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पापा 5 मिनट को जिंदा हो जाते तो सचिन से कहते, वापस जाओ और देश के लिए खेलो: अजित तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर की जिंदगी के बहुत सारे किस्से आप जानते हैं. उनके संघर्ष की ढेर सारी कहानियां आपने अखबारों-पत्रिकाओं में पढ़ी होंगी. लेकिन अब भी कई ऐसी बातें और यादें हैं जो कहने से रह गई हैं. इंडिया टुडे ग्रुप के 'सलाम सचिन' कॉन्क्लेव में सचिन के भाई अजित तेंदुलकर ने कई ऐसी ही यादें साझा कीं. पेश है हमारे कंसल्टिंग स्पोर्ट्स एडिटर बोरिया मजूमदार से हुई उनकी बातचीत.

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सचिन के भाई अजित तेंदुलकर
सचिन के भाई अजित तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर की जिंदगी के बहुत सारे किस्से आप जानते हैं. उनके संघर्ष की ढेर सारी कहानियां आपने अखबारों-पत्रिकाओं में पढ़ी होंगी. लेकिन अब भी कई ऐसी बातें और यादें हैं जो कहने से रह गई हैं. इंडिया टुडे ग्रुप के 'सलाम सचिन' कॉन्क्लेव में सचिन के भाई अजित तेंदुलकर ने कई ऐसी ही यादें साझा कीं. पेश है हमारे कंसल्टिंग स्पोर्ट्स एडिटर बोरिया मजूमदार से हुई उनकी बातचीत.

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24 साल से आप उनके साथ हैं. अब क्या बदलेगा 18 नवंबर के बाद?
सचिन इंडिया की कैप नहीं पहनेगा इस तारीख के बाद. यही बहुत बड़ा बदलाव है. वह पिछले 24 सालों से गर्व के साथ यह रंग, यह कैप पहन रहा है. उसकी पूरी जिंदगी क्रिकेट से ही बनी है. वह जब भी पिच पर उतरा, सबने शतक की उम्मीद की. बहुत दबाव था इसका. अब इसका खात्मा हो जाएगा. अब शायद वह सुबह उठे, तो न सोचे कि इस बॉलर को कैसे खेलूं. एक्सरसाइज में कुछ कमी आएगी. भरपेट बटर चिकन खा सकेगा और मीडिया भी उसकी आलोचना और स्क्रूटनी से बचेगी.

परिवार क्या सोच रहा है इस मौके पर? मां पहली बार लाइव देखेंगी. दोनों भाई अजीत और नितिन, बहन सरिता और पत्नी अंजलि भी स्टेडियम में होंगी?
सब खुश हैं. मां ने तो उसे कभी नेट पर प्रैक्टिस करते भी नहीं देखा. लोकल गेम तो छोड़ ही दीजिए. सचिन के लिए यह खास मोमेंट है. 200वां टेस्ट. पूरा परिवार स्टेडियम में मौजूद होगा. हम सब बहुत बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे हैं. अब तक हम इससे बचते रहे हैं. कई दोस्त हम पर हंसते हैं, जब हम कहते हैं कि हम सचिन को लाइव देखने नहीं जाते. टीवी पर ही उनकी पारी देखते हैं. लेकिन इस बार लाइव देखेंगे.

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परिवार स्टेडियम में देखने क्यों नहीं जाता था मैच? अंजलि एक बार 2004 में मेलबर्न में टेस्ट देख रही थीं. सचिन डक पर आउट हुए, तो अंजलि न सिर्फ स्टेडियम बल्कि शहर से ही बाहर चली गईं. क्यों?
हमें दो चीजों का डर था, तब भी जब वह बहुत रन बना रहा था. एक, अपना विकेट फेंकने की आदत. दूसरा कैलकुलेशन की आदत, धैर्य खोने की बात. एक बार राजसिंह डूंगरपुर ने पापा से कहा था कि सचिन को बोलिए कि कार पहले गेयर से चलाना शुरू करे, पांचवे से नहीं. तो ये सब बातें हैं, जिसकी वजह से हम स्टेडियम नहीं जाते थे. पर हां, मां से बोलता था कि अब सचिन खेल रहा है. प्रार्थना करिए. बहन सरिता व्रत रखती थी. अंजलि भी कुछ न कुछ करती थी.

