डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम ने नेट न्यूट्रैलिटी के नियमों को स्वीकृति दे दी है. इन नियमों में मोटे तौर पर ये है कि इंटरनेट ब्लॉकिंग, किसी खास वेबसाइट के लिए नेट स्पीड कम या ज्यादा करना या फिर जीरो रेटिंग इंटरनेट डेटा शामिल है. इस तरह की चीजें अब कोई टेलीकॉम प्रोवाइडर नहीं कर सकता है.
गौरतलब है कि टेलीकॉम रेग्यूलटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) ने पिछले साल ही सरकार को एक फ्रेमवर्क दिया था. नेट न्यूट्रैलिटी का यह फ्रेमवर्क भारत में लंबे समय से चले आ रहे नेट न्यूट्रैलिटी कैंपेन के बाद आया.
नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर भारत में कैंपेन में तेजी तब शुरू हुई जब फेसबुक इंटरनेट ओआरजी लेकर आने की तैयारी में था. इसके तहत किसी खास सर्विस के लिए फ्री इंटरनेट देने का प्रावधान था. भारत में इसका जम कर विरोध हुआ और इस वजह से फेसबुक को अपने कदम पीछे खींचने पड़े.
रिपोर्ट के मुताबिक इस नए नियम में साफ तौर पर लिखा है इंटरनेट को लेकर डेटा के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं हो सकता है. इसमें ब्लॉकिंग, स्पीड कम करना या किसी खास कॉन्टेंट के लिए ज्यादा स्पीड देने को बैन किया गया है.
हालांकि इससे इंटरनेट ऑफ थिंग्स IoT सर्विस को और खास सर्विसों को अलग रखा गया है. इसमें ऑटोनोमस व्हीकल और सर्जरी ऑपरेशन्स शामिल हैं. दी वायर की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि TRAI के हेड आर.एस. शर्मा ने इसे एंबुलेंस से कंपेयर किया है और कहा कि एंबुलेंस आधाकिरिक तौर पर ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन कर सकती है ताकि सर्विस क्वॉलिटी बरकरार रहे.
इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को अब डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम के साथ करार करते वक्त इन शर्तों को मानना होगा और लाइसेंस अग्रीमेंट के समय भी इस पर साइन करना होगा. रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोई भी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर इस नियम का उल्लंघन करता है तो उसका लाइसेंस कैंसिल किया जा सकता है.
ET Telecom की रिपोर्ट के मुताबिक टेलीकॉम सेक्रेरेटरी अरूना सुंदरराजन ने कहा है, ‘TRAI की तरफ से नेट न्यूट्रैलिटी पर दिए गए सभी सिफारिशें स्वीकार कर ली गई हैं. कुछ स्पेशल सर्विस को छोड़कर इसके सिद्धांत को फॉलो किया जाएगा’
नेट न्यूट्रैलिटी के बारे में जान लीजिए
नेट न्यूट्रैलिटी के बारे में अगर आपको नहीं पता, तो बता दें कि यह एक प्रिंसिपल है जिसके तहत यह तय किया गया है कि कोई भी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर अपने सभी कस्टमर्स को कॉन्टेंट में कोई भेदभाव नहीं करेंगी.
आपको बता दें कि नेट न्यूट्रैलिटी न होने का सीधा असर एक यूजर को पड़ता है. क्योंकि जिन कंपनियों ने इंटरनेट सर्विस से करार करेंगे सिर्फ उनके कॉन्टेंट यूजर के पास तेजी से खुलेंगे जबकि जिन्होंने सर्विस प्रोवाइडर से करार नहीं किया है उनके कॉन्टेंट स्लो खुल सकते हैं. यह एक बड़ी समस्या हो सकती है अगर नेट न्यूट्रैलिटी न हो तो.
गौरतलब है कि नेट न्यूट्रैलिटी शब्द का पहली बार इस्तेमाल कोलंबिया यूनिवर्सिटी में मीडिया लॉ के प्रोफेसर टीम वू ने किया था. इस प्रिंसिपल के मुताबिक कोई भी सर्विस प्रोवाइडर इंटरनेट के किसी भी कॉन्टेंट, डेटा और एप्लीकेशंस को बराबरी का दर्जा देगी. कोई भी वेबसाइट और पेज तब तक नहीं ब्लॉक किए जाए जब तक कि उस पर कोई गैर कानूनी तथ्य न हो. इसका मतलब यह हुआ कि छोटी-बड़ी सारी वेबसाइट को इंटरनेट समान रूप से जगह देगी.
TRAI ने ने इस सरकार को दी गई सिफारिश में कहा था, ‘इंटरनेट सर्विस उस सिद्धांत पर चलना चाहिए जिसमें कोई भेदभाव न हो या किसी कॉन्टेंट को लेकर अलग रवैया न हो. इसमें किसी खास सर्विस के लिए इंटरनेट को स्लो करना या फिर किसी कॉन्टेंट को ब्लॉक करना शामिल है.’
TRAI ने कहा है कि सर्विस प्रोवाइडर और मोबाइल टेलीकॉम ऑपरेटर्स किसी को कोई भी ऐसा समझौता नहीं करना चाहिए जिसमें कॉन्टेंट भेदभाव जैसी चीजें हों.