सलाम सचिन कॉन्क्लेव में विक्रांत गुप्ता ने लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर से बात की. गावस्कर ने सचिन के बारे में कई बातें बताईं.
विक्रांत: हम सनी भाई से चाय के दौरान बात कर रहे थे. उनका टोटका था. वह कुछ भी अच्छा करने से पहले नया पहनते थे. हर खास इनिंग से पहले ऐसा करते. आज वह एक नई शर्ट पहनकर आए हैं. मैं कहना चाहता हूं कि अगर सुनील गावस्कर न होते, तो शायद इस देश में सचिन तेंदुलकर भी नहीं होते. स्वागत है सनी भाई.
सुनील: हां ये सच है कि मैं कभी मोजे, तो कभी रूमाल बदल लेता था. बहुत शुक्रिया मुझे इस आयोजन में बुलाने के लिए. मुझे नहीं लगता कि सचिन को किसी ऐसी इंस्पिरेशन की जरूरत थी. वह क्रिकेट खेलने के लिए ही पैदा हुए हैं. हर खेल में कुछ एथलीट सदियों में एक ही आते हैं. वे उस खेल के लिए बने होते हैं. उसे समृद्ध करने के लिए बने होते हैं. फुटबॉल में पेले हैं. बॉस्केटबॉल में माइकल जॉर्डन हैं. बॉक्सिंग में मुहम्मद अली हैं. क्रिकेट में तीन लोग हैं ऐसे, जो खेल को आगे ले गए. सर डॉन ब्रैडमैन, सर गैरी सोबर्स और सचिन तेंदुलकर.
पहली बार आपने सचिन के बारे में कब सुना?
सुनील: मैं मुंबई एयरपोर्ट जा रहा था. फ्लाइट पकड़नी थी. एमसीसी का शताब्दी टेस्ट खेलना था 1987 में. मेरी कार में छोटा भाई था. पिछले महीने उनका देहांत हुआ. उन्होंने मुझे तब सचिन और विनोद कांबली के बारे में बताया. मैच की बात करूं तो उनके डेब्यू फर्स्ट क्लास गेम को देखा. वह रेस्ट ऑफ इंडिया के खिलाफ खेले. फिर मुंबई के लिए रणजी ट्रॉफी खेले. दोनों मैच कुछ कुछ देखे. दोनों में उन्होंने सेंचुरी मारी. पोटेंशियल साफ नजर आ रहा था.
मगर क्या उनकी स्टाइल बॉम्बे स्कूल ऑफ बैटिंग के उलट नहीं थी?
सुनील: बॉम्बे स्कूल ऑफ बैटिंग है क्या. बस इतनी ही कि कभी हौसला नहीं खोना है.कुछ भी छोड़ना नहीं है. कुछ भी आसान नहीं है. आप देखिए, अब यही दिल्ली के साथ हो रहा है. वहां सबसे अच्छे बैट्समैन आ रहे हैं. इस खेल की यही खूबसूरती है.सबकी अप्रोच अलग है. मुंबई में यही स्टाइल थी कि टफ खेलो. गीली पिच पर खेलने का अभ्यास था. वहां आप हाथ का बेहतर इस्तेमाल सीखते हैं.ग्रिप में क्या ढीला हो, क्या सख्त हो.
हिंदी में कहावत है कि गावस्कर ने इंडियन क्रिकेट को दांत दिए. सचिन ने काटना सिखाया.
सुनील: सचिन ने अच्छी तरह से सीखा है.
आपने सचिन को एक लेटर लिखा थी बहुत शुरुआती दौर में.
सुनील: अभी मैं उसके बारे में ज्यादा नहीं बता सकता. ये राज जल्द ही खुलेगा. हां बिल्कुल शुरुआती दौर में लिखा था. लेकिन अभी मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहता.
सनी भाई आपने बहुत ट्रैवल किया है. कमेंटेटर के रूप में भी और क्रिकेटर के रूप में भी. सचिन ने जब स्कोर किया, आप वहां थे. किस तरह से हेल्प हुई उन्हें.
