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18 साल की उम्र में इस खिलाड़ी ने टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया, 19 साल में उपकप्तान बना. 20 साल 358 दिन की उम्र में उसे कप्तानी मिल गई. 5 फुट 5 इंच का यह विकेटकीपर बल्लेबाज टेस्ट इतिहास का सबसे युवा कप्तान के तौर पर जाना गया. यह रिकॉर्ड करीब 15 साल तक उसके नाम रहा. 2019 में अफगानिस्तान के राशिद खान (20 साल 350 दिन) ने सबसे कम उम्र मे टेस्ट कप्तान बनने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया.
जी हां! बात हो रही है जिम्बाब्वे के ततेंदा तायबू की. आज उनका जन्मदिन है. वह 38 साल के हो गए. तायबू 14 मई 1983 को हरारे में पैदा हुए थे. चर्चिल ब्वॉयज हाई स्कूल में पढ़ रहे प्रतिभाशाली तायबू पर नजर पड़ते ही उन्हें 1999-2000 के वेस्टइंडीज दौरे पर भेज दिया गया था. तायबू जल्द ही अनुभवी अनुभवी विकेटकीपर एंडी फ्लावर का विकल्प बन गए.
... लेकिन 18 महीने के अंदर ही कप्तानी छोड़नी पड़ी
अप्रैल 2004 में जिम्बाब्वे क्रिकेट प्रबंधन में मची उथल-पुथल के चलते हीथ स्ट्रीक के इस्तीफे के बाद करीब 21 साल के तायबू को राष्ट्रीय टेस्ट टीम की बागडोर सौंप दी गई. हालांकि तायबू को धमकियों के चलते 18 महीने के अंदर ही कप्तानी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. इतना ही नहीं उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा. हालांकि 2007 के मध्य में फिर से जिम्बाब्वे टीम से जुड़े.
आखिरकार तायबू ने चर्च के कार्य को वरीयता देते हुए जुलाई 2012 में महज 29 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया. तायबू ने 28 टेस्ट में 30.31 की औसत से 1546 रन बनाए और विकेट के पीछे 62 शिकार किए. 150 वनडे में 29.25 की औसत से 3393 रन बनाने के अलावा उन्होंने विकेटकीपर के तौर पर 147 शिकार किए. वह 17 टी-20 इंटरनेशनल में भी उतरे.
क्या हुआ था तायबू के साथ, क्यों छोड़ना पड़ा था देश?
जब टेस्ट इतिहास में सबसे कम उम्र के कप्तान तायबू राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे की नीतियों के खिलाफ उठ खड़े हुए, तो उन्हें और उनके परिवार के अपहरण की कोशिश की गई, जान से मारने की धमकी तक मिली, इसके बाद उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा.
उन्हें अक्टूबर 2005 में मुगाबे की सरकार में एक मंत्री के कार्यालय में बुलाया गया था. तायबू ने अपने खिलाड़ियों को भुगतान नहीं करने या उचित व्यवहार नहीं करने के विरोध में कप्तानी छोड़ दी और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी.
इससे दो साल पहले जिम्बाब्वे के पूर्व कप्तान एंडी फ्लावर और उनके तेज गेंदबाज हेनरी ओलंगा को तब देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जब उन दोनों ने 2003 के वर्ल्ड कप के दौरान मुगाबे के शासनकाल में लोकतंत्र की मौत को उजागर करने के लिए काली पट्टी बांधी थी.
...भ्रष्टाचार के खिलाफ उतरे तायबू तब अकेला थे
फ्लावर और ओलंगा के संयुक्त विरोध की तुलना में असमानता और क्रिकेट प्रशासकों के भ्रष्टाचार के खिलाफ तायबू अकेला थे. वह मंत्री के बुलावे पर उसके दफ्तर पहुंचे. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मैं जो बताना चाहता था, उसने (मंत्री) ध्यान ही नहीं दिया. वह दराज के पास चला गया, एक लिफाफा निकाला और मेज पर फेंक दिया.'
तायबू ने कहा, 'मेरा दिमाग दौड़ रहा था. मैंने सोचना शुरू किया. मैंने फिल्मों में ऐसा देखा था, लेकिन यह वास्तव में मेरे साथ हो रहा है. उसने बिना एक शब्द कहे मेरी ओर लिफाफा क्यों फेंका... लिफाफे में क्या है? अगर यह पैसा है, तो क्या वह मुझे चुप रहने के लिए खरीदना चाहता है? मेरे दिमाग में बहुत सारे सवाल चल रहे थे.'
... तायबू को डराने के लिए- ऐसी हरकत की गई
तायबू के मुताबिक, 'लिफाफा तस्वीरों से भरा था. मैंने उन्हें बाहर निकाला. एक मृत व्यक्ति की तस्वीर निकली. मुझे झटका लगा क्योंकि मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी. मैंने उसे पलट दिया और दूसरी तस्वीर को देखा. वह भी ऐसी ही थी. सारी तस्वीरें मरे हुए लोगों की थीं. तो क्या वह मुझे चेतावनी दी जा रही थी कि मैं जल्द ही मर सकता हूं?'
तायबू को मुगाबे की जानु-पीएफ पार्टी (Zanu-PF party) के कार्यकर्ताओं द्वारा पहले से ही धमकी दी जा रही थी, जो क्रिकेट प्रशासन में शामिल थे. अपनी आत्मकथा 'कीपर ऑफ द फेथ' (Keeper of the Faith) में वह बताते हैं कि कैसे उन्हें फोन पर बार-बार धमकाया गया था कि उनकी पिटाई की जाएगी. उनकी पत्नी का कारों से पीछा भी किया गया था.
दो साल तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से बाहर रहना पड़ा
इसके बाद तायबू को दो साल तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से बाहर रहना पड़ा. इस दौरान वह बांग्लादेश, इंग्लैंड और नामीबिया में क्रिकेट खेलते रहे. जब वह 2007 में जिम्बाब्वे लौटे तो उन्हें बताया गया कि उन्हें क्यों भागने के लिए मजबूर किया गया था. वह जानु-पीएफ कार्यकर्ता से मिले, जो क्रिकेट कार्यकारी था. उसने कहा, 'भय का माहौल बनाया गया था, ताकि वह (तायबू) देश छोड़ दें.'
तायबू तब केवल 24 साल के थे और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने के लिए तरस रहे थे. जिम्बाब्वे में बदलाव लाने के लिए उन्होंने फिर से प्रयास किया. मुगाबे का शासन इतना हावी था कि क्रिकेट का सीमित प्रभाव ही पड़ सकता था. लेकिन खेल की दृष्टि से तायबू की प्रतिभा निखरी. अगस्त 2007 में अपनी वापसी पर खेली गई पहली वनडे सीरीज में उन्होंने शॉन पोलॉक, मखाया एनटिनी, मोर्ने मोर्केल और वर्नोन फिलेंडर के रहते दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नाबाद 107 रन बनाए.
2012 में तायूब ने चर्च में सेवा करने के उद्देश्य से इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास (दूसरी बार) की घोषणा की. हालांकि चार साल बाद उन्होंने जिम्बाब्वे क्रिकेट में हेड सेलेक्टर के तौर पर वापसी की. इन दिनों वह इंग्लैंड के लिवरपूल के नजदीक अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ रहते हैं. उन्होंने 2018 में प्रतिस्पर्धी क्रिकेट में वापसी कर श्रीलंका की घरेलू क्रिकेट टीम बादुरालिया सीसी के लिए प्रथम श्रेणी मैचों में हिस्सा लिया था.