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क्रिकेटर का छलका दर्द, फटे हुए जूतों की फोटो डालकर बताया जिम्बाब्वे टीम का हाल

जिम्बाब्वे के बल्लेबाज रेयान बर्ल ने देश के क्रिकेट के बुरे हाल की ओर ध्यान खींचा है. 27 साल के इस क्रिकेटर ने सोशल मीडिया पर फटे हुए जूतों की तस्वीर पोस्ट कर टीम के लिए प्रायोजक लाने की भावुक अपील की है.

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Zimbabwe cricket ( Ryan Burl, Twitter)
Zimbabwe cricket ( Ryan Burl, Twitter)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • जिम्बाब्वे के बल्लेबाज रेयान बर्ल ने फटे हुए जूतों की तस्वीर शेयर की है
  • उन्होंने पूछा है- क्या कोई संभावना है कि हमें कोई प्रायोजक मिले
  • बर्ल की यह अपील काम कर गई और प्यूमा का रिएक्शन आया

जिम्बाब्वे के बल्लेबाज रेयान बर्ल ने देश के क्रिकेट के बुरे हाल की ओर ध्यान खींचा है. 27 साल के इस क्रिकेटर ने सोशल मीडिया पर फटे हुए जूतों की तस्वीर पोस्ट कर टीम के लिए प्रायोजक लाने की भावुक अपील की है.

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बाएं हाथ के मध्यक्रम के बल्लेबाज बर्ल ने जिम्बाब्वे की ओर से तीन टेस्ट, 18  वनडे इंटरनेशनल और 25 टी20 इंटरनेशनल मुकाबले खेले हैं. उन्होंने अपने जूतों की तस्वीर, गोंद और इसे ठीक करने के लिए कुछ सामान की तस्वीर ट्वीट की है.

जब कुछ क्रिकेट बोर्ड प्रायोजन से ही करोड़ों डॉलर कमा रहे हैं तब बर्ल ने ट्वीट करके पूछा, ‘क्या कोई संभावना है कि हमें कोई प्रायोजक मिले, जिससे कि हमें प्रत्येक सीरीज के बाद अपने जूते चिपकाने नहीं पड़ें.’

विश्व कप 1983 से पहले वनडे इंटरनेशनल टीम का दर्जा हासिल करने वाले जिम्बाब्वे को 1992 में टेस्ट दर्जा मिला, लेकिन पिछले कुछ समय से टीम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जूझ रही है.

देश फ्लावर बंधुओं एंडी और ग्रांट, एलिस्टेयर कैंपबेल, डेव हॉटन, हीथ स्ट्रीक और नील जॉनसन जैसे खिलाड़ी तैयार करने में विफल रहा है. इन खिलाड़ियों ने जिम्बाब्वे का प्रतिनिधित्व करते हुए काफी सफलता हासिल की थी.

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अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने सरकारी हस्तक्षेप के कारण 2019 में देश के क्रिकेट बोर्ड को निलंबित कर दिया और पिछले साल टीम को टी20 विश्व कप क्वालिफायर में हिस्सा लेने से भी रोक दिया. बाद में हालांकि जिम्बाब्वे को बहाल कर दिया गया.

हाल में पाकिस्तान ने जिम्बाब्वे दो टेस्ट की सीरीज में क्लीन स्वीप करने के अलावा टी20 सीरीज 2-1 से जीती.

बर्ल की अपील काम कर गई -

बर्ल की यह अपील काम कर गई और जूते बनाने वाली शीर्ष कंपनियों में शामिल प्यूमा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रायोजन का वादा किया है.

बर्ल के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए प्यूमा क्रिकेट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा- गोंद को फेंकने का समय आ गया है, हम आपको सहायता देंगे.

आइए जानते हैं जिम्बाब्वे क्रिकेट के अब तक के सफर के बारे में

शुरुआती दौर: 1983 के अपने पहले विश्व कप (तब प्रूडेंशियल कप) में जिम्बाब्वे को पांच मुकाबलों में हार मिली. हालांकि ऑस्ट्रेलिया को 13 रनों से हराकर जिम्बाब्वे अपने आगमन की घोषणा करने में सफल रही थी. 

इसके बाद 1987 विश्व कप में वे अपने सभी छह ग्रुप स्टेज मैच हार गए. 1992 के वर्ल्ड कप में जिम्बाब्वे को आठ राउंड रॉबिन मैचों में से सात में हार मिली. टीम को एकमात्र जीत इंग्लैंड के खिलाफ हुई, जिसे क्रिकेट इतिहास के बड़े उलटफेरों में गिना जाता है. उस मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए जिम्बाब्वे ने 134 रन बनाए. इसके जवाब में इंग्लैंड की टीम 125 रनों पर सिमट गई थी. जिम्बाब्वे के लिए तेज गेंदबाज एडो ब्रांडेस ने 21 रन देकर चार विकेट चटकाए थे. 

