ड्रेसिंग रूम में सचिन तेंदुलकर कैसे थे, यह जानना हो तो आप जवागल श्रीनाथ और सुरेश रैना को सुनिए. सचिन के साथ अलग-अलग दौर में ड्रेसिंग रूम शेयर कर चुके इन क्रिकेटरों ने इंडिया टुडे ग्रुप के कॉन्क्लेव 'सलाम सचिन' में मास्टर ब्लास्टर के व्यक्तित्व से जुड़ी कई दिलचस्प यादें शेयर कीं. श्वेता सिंह के साथ हुई पूरी बातचीत पढ़िए.
श्रीभाई, आपका पहला दौरा था ऑस्ट्रेलिया का. सचिन को कुछ बरस हो चुके थे. उस दौरान के कुछ अनुभव बताइए?
श्रीनाथ: मैं सचिन से पहली बार 1989 में मिला था. पटियाला में मैच था. कर्नाटक वर्सेज मुंबई. सचिन ज्यादा बड़ी पारी नहीं खेल पाए. कांबली ने ज्यादा स्कोर किया था. मगर उनके स्ट्रोक से फर्क समझ में आ रहा था. फिर हम ऑस्ट्रेलिया गए. उनका रुतबा कायम होने लगा था.
मेरे लिए उस दौरे में पर्थ के दौरान उनकी सेंचुरी बेहद खास है. ब्रूस रीड, माइकल व्हिटनी और मैक्डरमॉड के सामने पेस और बाउंस वाली पिच पर खेलना. जब पिच पर क्रैक्स हों. ये बेहद शानदार था. सचिन सिर्फ 19 साल के थे और उन्होंने न सिर्फ इस अटैक को काउंटर किया और स्कोर किया. हम मैच हार गए, मगर वही इकलौता शख्स था, जिसने हमें उस मैच में मान दिलाया.
जब सचिन ने सौवां शतक बनाया, तो सुरेश रैना आप दूसरे छोर पर थे?
सुरेश रैना: सबसे पहले मैं अजीत भाई को थैंक्यू बोलना चाहता हूं, जिन्होंने पाजी के साथ इतनी मेहनत की. मुझे बांग्लादेश मैच से पहले की नैट प्रैक्टिस याद है. देखकर लग रहा था कि कुछ खास होने वाला है. मेहनत वह हमेशा ही करते हैं और सकारात्मकता से भरे रहते हैं.
सचिन प्रैंक्स्टर भी हैं, क्या ड्रेसिंग रूम में बहुत मजाक करते हैं?
श्रीनाथ: हां ज्यादातर तो सीरियस ही रहता है. ड्रैसिंग रूम में उसके आते ही वजन आता है. पर उसे जल्दी हंसी नहीं आती. लोग जबरन जोक सुनाते थे.
रैना. उनको किशोर दा के गाने अच्छे लगते थे. वह बैटिंग के पहले और बाद उनका गाना लहरों की तरह सुनते रहते थे. सबको इससे अच्छा लगता था कि यंगस्टर को गार्जियन की तरह गाइड करते हैं.
सचिन की नेट प्रैक्टिस करा रहे गेंदबाजों को बहुत मेहनत करनी होती है?
श्रीनाथ: सचिन और राहुल ये हमेशा ही स्टैंडर्ड सेट करते रहे हैं. मेरे लिए वे आपकी परफॉर्मेंस का सच्चा संदर्भ थे. राहुल को अगर लाइन और लेंथ में गड़बड़ दिखेगी तो वह बॉल छोड़ देगा, मगर सचिन उसे पनिश करते थे. मैं और कुंबले अगर सचिन को नेट पर अच्छी बॉलिंग करते थे, तो लगता था कि हम फॉर्म में है. उसे नेट पर भी आउट करना काफी कीमती पल होता था. वनडे मैच के पहले वो सिचुएशन बनाता था. ओके 6 बॉल हैं, 12 रन बनाने हैं. इस दौरान कोई शॉट फील्डर के पास जाता तो सब बोलते उसके साथ, ये तो चौका है. मैं बहस करता, पर उससे जीतना मुश्किल था.
