एक ओर टीम इंडिया ने जिम्बाब्वे को 3-0 से पछाड़ने के बाद होटल में जश्न मनाया तो वहीं दूसरी ओर जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड के पास इतने भी पैसे नहीं हैं कि वो अपने क्रिकेटरों के खाने और आने-जाने का खर्च दे सके.
बुलावायो में, जहां पिछले दो मैच हुए, जिम्बाब्वे टीम के खिलाड़ी तीन बार तो बिना भोजन किए ही स्टेडियम में अभ्यास करने के लिए पहुंचे.
जिम्बाब्वे बोर्ड की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं चल रही है और यह बात शायद ही किसी से छुपी हुई है लेकिन बोर्ड के पास लगता है कि इतने भी पैसे नहीं है कि वो अपने क्रिकेटरों के होटल के ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर का खर्च उठा सके.
जिम्बाब्वे टीम के पूर्व खिलाड़ी और मौजूदा समय में टीम के बल्लेबाजी कोच ग्रांट फ्लावर ने भी इस बात को कबूल किया है. उनका कहना है, 'जिम्बाब्वे क्रिकेट काफी मुश्किल हालात से गुजर रहा है, हम काफी संघर्ष कर रहे हैं और मैं यह नहीं बता सकता है कि हमारा यह मुश्किल दौर कब खत्म होगा.' उन्होंने कहा कि अगर यह दौर लगातार चलता रहा तो हमारी टीम जल्द ही अपनी पहचान खो देगी.
भारत और जिम्बाब्वे के खिलाडि़यों को मिलने वाली सुविधाओं और धनराशि की तुलना की जाए तो इनके बीच बड़ा अंतर देखने को मिलता है.
मौजूदा समय में टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली, जिन्हें ए ग्रेड में रखा गया है, को सालान लगभग 186,000 डॉलर मिल रहे हैं. वहीं जिम्बाब्वे टीम के कप्तान ब्रेंडन टेलर को सालाना 6000 डॉलर मिलते हैं. टीम इंडिया के हर खिलाड़ी को 1000 डॉलर प्रत्येक वनडे मैच खेलने के लिए दिए जाते हैं. साथ ही मैच फीस के रूप में हर भारतीय खिलाड़ी को 80 डॉलर भत्ते के रूप में मिलते हैं.
वहीं दूसरी ओर जिम्बाब्वे टीम के कप्तान और उनके टीम के अन्य क्रिकेटरों को ना तो कोई मैच फीस दिया जाता है और ना ही कोई भत्ता.
इसके अलावा सबसे बड़ी बात ये है कि जिम्बाव्वे के खिलाड़ियों को कभी भी समय से भुगतान नहीं किया जाता है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जिम्बाब्वे टीम के एक खिलाड़ी का वहां के बोर्ड पर 1500 डॉलर का कर्ज है. इस खिलाड़ी का कहना है कि अब इस देश में क्रिकेटरों का भविष्य बहुत ही जोखिम भरा है.