गांव के मेले में गुब्बारे पर निशाना साधते समय सौरभ चौधरी एक दिन ओलंपिक निशानेबाजी में छाने का सपना देखा करते थे और इस बार एशियाई खेलों में स्वर्ण के साथ वह इसे साकार करने की दिशा में आगे बढ़ गए हैं. जानकारों का कहना है कि कंधे पर एयर रायफल लटकाए सौरभ जब नीले, पीले और लाल रंग के गुब्बारों पर निशाना साधते थे, उन्हें लगता था कि वह अभिनव बिंद्रा हैं.
इसके बाद समय आया जब सौरभ रात-दिन निशानेबाजी का अभ्यास करने लगे और अंतर विद्यालय और अंतर राज्यीय प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेने लगे. उनका यह शौक धीरे-धीरे जुनून में बदल गया और एक दिन वह राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में खेलने लगे.
उनके किसान पिता जगमोहन सिंह ने, जिनके पास गांव में 20 एकड़ जमीन है, बेटे की अद्वितीय प्रतिभा को समझते हुए उसके लिए घर पर ही एक शूटिंग रेंज बना दी. स्कूल में पढ़ने वाले सौरभ ने घर की शूटिंग रेंज और उत्तर प्रदेश के अपने गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित बागपत में राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज अमित शेरॉन की अकादमी में अपने कौशल को निखारा.
पिता ने खरीदी पिस्टल
अपने बेटे के निखरते खेल से और प्रभावित होकर गन्ने की खेती करने वाले किसान पिता ने आखिरकार उसके लिए पिस्टल खरीद दी. शराब पीने और गाड़ी चलाने की कानूनी वैध आयु से नीचे आने वाले 16 साल के इस शूटर ने जब स्वर्ण जीता, तो शायद उन्हें पता भी नहीं था कि उन्होंने इस उम्र में कितनी बड़ी उपलब्धि हासिल की है.
इसलिए उनकी इस बात पर कोई हैरान नहीं हुआ जब सौरभ ने कहा कि पालेमबांग की शूटिंग रेंज में खेलते समय उन्हें ‘कोई दबाव महसूस नहीं हुआ.’ उन्होंने स्वर्ण जीतने के साथ देश-विदेश में खेल प्रेमियों को हैरान कर दिया. उन्हें कई बार के स्वर्ण पदक विजेता जीतू राय पर तरजीह देते हुए एशियाई खेलों की टीम में लिया गया था और यह उनका पहला प्रतिस्पर्धी सीनियर टूर्नामेंट था.
सौरभ के खिलाफ मुकाबले में दो बार के विश्व विजेता जापान के तोमोयुकी मत्सुदा और चार ओलंपिक स्वर्ण एवं तीन विश्व चैंपियनशिप खिताब विजेता दक्षिण कोरिया के जिन जोंग ओह थे, लेकिन किशोर निशानेबाज ने सबको पीछे छोड़कर इतिहास रच दिया.