74 का स्कोर कतई बुरा नहीं है. किसी मेडिकल या इंजीनियरिंग के छात्र से पूछिए, कहेगा कि 'डिस्टिंक्शन' से सिर्फ एक ही अंक पीछे रह गए. सचिन जैसे खिलाड़ी के लिए इसे ऊंट के मुंह में जीरे की तरह कह सकते हैं, जिसके लिए क्रिकेट के खेल में शतक बनाना पाव-भाजी खाने जैसा आसन और मजेदार काम हो.
हजारों दर्शक मैदान में और करोड़ों अपने-अपने घरों में बैठकर तेंदल्या की संभवतः आखिरी पारी में तीन अंकों की उम्मीद लगाये बैठे थे. सचिन दो अंकों पर आउट हुए और भारत राष्ट्रीय शोक में डूब गया. फिर से नब्बे का दशक याद आ गया, जब क्रिकेट देखने का मतलब सचिन की बल्लेबाज़ी ही था.
उनके 100 शतक या 34000 रन की बातें सुन और पढ़कर हम सब अब तक 'सचिनोलोजी' में काफी विद्वान हो चुके होंगे, लेकिन ये समझना और भी जरूरी है कि सचिन तेंदुलकर होना और बनना कितना कठिन है.
शिक्षा जगत में आम कहावत है कि एक अध्यापक के बच्चे बड़ी मुश्किल से 'सेट' होते हैं, और ऊपर से जब माताजी इंश्योरेंस एजेंट हों तो हर दूसरे शख्स कहेगा कि बड़ी 'टिपिकल इंडियन मिडल क्लास फैमिली' है. इन्हीं मिडल क्लास आदर्शों और संस्कारों के साथ दुनिया के सबसे बड़े बल्लेबाज होने के साथ-साथ करोड़ों लोगों की उम्मीदों का बोझ उठाकर 24 साल तक जो बिना रुके और डोले चले, वही लाखों में एक सचिन तेंदुलकर बनता है.
स्कूल में आपने 'पार्टनर इन क्राइम' रहे विनोद कांबली जब टेस्ट करियर की शुरुआत में ही 2 दोहरे शतक जड़ दें और लोग कांबली को आपसे ज्यादा गुणी बल्लेबाज कहें, तो ऐसे में 'तेंदल्या' से 'क्रिकेट के भगवान' का दर्जा जो पाए, वही लाखों में एक सचिन तेंदुलकर बनता है.
आलम ये रहा था कि जब सचिन शतक लगाकर मैच जिताए, तो पूरे देश में दिवाली मनाई जाती थी और उनके आउट होते ही आधे लोग तो गुस्से में टीवी देखना बंद कर देते थे और आधे लोग आलोचक हो जाते थे. भारत की किस-किस हार में सचिन का बल्ला नहीं चला, ये लोग जल्दी याद करते हैं, लेकिन जो 100 शतक बने, जिसकी 2 दशक पहले कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, उस इतिहास को जो रचे, वही लाखों में एक सचिन तेंदुलकर बनता है.
जिस पर कभी विज्ञापनों पर अधिक ध्यान देने का आरोप लगे, तो कभी दबी जुबान से मैच फिक्सिंग का आरोप, कभी कहा जाए कि यह रिकॉर्ड्स के लिए खेलता है, तो कभी संन्यास लेने का दबाव हो, इतनी भारी आलोचना और दबाव के बीच भी जो शख्स एक शिला की तरह मजबूत और वज्र की तरह दृढ़ता से डटा रहे, वही लाखों में एक सचिन तेंदुलकर बनता है.
सच ये है कि यही वो खिलाड़ी है जिसने 80 और 90 के दशक में जन्मे लोगों को क्रिकेट से प्यार करना सिखाया, जिसने ये बताया कि महानता के शिखर पर पहुंचकर भी नम्रता को कैसे बरकरार रखा जाए, जिसने ये सिखाया कि मेहनत और लगन से एक साधारण परिवार का एक लड़का देश की आंखों का तारा बन सकता है, वही सचिन तेंदुलकर अब खेल के मैदान से दूर भले ही जा रहा हो, लेकिन सचिन के लिए भी ये सच ही है "...कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी".