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इंग्लैंड दौरे पर होगी विराट कोहली की अग्निपरीक्षा

भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड में पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला खेलने की तैयारी कर रही है. इस टीम में सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण जैसे धुरंधर खिलाड़ी नहीं हैं और भारतीयों की उम्मीदें युवा और भरोसेमंद खिलाड़ी विराट कोहली पर टिकी हुई हैं. कोहली से उसके प्रशंसकों की उम्मीद है कि वह मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की जगह ले लेंगे.

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विराट कोहली (फाइल फोटो)
विराट कोहली (फाइल फोटो)

भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड में पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला खेलने की तैयारी कर रही है. इस टीम में सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण जैसे धुरंधर खिलाड़ी नहीं हैं और भारतीयों की उम्मीदें युवा और भरोसेमंद खिलाड़ी विराट कोहली पर टिकी हुई हैं. कोहली से उसके प्रशंसकों की उम्मीद है कि वह मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की जगह ले लेंगे.

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लेकिन क्रिकेट के जानाकर कहते हैं कि यह उतना आसान नहीं है, जितना दिखता है. 26 वर्षीय विराट कोहली ने इंग्लैंड में एक भी बड़ा मैच नहीं खेला है. और तो और, उन्होंने वहां फर्स्ट क्लास मैच भी नहीं खेला है. इंग्लैंड की हवा ऐसी है कि वहां गेंद जबर्दस्त स्विंग करती है. यह स्विंग अच्छे-अच्छे खिलाड़ियों के होश उड़ा देती है. जब मौसम खराब होता है यानी बादल छाए रहते हैं, तो गेंद और ज्यादा स्विंग करती है. भारतीय हालात में गेंद जैसे उठकर आती है, वैसा वहां नहीं होता. गेंद आती तो जरूर है, लेकिन उसका स्विंग उसकी दिशा बदल देता है और कई बार उसे खेलना असंभव हो जाता है. इस बार भारतीयों को जिस गेंद से खेलना होगा, वह है ड्यूक बॉल, जो जबर्दस्त स्विंग करती है. जरा-सा फुटवर्क गड़बड़ाया और बल्लेबाज कैच आउट.

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इतना ही नहीं इंग्लैंड तेज गेंदबाजों की नर्सरी है. वहां एक से बढ़कर एक तेज गेंदबाज पैदा हुए हैं. उनके तेज गेंदबाजों ने कई बार भारतीय बल्लेबाजों के छक्के छुड़ाए हैं. जब तेज गेंदबाज 150 किलोमीटर की गति से गेंदें फेंकते हैं जो उठती हैं, तो उन्हें खेलने के लिए कौशल की जरूरत पड़ती है. और अगर बहुत तेज गेंद स्विंग करे, तो उसे खेलना अंसभव हो जाता है. वैसे में सचिन की प्रतिभा और द्रविड़ का धैर्य चाहिए होता है. जिस खिलाड़ी का बेसिक्स मजबूत होता है, वही वहां सफल हो पाता है और इसलिए आज भी लॉर्ड्स को क्रिकेट का मक्का कहा जाता है और वहां सेंचुरी मारने वाले को बहुत इज्जत दी जाती है.

शुक्र है, विराट में वह सब कुछ है. वह एक ओर तो आक्रामक हैं तो दूसरी ओर उनमें बला का धैर्य है. वह सचिन की तरह अतिप्रतिभावान तो नहीं हैं, लेकिन हैं काफी मेधावी. द्रविड़ की तरह वह सोच-समझकर शॉट्स ले सकते हैं. हर गेंद को पढ़कर उसका ट्रीटमेंट करने की द्रविड़ की क्षमता उन्हें दुनिया से सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में शुमार कर देती है. विराट में यह गुण है.

जब गेंद हवा में स्विंग करती है, तो पहले से तयशुदा शॉट्स नहीं खेले जा सकते हैं और ऐसे में बल्लेबाज के पास शॉट्स की वेरायटी होनी चाहिए जो विराट में है. वह विकेट के चारों ओर शॉट्स लगाते हैं जो उनकी प्रतिभा को दर्शाता है. यह बहुत अच्छे बल्लेबाज की पहचान है. वह गेंदबाज को दबाव में ला सकते हैं और जरूरत पड़ने पर गांगुली की तरह ही आक्रामक हो सकते हैं.

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इस पांच टेस्ट मैचों की सीरीज से ही पता चलेगा कि विराट कोहली उस मेटल के बने हैं कि नहीं, जिसमें सचिन और द्रविड़ ढले थे. स्विंग को टैक्ल करने की उनकी क्षमता और तेज गेंदबाजों को मुंहतोड़ जवाब देने की उनकी प्रतिभा की असली परीक्षा वहीं होगी. यह परीक्षा उन्हें विश्व के शीर्ष खिलाड़ियों की कतार में खड़ा कर देगी.

चार साल पहले विराट ने टेस्ट खेलना शुरू किया था और उन्होंने काफी कुछ सीखा है. ऑस्ट्रेलिया की पिचों पर जहां गेंद अस्वाभाविक रूप से उठती है और बल्लेबाज के सामने चुनौती खड़ा करती है, विराट ने शानदार प्रदर्शन किया है. चार टेस्ट मैचों में 300 रन, कम नहीं होते.

यह मौका है कि विराट अपनी प्रतिभा और कौशल दिखाएं. भारतीय टीम में सचिन के जाने के बाद सूनापन आ गया है, इसे भरने का उनका पास मौका है. विराट का टेस्ट मैचों में बढ़िया रिकॉर्ड है. उन्होंने कुल 24 टेस्ट खेले हैं और 1721 रन बनाए हैं. उन्होंने 6 शतक लगाए हैं और सबसे बड़ी बात है कि उनका टेस्ट औसत 46.51 है.

अभी इंग्लैंड की टीम बहुत अच्छी नहीं दिख रही है लेकिन उसके पास तेज गेंदबाज तो हैं ही जो स्पीड जेनरेट कर सकते हैं और स्विंग भी करा सकते हैं. विराट कोहली की असली परीक्षा अब शुरू होती है.

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