टोक्यो ओलंपिक में इतिहास रचने वाले स्टार जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा के लिए बीते 24 घंटे में दुनिया पूरी तरह से बदल गई है. नीरज की गिनती अब दुनिया के दिग्गज जैविलन थ्रोअर में होने लगी है. नीरज ने शनिवार को फाइनल मुकाबले में 87.58 मीटर का थ्रो करके देश का नाम रोशन किया.
लेकिन क्या आपको पता है कि जिस खेल के कारण नीरज को लोकप्रियता मिली है उसमें वो गलती से आए. जी हां, इसका खुलासा खुद नीरज ने किया है. उन्होंने आजतक को दिए इंटरव्यू में बताया, 'मैं जैवलिन थ्रो में गलती से आया. पहले से दिमाग में नहीं था. मैं फिटनेस के लिए स्टेडियम गया था और वहां पर सीनियर्स को जैवलिन थ्रो करते देखा और फिर मैंने भी शुरू कर दिया.'
आप जब कल पोडियम पर सबसे ऊपर खड़े थे तो उस वक्त दिमाग में क्या चल रहा था? इस सवाल पर नीरज ने कहा कि वो रोंगटे खड़े कर देने वाला पल था. उस वक्त अंदर से जोश बहुत था.
गोल्ड जीतने के बाद कैसा लग रहा है, इस पर नीरज चोपड़ा ने कहा कि मैं मेडल को साथ लेकर सोया था. मैंने अपने देश के लिए कुछ ऐसा किया है जो यादगार रहेगा.
आपका सफर कैसा रहा?
23 साल के इस नीरज चोपड़ा ने कहा कि मैं जैवलिन थ्रो में गलती से आया. पहले से दिमाग में नहीं था. क्योंकि परिवार से या गांव से कोई स्पोर्ट्स में हो तो रुचि रहती है, लेकिन न तो मेरे परिवार और न ही गांव से कोई स्पोर्ट्स में है. ऐसे ही फिटनेस के लिए स्टेडियम गया था और वहीं से सफर की शुरुआत हो गई.
नीरज ने कहा कि ऐसा नहीं था कि कुछ सोच-समझकर जैवलिन शुरू किया. स्टेडियम में फिटनेस के लिए गया था, लेकिन वहां पर मैंने अपने सीनियर्स को जैवलिन थ्रो करते हुए देखा और फिर मैंने शुरू कर दिया. लेकिन ये जरूर है कि जिस दिन से मैंने शुरू किया उस दिन से पूरी मेहनत की. गांव से बस या लिफ्ट लेकर स्टेडियम जाता था.
नीरज ने आगे कहा कि तब लोग कहते थे कि क्या कर रहा है. ऐसे ही जा रहा है. लेकिन मेरे दिमाग में ऐसा नहीं आया. मैंने कभी नहीं सोचा था कि इस लेवल तक जाऊंगा और मेडल जीतूंगा. एक सिंपल सा काम था, रोज स्टेडियम जाना है और ट्रेनिंग में 100 प्रतिशत देना है. ये करता गया और इसकी वजह से मैं यहां तक पहुंच पाया.
क्या गोल्ड जीतने की उम्मीद थी?
नीरज चोपड़ा ने कहा कि क्वालिफिकेशन राउंड के बाद हौसला बढ़ा था. मैंने तब आसानी से थ्रो किया था और अच्छा खासा दूर गया था. इसके बाद ऐसा लगा रहा था कि फाइनल में कुछ अच्छा होने वाला है और शायद मैं अपना पर्सनल बेस्ट भी कर दूं. लेकिन गोल्ड की उम्मीद नहीं थी.
उन्होंने कहा कि ओलंपिक में वर्ल्ड रैंकिंग मायने नहीं रखती. दिन-दिन की बात होती है. कौन सा दिन किसका है. किसका शरीर उस दिन चल रहा है. और अब तो पक्का मान गया हूं.
आगे क्या लक्ष्य है?
इस सवाल पर नीरज चोपड़ा ने कहा, ‘भाला फेंक एक तकनीकी स्पर्धा है और काफी कुछ दिन के फॉर्म पर निर्भर करता है. इसलिए मेरा अगला लक्ष्य 90 मीटर की दूरी तय करना है.’
उन्होंने कहा, ‘मैं इस साल केवल ओलंपिक पर ध्यान दे रहा था. अब मैंने स्वर्ण पदक जीत लिया है तो मैं भावी प्रतियोगिताओं के लिए योजनाएं बनाऊंगा. भारत लौटने के बाद मैं अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए विदेशों के वीजा हासिल करने की कोशिश करूंगा.’
नीरज अपने चाचा को अपना आदर्श मानते हैं. उन्होंने कहा कि मेरे आदर्श मेरे चाचा सुरेंद्र चोपड़ा है. उन्होंने ही मुझे जैवलिन थ्रो के लिए प्रेरित किया. वो जबरदस्ती मुझे स्टेडियम तक लेकर गए थे. उन्होंने मुझे ट्रेनर से मिलवाया था. मैं आज जो भी हूं उनकी वजह से हूं.