कल तक सचिन के बिना टीम इंडिया की कल्पना करना भी मुश्किल था, लेकिन अब मास्टर ब्लास्टर टीम इंडिया पर बोझ की तरह नजर आने लगे हैं. एक-दो सीरीज में नाकामी की बात होती, तो सचिन पर सवाल उठाने की मजाल कोई नहीं करता, लेकिन पिछली दस टेस्ट पारियों में उनके रन बनाने और आउट होने का अंदाज देखकर अब हर कोई चुटकी ले रहा है कि ऐसे कब तक खेलेंगे सचिन.
पैर, आंखों और बल्ले का तालमेल गायब हो चुका है. उम्र हाथों से फिसलती जा रही है और 22 गज की पट्टी पर औंधे मुंह गिर गई है वो शोहरत, जिसे सचिन तेंदुलकर ने इंटरनेशनल क्रिकेट में 23 साल की तपस्या से हासिल किया है. मैच दर मैच, सीरीज दर सीरीज सचिन का सामना इसी सवाल से हो रहा है कि आखिर कब तक टीम इंडिया ढोएगी सचिन की नाकामियों का बोझ.
दुनिया उन्हें क्रिकेट का भगवान कहती है, लेकिन अब वो सम्मान भी सचिन पर ताना मारने का जरिया बन गया है. सचिन ने ये हक अपने दम पर हासिल किया था कि वो जब तक चाहें, इंटरनेशनल क्रिकेट खेलते रहें. उनका बेहतरीन रिकॉर्ड और क्रिकेट में उनका रुतबा किसी को खुलकर बोलने नहीं देता कि अब उन्हें अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए, लेकिन पहले न्यूजीलैंड और अब इंग्लैंड के खिलाफ सचिन का प्रदर्शन देखकर सुनील गावस्कर तक इशारा कर रहे हैं कि सचिन के लिए रिटायरमेंट प्लान बनाने का वक्त आ चुका है.
गावस्कर का कहना है, 'मुझे लगता है कि सचिन के मौजूदा फॉर्म को देखते हुए अब सेलेक्टर्स सचिन से उनकी भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करेंगे और फिर कोई फैसला लेंगे.' सचिन के कद्रदान रहे गावस्कर ऐसा क्यों कह रहे हैं, ये बात क्रिकेट के रिकॉर्ड बुक में दर्ज हो चुकी है. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पर्थ टेस्ट में 15 और 8 रन, एडिलेड टेस्ट में 25 और 13 रन, न्यूजीलैंड के खिलाफ हैदराबाद टेस्ट में 19 रन, बैंगलोर टेस्ट में 17 और 27 रन, इंग्लैंड के खिलाफ अहमदाबाद टेस्ट में 13 रन और अब मुंबई टेस्ट में 8 और 8 रन.
ये है सचिन का पिछले 6 टेस्ट मैच की दस पारियों में बैटिंग का रिकॉर्ड. 15.30 की औसत से 153 रन उनके बल्ले से निकले हैं और सबसे बड़ा स्कोर रहा है 27 रन. सचिन के इस फीके प्रदर्शन से उनके बड़े-बड़े समर्थकों का चेहरा फक्क पड़ने लगा है. गनीमत है कि उनका सम्मान बचाने के लिए बीसीसीआई ढाल बनकर खड़ी है.
यकीनन सचिन क्रिकेट के मैदान से सम्मान भरी विदाई के हकदार हैं, लेकिन अगर मैदान में उनका बल्ला ही उनके सम्मान के हिसाब से ना चले, तो फिर शब्दों की ढाल कब तक बचाएगी सचिन का सम्मान?