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स्पॉट फिक्सिंग के बाद क्या होगा नया तरीका?

कुछ साल पहले तक की बात है जब भारत के कोई बड़ी श्रृंखला हारने (खास तौर पर पाकिस्तान से) पर बहुत बवाल होता था और कहा जाता था कि ये मैच 'फिक्स' था. शुरू में तो पूर्व क्रिकेटर या 'एक्सपर्ट' ऐसी संभावनाओं को ये कहते हुए सिरे से खारिज कर देते थे कि कोई खिलाडी देश से गद्दारी नहीं कर सकता.

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कुछ साल पहले तक की बात है जब भारत के कोई बड़ी श्रृंखला हारने (खास तौर पर पाकिस्तान से) पर बहुत बवाल होता था और कहा जाता था कि ये मैच 'फिक्स' था. शुरू में तो पूर्व क्रिकेटर या 'एक्सपर्ट' ऐसी संभावनाओं को ये कहते हुए सिरे से खारिज कर देते थे कि कोई खिलाडी देश से गद्दारी नहीं कर सकता.

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फिर कहानी की परतें खुलनी शुरू हुईं आर पता चला कि दाल में कुछ काला जरूर है. लगभग हर देश की टीम से कुछ खिलाड़ियों पर आर्थिक या क्रिकेट खेलने के प्रतिबन्ध लगे. पाकिस्तान के पूर्व कप्तान रशीद लतीफ ने तो चिल्ला-चिल्ला कर कहा कि तकरीबन हर अंतर्राष्ट्रीय मैच फिक्स होता है, और उन्होंने शारजाह को फिक्सिंग का गढ़ बताया.

खैर, अनेक देशों के बोर्ड ने कुछ कदम उठाये और फिर मान लिया गया कि 'All is Well.' लोग समझने लगे कि भद्रपुरुषों का ये खेल फिर से साफ-सुथरा हो गया है. लेकिन 2010 में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने हमें ये बताया कि समय के साथ-साथ फिक्सिंग का तरीका और जरिये भी बदल गए हैं.

इसी साल इंग्लैण्ड दौरे पर गयी पाकिस्तानी टीम के तीन सदस्य, एक स्टिंग ऑपरेशन के अनुसार, 'स्पॉट फिक्सिंग' में शामिल थे. पूरा मामला सामने आने पर पता चला, कि अपने कप्तान सलमान बट्ट के कहने पर तेज गेंदबाजों मोहम्मद आमिर और मोहम्मद आसिफ ने जानबूझकर 'नो बॉल' फेंकी थी. अब नो बॉल करना कोई गुनाह तो नहीं है, तो इसपर इतना बवाल क्यों हुआ?

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'विद्वान' बताते हैं कि इस प्रकार की चीजें फिक्सिंग का 'नया रूप' हैं, जिससे सांप भी मर जाता है और लाठी भी नहीं टूटती. इंग्लैण्ड समेत कुछ देशों में खेलों पर सट्टेबाजी वैध है, और सत्ता सिर्फ इस बात पर नहीं लगता कि कौन सी टीम मैच जीतेगी, बल्कि छोटी-छोटी बातों पर भी लगता है, जैसे क्या फलां ओवर में कोई गेंद 'वाइड' या नो बॉल होगी, या क्या कोई बल्लेबाज फलां ओवर 'मेडन' खेलेगा या नहीं?

अब फर्ज कीजिए कि किसी टीम का कप्तान और गेंदबाज आपकी मुट्ठी में है. आप उसे 10 रुपये देकर कहते हैं कि भैया, मैच का 20वां ओवर फलां गेंदबाज से करवाना और उसे कहना कि ओवर की दूसरी गेंद नो बॉल करना. अब आपने इसी बात पर 100 सट्टा लगा दिया कि 20वें ओवर की दूसरी गेंद नो बॉल होगी और ऐसा होने पर इससे 500 रुपये कम लिए. तो ऐसा करके आपने मोटा मुनाफा भी कम लिया और मैच फिक्स भी नहीं हुआ. उस नो बॉल के एक रन से टेस्ट मैच के नतीजे पर भी कोई खास फर्क पड़ने की संभावना नहीं है, और फिक्सिंग भी नहीं हुई.

'सट्टा विद्वान' ये भी कहते हैं कि हो सकता है कि हर मैच का नतीजा फिक्स न हो, लेकिन हाल के सालों में जो इतने ज्यादा 'करीबी मैच' खेले जा रहे हैं, उसके पीछे मूल रूप से स्पॉट फिक्सिंग ही है. बड़े-बड़े बुकी, जिनके खिलाड़ियों से नजदीकी रिश्ते हैं, वे मैच की दिशा तय करते हैं. लोगों ने किस टीम पर कितना पैसा सट्टे में लगाया है, बुकी उसी अनुसार सट्टे के भाव और मैच का रुख तय करते हैं ताकि उन्हें खुद इससे ज्यादा से ज्यादा फायदा हो. अंत में मैच का नतीजा चाहे उसी टीम के पक्ष में निकले, जिसके पक्ष में नतीजा आने की सबको उम्मीद थी, लेकिन मैच हुए हुए उतार-चढाव से लगने वाले सट्टे से बुकी मोटा मुनाफा कम लेते हैं.

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या, जैसे आईपीएल में हुए ताजा खुलासे में सामने आया है, कि कोई एक गेंदबाज किसी एक खास इशारे से अपने बुकी को बता देगा कि वो इस ओवर में अधिक रन देने जा रहा है, और बुकी बैठे-बैठे अच्छे पैसे कम लेता है, जिसका कुछ हिस्सा खिलाड़ी को भी मिलेगा.

ऐसे में मैच के नतीजे पर भी खास फर्क नहीं पड़ा, खिलाडी मैच को 'फिक्स करने के कलंक' से भी बच गए और 'ऊपरी' कमाई भी हो गयी. लेकिन गलत तो गलत ही है, चाहे वो मैच फिक्सिंग हो या स्पॉट फिक्सिंग!!

जब मैच फिक्सिंग के मामले सामने आए तो 'अक्लमंद लोगों' ने स्पॉट फिक्सिंग को इजाद किया; अब देखते हैं कि स्पॉट फिक्सिंग सामने आने पर कोई नया अविष्कार होता है क्या? आसार पूरे हैं, क्यों कुछ विद्वान ये भी कह गए हैं- बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया!

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