुलकर ने कहा कि वर्ल्ड कप में भारत के निराशाजनक प्रदर्शन के लिए इस ऑस्ट्रेलियाई को बहुत अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी. उन्होंने लिखा है, ‘मुझे नहीं लगता कि मैं इससे बहुत दूर था जब मैं कहता कि अधिकतर खिलाड़ियों को लगता है कि चैपल के रहते हुए भारतीय क्रिकेट किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ़ रहा था.’
तेंदुलकर ने अपनी किताब में लिखा है कि चैपल सार्वजनिक तौर पर ‘हमारी प्रतिबद्धता पर सवाल उठा रहे थे और हमें नए सिरे से शुरुआत कराने के बजाय मामला और बिगाड़ रहे थे.’ तेंदुलकर के साथ यह किताब मशहूर खेल पत्रकार और इतिहासविद बोरिया मजूमदार ने लिखी है. इस स्टार बल्लेबाज ने कहा कि कई सीनियर खिलाड़ी चैपल के जाने से राहत महसूस कर रहे थे, ‘इससे किसी को हैरानी नहीं हुई क्योंकि जो भी कारण रहा हो, वह उनके साथ सही तरह का बर्ताव नहीं करता था.’
तेंदुलकर ने लिखा है, ‘ईमानदारी से कहें तो सौरव भारत के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों में से एक है और उन्हें टीम का हिस्सा बनने के लिए चैपल के समर्थन की जरूरत नहीं थी.’ तेंदुलकर ने कहा कि चैपल सीनियर खिलाड़ियों को टीम से बाहर करना चाहते थे.
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तेंदुलकर ने लिखा है, ‘लगता था कि चैपल का इरादा सभी सीनियर खिलाड़ियों को बाहर करने का था और इस प्रक्रिया में टीम के सदभाव का नुकसान पहुंचाया. एक मौके पर उन्होंने वीवीएस लक्ष्मण से कहा कि वह पारी की शुरुआत करने पर विचार करें. लक्ष्मण ने बड़ी शिष्टता से इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि उन्होंने अपने करियर के शुरुआती भाग में पारी की शुरुआत करने की कोशिश की थी, क्योंकि तब वह असंमजस में था, लेकिन अब वह मिडिल ऑर्डर में जम चुका था और ग्रेग को मिडिल ऑर्डर के बल्लेबाज के रूप में उन पर विचार करना चाहिए था.’
तेंदुलकर ने लक्ष्मण वाले मामले में आगे लिखा, ‘ग्रेग के जवाब ने हम सभी को हतप्रभ कर दिया. उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि उसे सतर्क रहना चाहिए क्योंकि 32 साल की उम्र में वापसी करना आसान नहीं होता.’ इस दिग्गज बल्लेबाज ने लिखा है, ‘असल में मुझे बाद में पता चला कि ग्रेग ने बीसीसीआई से सीनियर खिलाड़ियों को हटाने के बारे में बात की थी. इसमें संदेह नहीं कि उन्होंने यह टीम को नया रूप देने की उम्मीद से किया था.’
भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कोच की अच्छे समय में चर्चा में बने रहने और बुरे दौर में खिलाड़ियों को मझधार में छोड़ने की आदत की भी आलोचना की.
तेंदुलकर ने याद किया कि 2007 वर्ल्ड कप से पहले दौर में बाहर होने के बाद वे कितना निराश थे और तब वह कितने आहत हुए थे जब लोगों ने खिलाड़ियों की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए थे. उन्होंने लिखा है, ‘जब हम भारत लौटे, तो मीडियाकर्मी मेरे साथ घर तक आए और जब मैंने सुना कि मेरे अपने लोग खिलाड़ियों की प्रतिबद्धता पर संदेह कर रहे हैं तो इससे दुख हुआ. मीडिया को हमारी असफलता की आलोचना करने का पूरा अधिकार था, लेकिन यह कहना कि हमारा ध्यान काम पर नहीं था, सही नहीं था.’
तेंदुलकर ने लिखा है, ‘हम प्रशंसकों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाए थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि हमें देशद्रोही कहा जाना चाहिए. कभी प्रतिक्रियाएं आश्चर्यजनक रूप से बेहद द्वेषपूर्ण होती थी और कुछ खिलाड़ी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे.’ तेंदुलकर ने कहा कि 2007 वर्ल्ड कप की हार के बाद उनके दिमाग में संन्यास लेने का विचार आया, लेकिन परिजनों और दोस्तों ने उन्हें बने रहने के लिए कहा.
उन्होंने लिखा, ‘एंडुलकर, जैसे शीर्षक बहुत आहत करने वाले थे. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 18 साल बिताने के बाद इस तरह की चीजों को सहन करना मुश्किल था और संन्यास का विचार मेरे दिमाग में आया था. मेरे परिवार और संजय नायक जैसे मित्रों ने मुझे खुश रखने के लिए अपनी तरफ से हर तरह की कोशिश की और एक हफ्ते बाद मैंने इसको लेकर कुछ करने का फैसला किया. मैंने दौड़ना शुरू किया. यह वर्ल्ड कप की यादों को दिमाग से निकालने की कोशिश थी.’
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ढेरों रिकॉर्ड बनाने के बाद 2013 में खेल को अलविदा कहने वाले सचिन तेंदुलकर ने दो दशक से ज्यादा के अपने करियर के अहम लम्हों को उजागर किया है, जिसमें उनका बुरा दौर भी शामिल है. दुनिया भर में छह नवंबर को तेंदुलकर की आत्मकथा 'प्लेइंग इट माई वे' का विमोचन होना है, जिसमें इस महान बल्लेबाज ने कप्तान के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान की हताशा का भी जिक्र किया है.
- इनपुट भाषा से