उसने ही अपनी कप्तानी में मुझे बतौर पिंच हिटर भेजना शुरू किया. 1996 में वह आया और बोला श्री तू नंबर तीन पर आ जा. जो भी करना है कर, मार. दो तीन बार इस दौरान उनके साथ खेलने का मौका मिला.
सचिन के बारे में सबसे खास बात है कि जिस ढंग से वह बॉलर को रीड करते हैं. हर बॉलर का प्लान उन्हें पता होता है. इसलिए वह खास हैं. वह ज्यादातर बार बॉलर का पैटर्न भांप लेते हैं.
मैं दूसरे एंड पर खड़ा देखता रहता था. फिर ब्रेक में जाते तो वह बताते, पटकेगा बॉल, आगे डालेगा. देखकर डालना. और 90 फीसदी बार वह सही होते थे. जब उनका अंदाजा कभी गलत हो जाता, तो मैं उनकी तरफ देखता, ये क्या करवा दिया. तो वह इशारों में कहता, दिमाग तेरा है, तू खेल न.
केपटाउन टेस्ट की बात है. वेंकटेश प्रसाद इंजर्ड हो गया था. मुझे बहुत ओवर फेंकने पड़े. मैं थका हुआ था. जब बैटिंग करने गया. तो पैर लंगड़ा रहा था. मैं बार-बार स्टंप से हट रहा था खेलने के दौरान.सचिन को यह बात पसंद नहीं आई. उन्होंने मुझे टोका. मैंने ईमानदारी से कबूल लिया. उन्होंने कहा कि श्री आई नीड मोर फ्रॉम यू. फिर अगले टेस्ट में मैंने 42-43 रन बनाए. और जब ड्रेसिंग रूम में गया, तो उनकी तरफ देखा.
सचिन बहुत कम ही कॉम्प्लीमेंट देते हैं. जेन्युइन देते हैं. बतौर कप्तान वह बहुत टफ थे.
रैना जब आपने पहला सौ बनाया, तो सचिन शतक बनाकर दूसरे छोर पर थे, क्या अनुभव था...
रैना: मैंने पाजी से पूछा कैसा विकेट है, उन्होंने कहा अच्छा विकेट है.मैंने कहा, डर लग रहा है, पहला टेस्ट है. पाजी बोले बस 15 20 बॉल का डर है. तूने वनडे में अच्छा किया.वो हर ब्रेक में गाइड करते रहे और मेरा डेब्यू में सेंचुरी हो गया. जब हम उस दिन लौटे तो फिर अगले दिन फोन किया. लंच का क्या प्लान है. चल जैपनीज खाने चलते हैं. कभी नहीं खाया था. बताते रहे, कि ये सोया सॉस है. ये वसाबी है. फिर अगले दिन फोन कर पूछा अभी तेरा पेट ठीक है.
खास मैचों की तैयारी कैसे होती है? रैना: पाकिस्तान के खिलाफ उनकी 200 फीसदी तैयारी दिखती है. पाजी ने टॉस के बाद बोला, सब फोकस रहेंगे, हमें सेमीफाइल खेलने को मिला. उन्होंने बैट्समैन और फील्डर के साथ वन ऑन वन मीटिंग किया. युवी पा ने कहा. अच्छी फील्डिंग करेंगे. सचिन पाजी ने कहा, इनको थोड़ा परेशान करेंगे.
फाइनल में गौती भाई बैटिंग कर रहे थे. कोई चाय के लिए उठा. तो सचिन पाजी बोले कि कोई उठेगा नहीं, सब यहीं बैठे रहेंगे. इतने इमोशनली इन्वॉल्व रहे थे. तो वर्ल्ड कप जीतना बहुत टची मूमेंट था.
2003 में भी हम फाइनल तक पहुंचे, तब क्या माहौल था श्री भाई?