सुनील: ये आपको सचिन से पूछना होगा. मैं इंडियन टीम के हर प्लेयर के साथ था. जब भी जिसको मेरी सलाह की जरूरत होती है मैं बताता हूं अपनी समझ भर.
आपको सचिन की कौन सी पारी ज्यादा पसंद हैं?
सुनील: पहली सेंचुरी. इससे भारत को टेस्ट बचाने में मदद मिली. फिर पर्थ में मारी गई सेंचुरी. पिच मुश्किल थी. मगर उन्होंने इसे साधारण बना दिया. फिर चेन्नई में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1998 में.फिर इंग्लैंड के खिलाफ सेंचुरी. ये मुश्किल सवाल है 100 शतकों में पसंद बताना.
क्या सबसे खास हैं उनमें?
सुनील: उनका फील्ड पर बैलेंस. क्रिकेटिंग बैलेंस की बात करूं. वह कभी अजीब स्थिति में नहीं दिखे पिच पर. कोई बॉल उछली. कोई स्लिप हो गई. वह जैसा भी खेले. अचंभे में नहीं आए. यह तो हुई फील्ड पर बैलेंस की बात. इतना कुछ हासिल करने के बाद भी वह अपना फोकस बनाए रहे. अनुशासन कायम रखा, समपर्ण बनाए रखा. वह बैलेंस भी कमाल है.
संन्यास से क्या आपको आश्चर्य हुआ?
सुनील: नहीं ऐसा नहीं हुआ. कभी आप सोचते हैं इस बारे में. ये अभी नहीं तो अगले साल होता.
सनी भाई, आपने एट्टीज के शानदार बॉलिंग अटैक में खेला. क्या सचिन उस दौर में सफल होते?
सुनील: जैसा डॉन ब्रैडमैन ने कहा. कि ग्रेट हर इरा में ग्रेट रहता.मैं करियर के शुरुआती तीन साल अनकवर्ड पिच पर खेला, फिर गेम बदला. मुझे लगता है कि सचिन हर इरा में सफल होते.
सचिन और आपके गेम में क्या समानता है?
सुनील: सचिन और राहुल की गेम के लिए तैयारी अमेजिंग होती है. आप तीन और चार नंबर पर खेल रहे हैं. किसी भी वक्त जाना पड़ सकता है. तो बैठे हैं, फिर भी हर वक्त तैयार हैं. कई बार आप फील्डिंग के बाद ड्रेसिंग रूम में गए और कपड़े या जूते बदल ही रहे हैं और बुलावा आ जाता है. तो दिमागी रूप से तैयार होने में अभ्यास चाहिए. आप तीसरे और चौथे नंबर के प्लेयर हैं, तो मैच की दूसरी और तीसरी बॉल पर ही बुलावा आ सकता है.
बहुत जल्द फैसले लेने होते हैं. कौन सा बल्ला उठाऊं. कैसी कंडिशन है मैदान पर. सब बल्ले आपके एक जैसे होते हैं. लेकिन किसी एक को आप उठाते हैं. और अच्छी फीलिंग होती है. मगर वो फैसला करना. आपके जूतों के स्पाइक्स ठीक हों. ट्राउजर ठीक से टक इन हो. ये सारी छोटी छोटी तैयारियां करते थे दोनों.दिमाग में सबके लिए प्लान बनाना. इस बॉलर की ये खासियत है, तो ऐसे खेलूंगा. आउट स्विंगर पर क्या करूंगा. इन स्विंगर पर क्या करूंगा. ये मोमेंट का गेम है. मगर मेंटली हर चीज के लिए तैयार रहना भी जरूरी है.
नब्बे के दशक में डॉन ब्रैडमेन ने अपनी पत्नी से कहा था सचिन के लिए. ये लड़का मेरे जैसा खेलता है. आपको ये कब लगा?
सुनील: हां. नब्बे की बात है. वह इंग्लैंड दौरे के लिए जा रहा था. उसकी सोसाइटी साहित्य सहवास ने एक फेयरवेल रखी थी. मुझे बुलाया था वहां. तब मैंने वहां कहा था कि सचिन और ब्रैडमेन दोनों की आवाज एक जैसी है. बैटिंग की बात बाद में आई. मैंने उनके कुछ वीडियो बाद में देखे. वाकई समानता थी.
कौन ज्यादा महान है ब्रैडमेन और सचिन...
सुनील: आप अलग अलग क्रिकेट युग की तुलना नहीं कर सकते. ज्यादा से ज्यादा समकालीनों की बात कर सकते हैं, वह भी एक ही टीम के. उनके लिए पिच और टीम कॉम्बो एक सा है. मुल्क बदलने से भी हालात बदल जाते हैं. मैं इस तरह की तुलना में यकीन नहीं करता.
सचिन की इरा की बात करें तो सचिन वर्सेस लारा, सचिन वर्रेस इंजमाम जैसे दौर चले...
सुनील: ये सभी बहुत उम्दा प्लेयर थे. जब इन्होंने अच्छा किया इनके देश की टीम ज्यादातर बार जीती. उन्होंने खेल से सबका स्तर ऊपर किया.
24 साल प्रेशर झेलना कितना मुश्किल है?
सुनील: प्रेशर रहता है. अपने लिए अच्छा करना, टीम के लिए करना. दर्शकों के लिए करना. बहुत ज्यादा हो जाता है ये.जगहों के हिसाब से हालात बदलते जाते हैं. ऐसे में बहुत मुश्किल होता है.
क्या आप अपने रिटायरमेंट के दौरान चिंतित थे कि आपकी परंपरा खो जाएगी?
सुनील: जब आप फास्ट बॉलिंग खेलते हैं तो लीगेसी नहीं सर्वाइव करने का सोचते हैं. उस वक्त भविष्य की नहीं सोचते. एक छोटी सी गलती से आपकी पसली और हाथ टूट सकता है.और मैं बिना हेलमेट खेलता था क्योंकि दिमाग में कुछ भी नहीं था बचाने को.
जब सचिन का दौर शुरू हुआ, तो आपको कब लगा कि यह मेरी जगह भर सकता है.
सुनील: वह मिडल ऑर्डर में था शुरू में. जब 1990 में उसने इंग्लैंड में सेंचुरी बनाई. टीम को जरूरत थी कि कोई टिककर खेले. स्ट्राइक लगातार बदले. कैप्टन आपके सिंगल रोकने की रणनीति बनाए.चौथी पांचवी बॉल पर सिंगल लेकर अगले ओवर की रणनीति बनाए. उस मैच में ऐसा ही हो रहा था. उस वक्त लगा कि यह बहुत आगे की सोचकर खेल रहा है.ये सारी चीजें टीवी पर नजर नहीं आती. मगर मैदान पर हैं, तो समझ आती हैं.
आपने अपना आखिरी दौर खूब एंजॉय किया फॉर्म और रिलैक्स के लिहाज से. सचिन पिछले दो तीन साल से एंजॉय नहीं कर पाए हैं.
सुनील: पता नहीं. उन्होंने बहुत सारे शॉट्स कम कर दिए. शायद एलबो इंजरी की वजह से. पर इससे उनके असर पर कमी नहीं आई. रन तो वह कमोबेश बना ही नहीं रहे हैं.
मैदान के बाहर आप सचिन से खूब मिले होंगे.
सुनील: नहीं ऐसा नहीं हुआ है. वह बिजी रहा है. आप जानते ही हैं कि कैसा शेड्यूल रहता है. मैंने बोला कि शैंपेन की जो 35 बोतलें जमा हो रखी हैं, टेस्ट मैच की सेंचुरी की याद में.वे कब खोलेंगे. मुझे याद है कि वह कोलंबा के ताज होटल में हमने क्रैब खाने का कंपटीशन किया था. वो जवान आदमी था. जीत गया.
आपने आखिरी मैच 1987 में खेला था. वर्ल्ड कप का सेमिफाइनल. आप अच्छा खेले, पर हम हार गए. कैसा होता है होम ग्राउंड का प्रेशर.
सुनील: प्रेशर तो होता है, सचिन पर भी होगा. प्रेशर होगा कि जो फैंस आए हैं. वे ठीक से बैठ गए. अभी यहां बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला हैं. मैं कहना चाहता हूं. हर उपाध्यक्ष जीवन काल तक तीन चार टिकटों का हकदार होता है. मगर पूर्व क्रिकेटरों के पास ऐसा हक नहीं होता. तो अगर शुक्ला जी ऐसा कर सकें कि कम से कम पूर्व कप्तानों को ही टिकट मिल सकें.
क्या हाइट का भी इशू होता है. छोटे कद के प्लेयर आप. सचिन लारा इतने सफल रहते हैं.
सुनील: करियर के शुरुआती दौर में एयरो ब्रिज नहीं होते थे. प्लेन लैंड करता था. सर डॉन ब्रैडमैन आए थे, रेस्ट ऑफ द वर्ल्ड टीम को रिसीव करने. वो आए और बोले, व्हेयर इज दैट लिटिल फैलो. सचिन की तरह बोल रहे थे, पतली आवाज थी. हम काफी बात करते रहे. सर गारफील्ड सोबर्स भी थे वहां. वह आए और बोले, यू लिटिल फैलोज आर टुगेदर. तो जवाब आया कि येस यू माइट हैव पावर. बट वी हैव फुटवर्क
सवाल ऑडियंस की तरफ से-
आपका क्या प्लान था रिटायरमेंट को लेकर?
सुनील: अगर मेरा वश चलता तो मैं एक साल पहले ही इंग्लैंड दौरे पर रिटायर हो जाता. मैं एक बार लंच पर इमरान खान के साथ गया था. मैंने उससे कहा कि शायद मैं इस सीरीज के बाद रिटायर हो जाऊं. वो बोला, मत करो यार ऐसा. वह बोला, यार अगले साल फरवरी में पाकिस्तान आ रहा है इंडिया. एक लास्ट फाइट हो जाए. पाकिस्तान इंडिया को इंडिया में हरा दे. और तुम नहीं होगे टीम में तो मजा आ जाए. मैंने कहा, मुझे नहीं लगता कि ऐसा दौरा होगा. इमरान ने कहा कि नहीं मुझे अपने पॉलिटिकल कनेक्शन से पता है. और फिर ऐसा ही हुआ.
मुझे अपने संन्यास का ऐसे समझ आया कि जब मैं घड़ी देखने लगा. अच्छा टी ब्रेक में 15 मिनट बचे हैं. अभी लंच में इतना वक्त बचा है. तो समझ आ गया कि अभी कम एंजॉय करने लगा हूं. देखिए ये सिर्फ बॉडी की बात नहीं है. माइंड की बात भी है. ये सचिन के साथ आखिरी महीने में ही हुआ होगा. उससे पहले वह नहीं सोच रहे थे खेल छोड़ने के बारे में.
सचिन के करियर का सबसे बड़ा रिग्रेट क्या होगा?
सुनील: वो मैच, जब उसने स्कोर किया. मगर टीम नहीं जीत पाई. या फिर कभी जब टीम जीती और वह बहुत कम योगदान कर पाया. मेरे ख्याल से परफॉर्मेंस से ज्यादा रिजल्ट मैटर करता है. आप जब 1983 की वर्ल्ड कप विजेता टीम मिलती है. तो एक फीलिंग ऑफ जॉय रहता है. ऐसे ही मशहूर टेस्ट विन वाली टीम मिलती है तो थ्रिल रहता है.