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टोक्यो ओलंपिक में कुश्ती लड़ेगा हरियाणा का बेटा रवि दहिया, पिता खेती करके भरते हैं परिवार का पेट

सोनीपत के एक छोटे से गांव नाहरी से संबंध रखने वाले रवि दहिया, 57 किलोग्राम वर्ग में देश के लिए ओलंपिक खेलने जा रहे हैं, रवि के पिता के पास महज एक एकड़ जमीन है. जिस पर खेती करके घर का गुजारा चलता है.

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पहलवान रवि दहिया (Twitter Image)
पहलवान रवि दहिया (Twitter Image)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चाचा को देखकर कुश्ती का चढ़ा जूनून 
  • अनेकों नेशनल-इंटरनेशनल पदक जीते 
  • 6 साल की उम्र से सीख रहे हैं कुश्ती 

सोनीपत के गांव नाहरी के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे असाधारण पहलवान रवि दहिया, अब ओलिंपिक में अपना दमखम दिखाने के लिए टोक्यो जाएंगे. पहलवान रवि दहिया का टोक्यो ओलंपिक जाने के लिए टिकट कट गया है. रवि दहिया की इस उपलब्धि पर गांव नाहरी में खुशी का माहौल है. रवि के परिवार को उम्मीद है कि उनका बेटा प्रदेश के साथ-साथ देश का नाम रोशन करेगा और देश के लिए पदक लेकर आएगा. जिसके लिए वह कड़ी मेहनत कर रहा है. रवि दहिया के पिता महज 1 एकड़ जमीन के मालिक हैं, वह इसी में खेती कर अपने परिवार का गुजारा करते हैं.

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रवि के पिता ने आजतक को बताया ''मुझे जुनून था कि मेरा बेटा कुश्ती करे और देश का नाम रोशन करे. आज मेरे बेटे ने वही कर दिखाया है. रवि ने 6 साल की उम्र में गांव के एक पहलवान के पास अपने करियर की शुरुआत की थी. छोटे से अखाड़े में खेलकर रवि राज ओलंपिक फतह करने जा रहा है.''

पहलवान रवि दहिया के मेडलों के साथ खड़े परिवार के लोग
पहलवान रवि दहिया के मेडलों के साथ खड़े परिवार के लोग

सोनीपत के एक छोटे से गांव नाहरी से संबंध रखने वाला एक साधारण परिवार, जिसका बैकग्राउंड खेती का है, उस परिवार का एक बेटा 57 किलोग्राम वर्ग में देश के लिए ओलंपिक खेलने जा रहा है.

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टोक्यो ओलंपिक शुरू होने में महज कुछ दिन ही बचे हैं. रवि ओलंपिक पदक लाने के लिए पोलैंड में कड़ी मेहनत कर रहे हैं. रवि ने 8 साल की उम्र से ही कुश्ती के अखाड़े में कलाएं सीखना शुरू कर दिया था. इसी का नतीजा है कि वे आज टोक्यो ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने जा रहे हैं.

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पहलवान रवि दहिया ने बचपन से शुरू कर दी थी कुश्ती
पहलवान रवि दहिया ने बचपन से शुरू कर दी थी कुश्ती

रवि की कुछ उपलब्धियों पर हम नजर डालें तो साधारण किसान का ये बेटा असाधारण प्रतिभा से लबरेज है. रवि ने पिछले साल एशियन चैंपियनशिप में देश के लिए गोल्ड मेडल जीता था और कई नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीते हैं.

अनेकों नेशनल-इंटरनेशनल पदक जीते 

रवि 2015 में जूनियर एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में चोटिल होकर अखाड़े से दूर गए थे. इसके कारण 3 साल अखाड़े से दूर रहना पड़ा. लेकिन साल 2018 में चोट से उबरने के बाद रवि फिर अखाड़े में लौटे. और कई नेशनल चैंपियनशिप में मेडल जीते. रवि ने 2015 जूनियर एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक, 2015 जूनियर विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक, 2018 अंडर 23 विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक, 2019 सीनियर विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक, 2020 और 21 एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते हैं.

6 साल की उम्र से ही शुरू कर दिया था कुश्ती सीखना 

रवि के पिता राकेश बताते हैं ''रवि बचपन से ही कुश्ती का अभ्यास करने लगा था. शुरुआत में उसने गांव के अखाड़े से ही अपनी कुश्ती. पिता राकेश ने बताया कि रवि में बचपन से जुनून था. 6 साल का था जब गांव में एक पहलवान के पास कुश्ती करने पहुंचा था और उस पहलवान ने रवि को देखकर कहा था कि रवि एक दिन गांव का नाम रोशन करेगा.

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पहलवान रवि दहिया ने कई बड़ी प्रतियोगिताएं जीती हैं
पहलवान रवि दहिया ने कई बड़ी प्रतियोगिताएं जीती हैं

रवि के छोटे भाई पंकज ने बताया ''वह 2005 से ही कुश्ती के अखाड़े में अपने दांव-पेच दिखाने लग गया था और उसके बाद मैंने भी उसको देखकर कुश्ती की शुरुआत की. रवि के ओलंपिक में जाने की हमें बहुत खुशी है. हमें उम्मीद है कि वह देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर आएगा और देश का नाम रोशन करेगा.''

चाचा को देखकर कुश्ती का चढ़ा जूनून 

रवि के चाचा राजेश कुमार जो BSF में असिस्टेंट कमांडेंट भी रहे हैं और खुद भी कुश्ती के खिलाड़ी रहे हैं, ने आजतक को बताया ''मैं पहलवानी करता था तो हमें देखकर रवि को कुश्ती करने का जुनून सवार हुआ, हम तो ओलंपिक के लेवल तक नहीं जा पाए, लेकिन हमने अपने बेटे को ओलंपिक तक भेजने का सपना देखा था और आज हमारा सपना साकार हो रहा है.''

गांव से अब तक तीन खिलाड़ी जा चुके हैं ओलंपिक- सरपंच 

गांव के सरपंच ने आजतक को बताया ''जब रवि बचपन में खेलता था तब से देख रहे हैं, रवि में कुश्ती का बहुत जुनून था. पूरे गांव में रवि के ओलंपिक में खेलने को लेकर खुशी है, गांव दुआ करता है कि रवि गोल्ड मेडल लेकर ही गांव वापस लौटे. हमारे गांव नाहरी से तीन पहलवान ओलंपिक में गए हैं लेकिन गांव में स्टेडियम तक नहीं है. अगर गांव में कोई अच्छा सा स्टेडियम हो तो और भी पहलवान गांव से ओलंपिक जा सकते हैं.

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