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राष्ट्रमंडल खेलों में आसान नहीं है भारतीय हाकी की राह

ओलंपिक में गौरवशाली अतीत की थाती रखने वाली भारतीय पुरूष हाकी टीम की झोली राष्ट्रमंडल खेलों में खाली रही है और मैदान से बाहर के विवादों ने इस बार अपनी सरजमीं पर हो रहे इन खेलों में पदक जीतने की उसकी राह और दूभर कर दी है.

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ओलंपिक में गौरवशाली अतीत की थाती रखने वाली भारतीय पुरूष हाकी टीम की झोली राष्ट्रमंडल खेलों में खाली रही है और मैदान से बाहर के विवादों ने इस बार अपनी सरजमीं पर हो रहे इन खेलों में पदक जीतने की उसकी राह और दूभर कर दी है.

दिल्ली में तीन से 14 अक्तूबर तक होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों से पहले भारतीय हाकी में वर्चस्व की अदालती लड़ाई, मुख्य कोच जोस ब्रासा और हाकी इंडिया के बीच ठनने तथा नेशनल स्टेडियम समय पर नहीं मिल पाने का असर टीम के प्रदर्शन पर पड़ सकता है. कोच ब्रासा और पूर्व कप्तान तथा ड्रैग फ्लिकर संदीप सिंह का मानना है कि विवादों का असर खेल पर नहीं पड़ेगा और टीम इस बार पदक जरूर जीतेगी.

राष्ट्रमंडल खेलों में 1998 में हाकी को शामिल किये जाने के बाद से भारतीय महिलाओं ने जहां एक स्वर्ण और एक रजत पदक अपने नाम किया वहीं पुरूष टीम बैरंग लौटी है. कुआलालम्पुर में 1998 में हुए इन खेलों में भारतीय हाकी टीम चौथे स्थान पर रही जबकि 2006 मेलबर्न खेलों में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद वह मलेशिया और न्यूजीलैंड जैसी टीमों के बाद छठे स्थान पर रही. मैनचेस्टर में 2002 में हुए खेलों में उसने हिस्सा नहीं लिया.

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अपने यथार्थवादी नजरिये के लिये मशहूर ब्रासा ने भाषा से कहा, ‘राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर कोई कयास नहीं लगाये जा सकते. मैच के दिन कुछ भी हो सकता है. विश्व कप के बाद हमने अपने प्रदर्शन में काफी सुधार किया है.’ फरवरी मार्च में दिल्ली में हुए विश्व कप में आठवें स्थान पर रहने के बाद राजपाल सिंह की अगुवाई वाली टीम ने अजलन शाह कप जीता और हालिया यूरोप दौरे पर अच्छा प्रदर्शन किया.{mospagebreak}

राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के पूल में आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, मलेशिया और स्काटलैंड हैं. भारत के लिये सकारात्मक बात यह है कि उसने अजलन शाह कप में पाकिस्तान और आस्ट्रेलिया को हराया था. स्वर्ण पदक की प्रबल दावेदार रिक चार्ल्सवर्थ की आस्ट्रेलियाई टीम में इस बार कई नये चेहरे हैं जबकि विश्व कप में आखिरी स्थान पर रहने का मनोवैज्ञानिक दबाव पाकिस्तान पर होगा. ड्रैग फ्लिकर संदीप सिंह का मानना है कि मौजूदा फार्म जारी रहा तो टीम इस बार जरूर पदक जीतेगी.

उन्होंने कहा ,‘‘ विश्व कप में हमने कई गलतियां की लेकिन उसके बाद काफी मेहनत की है. हमने अजलन शाह कप जीता और यूरोप दौरे पर अच्छा प्रदर्शन किया. यह फार्म यदि कायम रहा तो हम राष्ट्रमंडल खेलों में पहली बार पदक जरूर जीतेंगे.’ ब्रासा ने हालांकि नेशनल स्टेडियम 15 सितंबर से पहले उपलब्ध कराने की मांग की है जो मौजूदा हालात में मुमकिन नहीं दिख रहा.

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कोच ने कहा, ‘हमें घरेलू मैदान पर खेलने का फायदा तभी मिलेगा जब हम वेन्यू पर कम से कम 15 दिन अभ्‍यास करें. इसके अलावा कुछ अंतरराष्ट्रीय टीमों से अभ्‍यास मैच खेलने भी जरूरी हैं.’ चयन में भूमिका नहीं मिलने से खफा ब्रासा का भारतीय सरजमीं पर संभवत: यह आखिरी टूर्नामेंट है.{mospagebreak}
टीम में अनुभवी फारवर्ड प्रभजोत सिंह को शामिल नहीं किये जाने से खफा ब्रासा ने भारतीय खेल प्राधिकरण और हाकी इंडिया पर निशाना साधते हुए कहा था कि उनके साथ गुलामों की तरह बर्ताव किया जा रहा है. दूसरी ओर साइ ने 30 नवंबर को खत्म होने वाले उनके करार का नवीनीकरण नहीं करने के स्पष्ट संकेत दिये हैं.

इससे पहले भारतीय हाकी में सत्ता की लड़ाई को लेकर टीम की राष्ट्रमंडल खेलों में भागीदारी ही खतरे में पड़ गई थी. खेल मंत्रालय ने केपीएस गिल की अगुवाई वाले भारतीय हाकी महासंघ की मान्यता बहाल करके उसे राष्ट्रीय महासंघ करार दिया है जबकि अंतरराष्ट्रीय हाकी महासंघ सिर्फ हाकी इंडिया को मान्यता देता है. उच्चतम न्यायालय ने हालांकि पिछले महीने भारतीय ओलंपिक संघ और हाकी इंडिया को राष्ट्रमंडल खेलों के लिये टीम के चयन का अख्तियार देकर मेजबान की भागीदारी सुनिश्चित की.

भारतीय टीम प्रबंधन ने इस बार गोलकीपरों की संख्या कम करके बेंचस्ट्रेंथ बढाने का यूरोपीय तरीका अपनाया है. राजपाल सिंह की अगुवाई वाली टीम में अनुभवी और युवा खिलाड़ियों का अच्छा सम्मिश्रण है. आक्रमण की जिम्मेदारी राजपाल के अलावा शिवेंद्र सिंह और तुषार खांडेकर पर होगी जबकि युवा धरमवीर सिंह भी फारवर्ड पंक्ति में शामिल हैं.

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प्लेमेकर की भूमिका अजरुन हलप्पा, श्रवणजीत सिंह और विक्रम पिल्लै के साथ रवि पाल, भरत चिकारा और दानिश मुज्तबा संभालेंगे. डिफेंस में संदीप के साथ धनंजय महाडिक, गुरबाज सिंह, सरदारा सिंह और प्रबोध टिर्की हैं जबकि एकमात्र गोलकीपर भरत छेत्री होंगे.

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