भारत की महिला मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन ने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया. लवलीना ओलंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली भारत की तीसरी मुक्केबाज हैं. उनसे पहले विजेंदर सिंह ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक और एमसी मैरीकॉम ने 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक अपने नाम किया था.
लवलीना आज जिस मुकाम पर पहुंची हैं उसके लिए उनको कड़ी मेहनत करनी पड़ी साथ ही समाज के ताने भी सुनने पड़े. कांस्य पदक जीतने के बाद लवलीना ने कहा, 'हम तीने बहनें हैं. लोग बोलते थे कि मेरे माता-पिता ने पिछले जन्म में कुछ गलती की होगी, जिसकी वजह से इनको लड़की हुई. फिर जब मैं बॉक्सिंग में आई तो भी लोग बहुत बातें करते थे.'
कठिन रहा है लवलीना का सफर
ओलंपिक में इतिहास रचने वाली इस मुक्केबाज ने कहा कि हमारा सफर कठिन रहा. बॉक्सिंग के लिए मैंने कई चीजें छोड़ी. मैं वो नहीं खा पाती जो मुझे पसंद है. मैं सोचती हूं कि मेरे गेम पर असर पड़ेगा. बचपन से आज तक मैं कहीं घूमने नहीं गई. मुझे जाने का मन होता है, लेकिन मैं नहीं जाती. मैं ये सोचती हूं कि कहीं मेरे गेम में प्रॉब्लम ना हो.
लवलीना ने कहा कि मेरी मां की तबीयत खराब थी, लेकिन ओलंपिक की तैयारियों के कारण मैं उनसे भी नहीं मिल पा रही थी. उनका ऑपरेशन होना था, उस समय उनके साथ रहना था लेकिन मैं नहीं रह पाई.
बोरगोहेन ने मुकाबले के बाद कहा ,‘अच्छा तो नहीं लग रहा है. मैंने स्वर्ण पदक के लिए मेहनत की थी तो यह निराशाजनक है.’ उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी रणनीति पर अमल नहीं कर सकी. वह काफी ताकतवर थी. मुझे लगा कि बैकफुट पर खेलने से चोट लगेगी तो मैं आक्रामक हो गई, लेकिन इसका फायदा नहीं मिला.’
उन्होंने कहा, ‘मैं उसके आत्मविश्वास पर प्रहार करना चाहती थी, लेकिन हुआ नहीं. वह काफी चुस्त थी.’ उन्होंने कहा, ‘मैंने इस पदक के लिए आठ साल तक मेहनत की है. मैं घर से दूर रही, परिवार से दूर रही और मनपसंद खाना नहीं खाया. लेकिन मुझे नहीं लगता कि किसी को ऐसा करना चाहिए. मुझे लगता था कि कुछ भी गलत करूंगी तो खेल पर असर पड़ेगा.’
नौ साल पहले मुक्केबाजी में करियर शुरू करने वाली लवलीना दो बार विश्व चैम्पियनशिप कांस्य भी जीत चुकी हैं. उनके लिए ओलंपिक की तैयारी आसान नहीं थी क्योंकि कोरोना संक्रमण के कारण वह अभ्यास के लिए यूरोप नहीं जा सकीं.
'कभी छुट्टी पर नहीं गई'
लवलीना ने कहा, ‘मैं एक महीने या ज्यादा का ब्रेक लूंगी. मै मुक्केबाजी करने के बाद से कभी छुट्टी पर नहीं गई. अभी तय नहीं किया है कि कहां जाऊंगी लेकिन मैं छुट्टी लूंगी.’
यह पदक उनके ही लिए नहीं बल्कि असम के गोलाघाट में उनके गांव के लिए भी जीवन बदलने वाला रहा क्योंकि अब बारो मुखिया गांव तक पक्की सड़क बनाई जा रही है. इस बारे में बताने पर उन्होंने कहा, ‘मुझे खुशी है कि सड़क बन रही है. जब घर लौटूंगी तो अच्छा लगेगा.’
मुक्केबाजी में भारत के ओलंपिक अभियान के बारे में उन्होंने कहा, ‘मेरे भीतर आत्मविश्वास की कमी थी जो अब नहीं है. अब मैं किसी से नहीं डरती. मैं यह पदक अपने देश के नाम करती हूं, जिसने मेरे लिए दुआएं कीं. मेरे कोच, महासंघ, प्रायोजक सभी ने मदद की.’
उन्होंने राष्ट्रीय सहायक कोच संध्या गुरूंग की तारीफ करते हुए कहा,‘ उन्होंने मुझ पर काफी मेहनत की है. उन्होंने द्रोणाचार्य अवॉर्ड के लिए आवेदन किया है.’