मैंने कुछ क्रिकेट खेला है, तो मैं मन में ये कल्पना करने लगता था कि वो अच्छा खेल रहा है. रन बना रहा है. इससे सकारात्मक बने रहने में मदद मिलती थी.

हम सब जानते हैं कि जब कोई बैट्समैन पिच पर पहुंच जाता है, उस पर किसी का कंट्रोल नहीं रहता, ऐसे में जोर इस बात पर था कि भावनात्मक रूप से, रूहानी रूप से हम उसके साथ रहें. इसका कोई वैज्ञानिक तर्क नहीं है. मगर हम हमेशा उसकी बैटिंग के वक्त उसके इर्द गिर्द ही रहे, ख्याली रूप से.

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अतीत में चलते हैं, जब सचिन साहित्य सहवास कॉलोनी में टेनिस बॉल से खेलते थे और आप उन्हें लेकर रमाकांत आचरेकर के पास ले गए.
सच कहूं तो तब ये टैलेंट या जीनियस का नहीं सोचा था. टेनिस बॉल से खेलते थे. तीन चीजें थीं. जिस तरह से वह अपना बल्ला उठाता था. ईजी बैकलिप्ट थी. आज भी है. बिल्कुल नहीं बदली है. बहुत रिलैक्स्ड सी है. ये पहली चीज थी जिसे नोटिस किया. दूसरी चीज उसके हाथों का स्विंग. बॉल मिडल होती थी. रबर बॉल बाउंस बहुत करती है. सचिन उसी ऐज से बॉल की लेंथ बहुत अच्छे से पिक कर रहा था. इन तीन चीजों पर गौर करने के बाद मुझे लगा कि उसे आगे बढ़ाना चाहिए.

मुझे लगा कि इसमें प्रतिभा है और अब उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है. हम रमाकांत सर के पास गए. सचिन ने हाफ पैंट औऱ टीशर्ट पहन रखी थी. ट्राउजर भी नहीं था. मैंने आचरेकर सर से बात की. वो बोले ठीक है, कल से आ जाए. मगर फुल पैंट पहनकर आए. फिर बोले कि अच्छा आया है, तो कुछ फील्डिंग प्रैक्टिस कर ले. उसने मुझे चौंकाते हुए ऊंचे-ऊंचे कैच आराम से ले लिए और फिर अच्छे अंदाजे के साथ विकेटकीपर को बॉल लौटाई. उम्मीद थी कि अगले दिन वो बैटिंग भी ठीक कर लेगा.

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शुरुआत में कुछ दिन मुश्किल रहे. उसे पैड और ग्लव्स के साथ खेलने की आदत नहीं थी. बैट भी प्रॉपर नहीं था. मगर फिर वह जल्द ही रिदम में आ गया. एक दिन वह नेट्स के बाद आया. आचरेकर सर पहुंचे और बोले कि इस तरह से तुम्हें खेलना होगा, आगे भी. तभी तय हुआ कि वह नंबर चार पर खेलेगा. ऐसा रमाकांत सर बोले.

क्रिकेट करियर के शुरुआत में ही कई टेस्ट सेंचुरी जड़कर वह सुर्खियों में आ गए. वह पहले मिलियेनर क्रिकेटर बने.
मेरे लिए पैसों का कोई मतलब नहीं था. उसकी सेंचुरी बनी तो वह मिलियंस कमाने की तरह था. अगर वो अच्छा खेला तो हमें रिक्शे में घूमने में भी मजा आया. रन नहीं बने, तो फरारी चलाने में भी नहीं मजा आया. लोग कह सकते हैं कि बहुत पैसा कमा लिया. मगर हमारे घर में उसके रन और सेंचुरी का ही महत्व था. आज मैं उसके करियर की आखिरी वेला में कह सकता हूं. कि इंटरनेशनल क्रिकेट में 100 से ज्यादा शतक, पचास हजार से ज्यादा रन फर्स्ट क्लास क्रिकेट में. तीन वर्ल्ड कप में भारत के लिए सबसे ज्यादा रन बनाना. अब इन सबके बाद हम कह सकते हैं कि वह हमेशा ही मिलियेनर रहेंगे हमारे लिए.

सचिन रिक्शे और टैक्सी पर कब बैठे?
हम बीएमडब्ल्यू जे फाइव में थे. दो रेगुलर सूटकेस, एक हैंडबैग और एक कोफिन था. बांद्रा फ्लाईओवर पर पहुंचे, तो कुछ गड़बड़ी समझ आई. सचिन बोले कुछ गलत चल रहा है. बाहर आए तो देखा कि कार पंक्चर थी. हमारे साथ सिक्योरिटी गार्ड नहीं था उस वक्त. कुछ आपस में बात करनी थी. सुबह के 6.30 बजे थे. ज्यादा ट्रैफिक नहीं था. हम दूसरी कार के लिए नहीं बोल सकते थे. एयरपोर्ट पर लेट हो जाते थे.

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हमने टैक्सी रोकी और रिक्शा भी रोका. तब सचिन बाहर आए. टैक्सी और रिक्शे वालों को यकीन नहीं हुआ. हमें सारे बैगेज टैक्सी में रखे. सचिन टैक्सी में सामान के बीच थे, और मैं रिक्शे पर था. एयरपोर्ट पर सब चौंके हुए थे.

सबसे यादगार कमेंट किसका रहा अब तक?
शारजाह में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जब बैक टु बैक दो सेंचुरी मारीं. जब फाइनल में सेंचुरी मारी, तो मेरे करीबी दोस्त ने फोन किया. उनकी मां ने सचिन की पारी देखी थी. हम लाइव नहीं देखते थे. वह बोला, तुम्हें यकीन नहीं होगा, सचिन इतना अच्छा खेला कि मेरा मां मैच देखने के बाद खुशी के मारे रोने लगीं. वो लम्हा बार बार याद आता है.

1998 का आपने किस्सा सुनाया. 1999 में वर्ल्ड कप के दौरान पिता का देहांत हुआ. अंजलि ने बताया कि वह आधी रात सचिन के कमरे में गईं और बताया.
अगर पापा पांच मिनट के लिए फिर से जिंदा हो जाते तो वह भी वही कहते, जो हमने कहा, कि वापस जाओ और देश के लिए खेलो. पापा का उसके करियर पर सबसे ज्यादा असर रहा. जाहिर है कि जब वह अंतिम संस्कार के लिए घर आया, तो दुखी था.

पापा के अटैक के दो महीने पहले भी एक हार्ट अटैक हुआ था. उस वक्त भी मुझे याद है भारतीय टीम श्रीलंका में थी. पापा बेड पर थे, ऑक्सीजन मास्क लगा था. अगले दिन सचिन को जाना था वहां. मैंने पापा को बताया रात के वक्त, कल सचिन को जाना है खेलने. मैं उसे नहीं बताऊंगा कि आपको अटैक हुआ है. वह मुस्कुराए. उन्होंने इशारे में कहा कि ठीक किया.

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अगले दिन सचिन श्रीलंका गया. और वह हॉस्पिटल से ही उसे खेलते देख खुश थे.इसीलिए मैं कह रहा हूं कि अगर वह पांच मिनट के लिए भी फिर से जीवित होते तो यही खेलते, खेल जाकर. इसलिए हमने उसे समझाया और उसे फिर से इंग्लैंड भेजा.