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इस प्रदर्शन से प्रभावित होकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने जिम्बाब्वे को दर्जा दे दिया था. शुरुआती 30 टेस्ट में जिम्बाब्वे का प्रदर्शन काफी खराब रहा. उसने अपने घर पर पाकिस्तान के खिलाफ सिर्फ एक टेस्ट जीता. उस मुकाबले में ग्रांट फ्लावर ने नाबाद 201 रनों की पारी थी. वहीं हीथ स्ट्रीक ने शानदार गेंदबाजी करते हुए मैच में कुल नौ विकेट लिए थे. जिम्बाब्वे के लिए खेलने वाले पहले अश्वेत क्रिकेटर हेनरी ओलोंगा का वह पदार्पण टेस्ट मैच था.

स्वर्णिम दौर:  1997 से 2002 तक के पांच वर्षों को जिम्बाब्वे क्रिकेट का स्वर्णिम दौर कहा जाता है. टीम की सफलता में फ्लावर बंधुओं, हीथ स्ट्रीक, नील जॉनसन, हेनरी ओलोंगा जैसे खिलाड़ियों का अहम योगदान रहा. जिम्बाब्वे ने 1998 में पाकिस्तान को उसकी जमीं पर टेस्ट सीरीज में 1-0 से मात दी. उसी साल उन्होंने हरारे टेस्ट में भारत को 61 रनों से हराया. 

Grant and Andy Flower (Getty)

जिम्बाब्वे का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1999 के विश्व कप में आया, जहां वे सुपर सिक्स में पांचवें स्थान पर रहे. टीम ने ग्रुप स्टेज में भारत को तीन रनों से हराया. जिम्बाब्वे ने दक्षिण अफ्रीका को भी शिकस्त दी. यह जिम्बाब्वे की अपने पड़ोसी देश के खिलाफ पहली जीत थी. 2000-01 में न्यूजीलैंड के खिलाफ घर और बाहर दोनों जगह जिम्बाब्वे ने जीत हासिल की. 

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पतन की शुरुआत: 2003 के विश्व कप में जिम्बाब्वे और दक्षिण अफ्रीका ने संयुक्त रूप से मेजबानी की थी. जिम्बाब्वे के पहले मुकाबले में एंडी फ्लावर और हेनरी ओलोंगा ने 'लोकतंत्र की मृत्यु' का शोक मनाने के लिए काले रंग की पट्टी पहनी थी. दोनों खिलाड़ी रॉबर्ट मुगाबे की सरकार के रवैये से बेहद नाराज थे. टूर्नामेंट के बाद दोनों ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया और उन्हें देश निकाला का सामना करना पड़ा. 

2004 में जिम्बाब्वे के तत्कालीन कप्तान हीथ स्ट्रीक को जिम्बाब्वे क्रिकेट यूनियन (ZCU) ने बर्खास्त कर दिया गया था. इसके विरोध में 14 अन्य खिलाड़ियों ने क्रिकेट में सरकारी हस्तक्षेप के विरोध में बायकॉट कर दिया. 2005 में जिम्बाब्वे सरकार ने मुरामात्सविना (मूव द रबिश) अभियान चलाया, जिसने क्रिकेट के साथ ही देश की पूरी सामाजिक स्थिति को बाधित कर दिया. इस अभियान का मकसद देशभर में झुग्गी बस्तियों को जबरन खाली करना था. संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुमानों के मुताबिक, इस अभियान से लगभग सात लाख लोगों की रोजी-रोटी चली गई. 2006 में जिम्बाब्वे की प्रथम श्रेणी प्रतियोगिता (लोगान कप) को निलंबित कर दिया गया था. देश की खराब आर्थिक हालात और खिलाड़ियों को लंबे समय तक वेतन नहीं मिलने से जिम्बाब्वे क्रिकेट गर्त में चला गया. 2006 में राजनीतिक अस्थिरता के कारण जिम्बाब्वे का टेस्ट दर्जा निलंबित कर दिया गया था.

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ताबूत में आखिरी कील

छह साल के निर्वासन के बाद जिम्बाब्वे ने 4 अगस्त 2011 को टेस्ट क्रिकेट में वापसी की. जिम्बाब्वे क्रिकेट ने घरेलू प्रतियोगिताओं को प्रायोजित करने और किट के निर्माण के लिए रीबॉक के साथ 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर भी किए. मंदी शुरू होने से पहले 2014 तक हालात ठीक रहे. 2014 टी20 वर्ल्ड कप में जिम्बाब्वे पहले दौर से बाहर हो गई. 2017 में जिम्बाब्वे ने श्रीलंका को वनडे सीरीज में 3-2 से मात दी. 2019 के विश्व कप के लिए टीम क्वालिफाई नहीं कर सकी, जिसके बाद सरकार का हस्तक्षेप बढ़ता चला गया. इसके बाद आईसीसी ने जिम्बाब्वे क्रिकेट को कर दिया दिया था. पिछले साल टीम को टी20 विश्व कप क्वालिफायर में हिस्सा लेने से भी रोक दिया. बाद में हालांकि जिम्बाब्वे को बहाल कर दिया गया. हाल ही में पाकिस्तान ने जिम्बाब्वे दो टेस्ट की सीरीज में क्लीन स्वीप करने के अलावा टी20 सीरीज 2-1 से जीती.

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