लंबे समय से प्रशासनिक अस्थिरता झेल रही भारतीय मुक्केबाजी की तस्वीर इस साल बदल गई. अधिकांश टूर्नामेंटों में जीते हुए पदकों ने बेहतर भविष्य की उम्मीद भी जगाई है.
गौरव बिधूड़ी और एमसी मेरी कॉम से लेकर शिव थापा तक सभी ने 2017 में सफलता हासिल की. अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी में भी भारत का ग्राफ ऊपर गया है और 2006 के बाद पहली बार भारत को विश्व चैंपियनशिप ( 2018 महिला और 2021 पुरुष ) की मेजबानी मिली.
इसी साल भारतीय महिला टीम के पहले विदेशी कोच स्टीफनी कोटालोरडा भी भुगतान में विलंब के कारण रुखसत हो गए. पिछले साल की तमाम विफलताओं को इस साल भुलाकर भारतीयों ने मुक्केबाजी में सफलता का परचम लहराया.
यह प्रक्रिया साल के आरंभ में ही शुरू हो गई, जब महिला, पुरुष और जूनियर मुक्केबाजों के लिए विदेशी कोचों की नियुक्ति की गई. यूरोपीय कोचों के आयोग के उपाध्यक्ष सैंटियागो नीवा पुरुष टीम के और फ्रांस के स्टीफाने कोटालोरडा महिला टीम के कोच बने. इटली के रफेले बर्गामास्को जूनियर टीम के कोच नियुक्त किये गए.
ताशकंद में एशियाई चैंपियनशिप में शिवा थापा ( 60 किलो ) पदकों की हैट्रिक लगाने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज बन गए. उन्होंने 2013 में स्वर्ण, इस सत्र में रजत और 2015 में कांस्य पदक जीता था. उन्होंने इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में हर रंग का पदक जीत लिया है.
भारत ने कुल मिलाकर चार पदक जीते और उजबेकिस्तान तथा कजाखस्तान के बाद तीसरा स्थान हासिल किया. तीन महीने बाद हैम्बर्ग में विश्व चैंपियनशिप में नीवा की बतौर कोच पहली परीक्षा थी. गौरव बिधूड़ी ( 56 किलो ) बड़े स्तर पर पदार्पण के साथ पदक जीतने वाले दूसरे भारतीय मुक्केबाज बन गए.
यह भारत का अब तक का चौथा कांस्य पदक था. उन्होंने सभी को हैरान कर दिया, क्योंकि गौरव मूल टीम का हिस्सा भी नही थे. एशियाई मुक्केबाजी परिसंघ से मिले वाइल्ड कार्ड पर वह खेले थे.
वियतनाम में एशियाई चैंपियनशिप में पांच बार की विश्व चैंपियन एमसी मेरी कॉम ने पांचवां स्वर्ण पदक अपने नाम किया. भारत ने इस टूर्नामेंट में एक रजत और पांच कांस्य पदक भी जीते.
भारत में पहली युवा विश्व चैंपियनशिप का आयोजन किया गया और एक सफल मेजबान के रूप में भारत ने अपनी धाक जमाई. गुवाहाटी में हुई चैंपियनशिप में भारत ने सात स्वर्ण पदक भी जीते.