आप लोग सचिन के साथ बहुत सख्ती से पेश आते हैं.कौन सी पारी ज्यादा करीब है आपके?
चेन्नई की टेस्ट पारी जब भारत हार गया और हरियाणा के खिलाफ रणजी पारी.
व्यक्तिगत तौर पर चेन्नई में भारत पाकिस्तान से सचिन के शतक के बावजूद आ गया. वह न्यूजीलैंड दौरे से लौटा तो बहुत थका था. मैंने पाकिस्तान टूर की बात की, तो वो बोला कि मैं शायद नहीं खेलूं. मेरा उत्साह चला गया. वह वसीम अकरम और वकार यूनुस के खिलाफ नहीं खेलने की सोच रहा था. फिर वह खेला. पहली पारी में जीरो पर आउट हो गया. चौथे दिन वह 20 पर नाबाद खेलकर लौटा. भारत को 270 रन चेज करने थे. पिच खराब हो चुकी थी.जब वह खेलने गया था, तब 6 रन पर दो विकेट गिर चुके थे.

उसे अपना और टीम का स्कोर बढ़ाना था. वह 256 पर आउट हुआ. जब आउट हुआ तो शतक (113) बन चुका था, उससे भी अहम था कि टीम पूरी तरह संकट से उबरी लग रही थी.मगर फिर वह हार से इतना दुखी था कि ड्रेसिंग रूम में रो रहा था. इकलौता मौका था, जब वह अपना मैन ऑफ द मैच अवॉर्ड लेने नहीं गया.राजसिंह डूंगरपुर ने जाकर समझाया कि अगर वह अब नहीं निकला, तो टीम घर नहीं जा पाएगी.

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18 नवंबर की दोपहर कैसी होगी. क्या कई जिम्मेदारियों का सर्किल पूरा होगा?
सच कहूं तो हमें सचिन के लिए कभी कुछ बहुत खास नहीं करना पड़ा. वह शुरू से अनुशासन में रहता था. बस हमें उसके इर्द गिर्द रहना होता था. लेकिन हां, 18 नवंबर की दोपहर अलग होगी. हमने हमेशा उसके क्रिकेट के बारे में सोचा, ये सिर्फ उसका नहीं सबका साझा सपना था. वह खत्म हो जाएगा. लेकिन ये बहुत खुशनुमा नोट पर खत्म होगा. उसके ज्यादातर सपने सच हो चुके हैं और उम्मीद है कि उसने क्रिकेट ऑडियंस को खुश रखा.

कॉन्फ्रेंस से दो सवाल

अजीत, 24 साल से आप सचिन का मैच देखने नहीं गए हैं, अब जाएंगे आप?
हां मैं जाऊंगा क्योंकि ये आखिरी बार होगा. मैं ये मौका नहीं छोड़ूंगा. मेरा भाई 200 वां टेस्ट खेल रहा है. उस जगह खेल रहा है, जहां उसने क्रिकेट खेलना शुरू किया. सिर्फ मैं ही नहीं हमारा पूरा का पूरा परिवार खेलने जाएगा.

भाइयों में कभी आपसी मुकाबला भी हो जाता है, आपने पूरा जीवन सचिन के लिए समर्पित कर दिया. कभी बहस हुई हो?
हम हमेशा क्रिकेट पर ही बात करते हैं. कई बार आप चीजों की अलग अलग ढंग से व्याख्या करते हैं. सचिन बहुत नाइस है. उसने हमेशा मेरी राय सुनी. 12 साल से वह टूर करने लगा था. उसने दुनिया के बेस्ट बॉलर्स को खेला. मैं तो कभी घर से ही नहीं निकला. बस टीवी पर उसे देखा और अपनी राय दी. पर फिर भी मैं बोलता था और वो सुनता था.

हां कभी कभी बहस हुई, पर वो क्रिकेट से जुड़े मुद्दों पर ही हुई. कुछ देर हुई. फिर कुछ देर में भूल गए और अगली बात करने लगे.

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