पहले मैं 1996 की बात करूंगा, जब हम कोलकाता में सेमीफाइनल में श्रीलंका से हारे. मैच के बाद 4-5 प्लेयर रोने लगे. मुझे लगा कि मैं नहीं रोया तो मेरा कमिटमेंट कम नजर आए. मगर फिर कुछ देर बार चुप हो गया. सचिन की तरफ देखा. वो नहीं रो रहा था. मैंने उससे कहा कि यार मैं नहीं रो सकता. सचिन ने कहा कि हम क्यों रोएं. हम पूरी दम से खेले. हार गए तो क्या हुआ. एंड ऑफ द वर्ल्ड नहीं है ये. फिर जाएंगे और खेलेंगे. मैंने फिर कहा, यार ये ठीक है. देख मैं अभी भी तौलिया पकड़े हूं. पर मैं रो नहीं सकता. मैं ये बात नहीं कह सकता था. मगर उसने साफ साफ कहा और हम अपनी सीटों पर जम गए.
2003 के फाइनल में हमारी बॉलिंग खराब रही. सचिन की बात करूं तो चाहे सेंचुरी पर खेल रहा हो, या शुरुआती दौर में हो. चेहरे पर शांति दिखती है. उनको अपना उत्साह संभालना आता है. ये बहुत शाही अंदाज है. आउट हुए हों या सेंचुरी बनाई हो. बहुत संयत ढंग से रिएक्ट करते हैं. वह अपने ही दुनिया में रहते थे. सेंचुरी के बाद भी आप उनको ज्यादा लाउड नहीं पाते थे.
मुश्किल ये थी कि उनकी इतनी सेंचुरी बन रही थीं कि वह शायद खुद ही बोर हो रहे हों.
1996 के आंसू की आपने बात की. 2011 में सब रोए वर्ल्ड कप जीतने के बाद?
रैना: हम सब इमोशनल थे. सारा और अर्जुन भी आए थे उस मैच के लिए. माही भाई जब टॉस कर रहे थे, तो कुछ इशू हुआ. पाजी बोले कि टॉस के बारे में मत सोचो और मैच पर ध्यान दो. वर्ल्ड कप जीतने के बाद पाजी ने उस सुपर फैन सुधीर को बुलाया. टीम के साथ फोटो खिंचवाया. वह सबका रेस्पेक्ट करते हैं. नेट पर बॉलिंग करने आते हैं, तो उनको बताते हैं.
मुझे एयर इंडिया में खेलने का मौका मिला शुरुआती दौर में. प्रवीण आमरे सर ने मुझे मिलवाया. हम सबको पहली बार में ही मिलकर बहुत जोश मिला.वर्ल्ड कप के दौरान तो हम बहुत इमोशनल थे.
उनकी फिटनेस आज भी बहुत अच्छी है. ट्रेनर थक जाते हैं, लेकिन वह नहीं थकते.
वह टेबल टेनिस बहुत अच्छा खेलते हैं. पूल बहुत अच्छा खेलते हैं. टीटी में सबको हराते हैं.
जब हम यंग लड़के आए, कुछ गाने लगाए, तो पाजी बोले, नहीं मैं बैटिंग करने जा रहा हूं, किशोर चलेगा. उन्हें किशोर के गाने बहुत पसंद थे, खास तौर से 'लहरों की तरह'.
श्रीनाथ: अगर उसे कोई गाना पसंद आएगा, तो सबको पसंद करवाएगा. नहीं आएगा, तो एक बार सुनकर बोलेगा, हां बहुत अच्छा है. बाद में सुनूंगा.
सचिन बतौर कप्तान कैसे थे?
श्रीनाथ: मुझे अक्सर सचिन से बॉल मांगनी पड़ती थी. मैं हमेशा लंच के पहले और बाद में बॉल मांगता. कहता तीन ओवर दे दे. ठीक लगे तो रुक जाना. वह अकसर बात मान लेते. जब रोकना होता, तो न नहीं कहते, बस इतना ही बोलते, दो मिनट ठहर ना. उनकी खासियत य़े थी कि हारना पसंद नहीं था.
