कोविड-19 लॉकडाउन ने चक्का फेंक एथलीट (Discus thrower) कमलप्रीत कौर के मानसिक स्वास्थ्य पर इतना असर डाला था कि उन्होंने मनोवैज्ञानिक दबाव से निपटने के लिए क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. लेकिन चक्का हमेशा उनका पहला प्यार बना रहा और अब वह भारत को ओलंपिक खेलों में ऐतिहासिक एथलेटिक्स पदक दिलाने से कुछ कदम दूर खड़ी हैं. उन्होंने शनिवार को 64 मीटर दूर चक्का फेंक कर 2 अगस्त को होने वाले फाइनल के लिए क्वालिफाई किया.
पंजाब में काबरवाला गांव की कौर का जन्म किसान परिवार में हुआ. पिछले साल के अंत में वह काफी हताश थीं, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण उन्हें किसी टूर्नामेंट में खेलने को नहीं मिल रहा था. वह अवसाद महसूस कर रही थीं, जिससे उन्होंने अपने गांव में क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था.
कौर की कोच राखी त्यागी ने पीटीआई से कहा, ‘उनके गांव के पास बादल में एक SAI केंद्र है और हम 2014 से पिछले साल तक वहीं ट्रेनिंग कर रहे थे. कोविड-19 के कारण सबकुछ बंद था और वह अवसाद (पिछले साल) महसूस कर रही थी. वह भाग लेना चाहती थी, विशेषकर ओलंपिक में.’
With courage and determination #KamalpreetKaur becomes the 1st ever Indian woman to breach the qualification mark in discus throw at the #Olympics#Cheer4India@PMOIndia @ianuragthakur @NisithPramanik @WeAreTeamIndia @afiindia @Adille1 @PIB_India
1/2 pic.twitter.com/P1a9FKmYz3— SAIMedia (@Media_SAI) July 31, 2021
उन्होंने कहा, ‘वह बेचैन थी और यह सच है कि उसने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था, लेकिन यह किसी टूर्नामेंट के लिए या पेशेवर क्रिकेटर बनने के लिए नहीं था, बल्कि वह तो अपने गांव के मैदानों पर क्रिकेट खेल रही थी.’
'वह थोड़ी नर्वस थी, यह उसका पहला ओलंपिक था'
भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) की कोच त्यागी ओलंपिक के लिए उनके साथ टोक्यो नहीं जा सकीं. लेकिन उन्हें लगता है कि उनकी शिष्या अगर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करे तो इस बार पदक जीत सकती है. उन्होंने कहा, ‘मैं उससे हर रोज बात करती हूं, वह आज थोड़ी नर्वस थी, क्योंकि यह उसका पहला ओलंपिक था और मैं भी उसके साथ नहीं थी. मैंने उससे कहा कि कोई दबाव नहीं ले, बस अपना सर्वश्रेष्ठ करो. मुझे लगता है कि 66 या 67 मीटर उसे और देश को एथलेटिक्स का पदक दिला सकता है.’
रेलवे की कर्मचारी कौर इस साल शानदार फार्म में रही हैं, उन्होंने मार्च में फेडरेशन कप में 65.06 मीटर चक्का फेंककर राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था और वह 65 मीटर चक्का फेंकने वाली पहली भारतीय महिला बन गई थीं. जून में उन्होंने इंडियन ग्रां प्री 4 में 66.59 मीटर के थ्रो से अपना राष्ट्रीय रिकॉर्ड सुधारा और दुनिया की छठे नंबर की खिलाड़ी बनीं.
मां के विरोध के कारण एथलेटिक्स में नहीं आना चाहती थीं
परिवार की आर्थिक समस्याओं और अपनी मां के विरोध के कारण वह शुरू में एथलेटिक्स में नहीं आना चाहती थीं, लेकिन अपने किसान पिता कुलदीप सिंह के सहयोग से उन्होंने इसमें खेलना शुरू किया. शुरू में उन्होंने गोला फेंक खेलना शुरू किया, लेकिन बाद में बादल में साइ केंद्र में जुड़ने के बाद चक्का फेंकना शुरू किया.
बादल में कौर के स्कूल की खेल शिक्षिका ने एथलेटिक्स से रूबरू कराया, जिसके बाद वह 2011-12 में क्षेत्रीय और जिला स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने लगीं. लेकिन उन्होंने फैसला किया कि वह अपने पिता पर अतिरिक्त वित्तीय दबाव नहीं डालेंगी, जिन पर संयुक्त परिवार की जिम्मेदारी थी.
2016 में अपना पहला सीनियर राष्ट्रीय खिताब जीता
उन्होंने 2013 में अंडर-18 राष्ट्रीय जूनियर चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया और दूसरे स्थान पर रहीं. 2014 में बादल में साइ केंद्र से जुड़ी और अगले साल राष्ट्रीय जूनियर चैम्पियन बन गईं. 2016 में उन्होंने अपना पहला सीनियर राष्ट्रीय खिताब जीता. अगले तीन वर्षों तक वह सीनियर राष्ट्रीय खिताब जीतती रहीं. लेकिन इस साल एनआईएस पटियाला में आने के बाद वह सुर्खियों में आईं.
टोक्यो जाने से पहले उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता कृष्णा पूनिया से सलाह भी मांगी जो अब तक ओलंपिक में इस खेल की सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली खिलाड़ी हैं. पूनिया 2012 ओलंपिक के फाइनल में छठे स्थान पर रही थीं. पूनिया ने कहा, ‘उसने पूछा कि ओलंपिक में कैसे किया जाए. क्योंकि यह उसका पहला ओलंपिक था तो वह थोड़ी तनाव में थी. मैंने उससे कहा कि बस तनावमुक्त होकर खेलना. पदक के बारे में मत सोचना, बस अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना.’
कृष्णा पूनिया का लंबे समय से चला आ रहा रिकॉर्ड तोड़ा
मार्च में कौर ने पूनिया का लंबे समय से चला आ रहा राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था. पूनिया ने कहा, ‘उसके पास पदक जीतने का शानदार मौका है. यह भारतीय एथलेटिक्स में बड़ा पल होगा और देश की महिलाएं भी चक्का फेंक और एथलेटिक्स में हाथ आजमाना शुरू कर देंगी.’