कई बार समझ ही नहीं आता कि चाहते क्या हैं. एक बार 30-40 मिनट की बैटिंग के बाद वह दूसरी साइड पर गए.फिर नई बॉल या दूसरी पुरानी बॉल ली और बॉलिंग करने लगे. कभी फास्ट, कभी स्पिन करने लगे. कई बार वह क्रीज से आगे आकर बॉल करते. मगर क्वालिटी हमेशा होती, वह एट विल बॉल कर सकते थे. इतना ज्यादा इन्वॉल्वमेंट था गेम में. हर खून में क्रिकेट था. नेट प्रैक्टिस के उन तीन घंटों में एक-एक सेकंड बस क्रिकेट के लिए होता था. गेम से कनेक्शन इतना ज्यादा मैंने किसी का नहीं देखा.
शुरुआत में वह स्लिप में खड़े होते और आउटस्विंग डालने को कहते हुए चीखते, श्री बाहर कर न. बाहर कर न. मैं कहता यार मेरे को आउटस्विंगर नहीं आता. जब हम नेट पर बात करते थे. उसका प्लान होता था कि दो बॉल अंदर डाल, एक बाहर निकाल. हमारी बहस होती थी.
कभी हम हार जाते तो वह बहुत निराश होता. मगर जब बतौर कप्तान उनकी वापसी हुई, तो वह बदले हुए थे. वह ज्यादा धैर्य के साथ पेश आ रहे थे.
सचिन जब इर्द गिर्द होते थे तो आप लोग क्या करते थे?
रैना: हम तो बस गाना बदल देते थे. वह आते थे. आईपैड बदल लेते थे. फिर जब पाजी कुछ हंसते थे, तो हम बात करते थे जाकर.
बहुत फन करते थे. माइकल जैक्सन के मूव्स के बारे में बात करते थे. उनको रेसिंग का बहुत शौक था. कारों के बारे में बात करते थे. बताते थे कौन से गेयर में कौन सा ऑयल है. आपको पता भी नहीं चलेगा और प्रेशर ऑफ कर देंगे.
विराट ने गाड़ी खरीदी. मैंने खरीदी, तो दिल्ली टेस्ट के बाद बोले कि चल वहां नोएडा के रेसिंग ट्रैक में चलते हैं.
शोएब अख्तर का सवाल
हम टीम मीटिंग में कहते थे कि दो ओवर में सचिन को आउट कर लो, वरना 50 ओवर पदाएगा. आप जब मीटिंग करते थे, तो सचिन मेरे बारे में क्या बोलता था कि कहां-कहां मारना है?
रैना. वह सब उनके मन में रहता था. कि जब शोएब भाई बॉलिंग करेंगे तो कट मारूंगा, फ्लिक मारूंगा. पॉजिटिव एटीट्यूड के साथ जाते थे. ऊपर वाला भी मेहनत पर मदद करता था.
सचिन के संन्यास के वक्त पर?
श्रीनाथ: ये सिर्फ और सिर्फ सचिन का फैसला था और उसकी टाइमिंग का पूरा सम्मान किया जाना चाहिए. मेरी चिंता ये है कि अब वह क्या करेगा.
अब वह बल्ले नहीं उठाएगा. सेंचुरी नहीं बनाएगा. फंक्शन में जाएगा, कमेंट्री कर सकता है. मगर क्रिकेट नहीं खेलने वाली जो बात है. जो सेंस ऑफ रेस्पॉन्सिबिलिटी है कि जाना है और रन बनाना है. वो खालीपन रहेगा. उसे कैसे फेस करेगा. उसकी जिंदगी में खालीपन तो रहेगा ही.
मैं अकसर पूछता, और कितने दिन चलेगा तू. वो बोलता. अभी भी है मेरे अंदर. मेरा दिल नहीं करता क्रिकेट छोड़ने का. फिर उसने ये फैसला लिया और मुझे फोन किया. मैं चिटगांव में था. मैंने कहा बढ़िया ये फैसला है.
रैना: हम उनसे बात करते रहते हैं. ब्लैकबेरी बीबीएम चल रहा है. टिप्स लेनी होती है, तो मैसेज करते हैं. अगर वो बिजी नहीं हैं, तो दो मिनट में रिप्लाई आता है. वो टेस्ट पर फोकस करना चाहते थे. कोलकाता में देखिए, उनकी वजह से कितने लोग आए.
अभी उन्होंने आईपीएल भी जीता. आई होप वो आगे भी मोटिविट करेंगे.