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सस्ते टैरिफ का कमाल, डेटा खपाने में पूरी दुनिया में भारतीय नंबर 1

एक रिपोर्ट के हवाले से ये जानकारी मिली है कि पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में हर महीने औसतन सबसे ज्यादा डेटा इस्तेमाल किया जाता है

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भारतीय स्मार्टफोन यूजर्स पूरी दुनिया के मुकाबले हर महीने कहीं ज्यादा डेटा इस्तेमाल करते हैं. ये बात एक रिपोर्ट में सामने आई है. स्वीडिश टेलीकॉम इक्विमेंट मेकर एरिक्सन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत में हर महीने औसतन 9.8GB डेटा की खपत होती है और ये खपत बढ़ते वीडियो कंटेंट के चलते 2024 तक बढ़कर 18 GB तक पहुंच जाएगी.

एरिक्सन मोबिलिटी रिपोर्ट जून 2019 एडिशन में कहा गया कि भारत में हर महीने औसतन सबसे ज्यादा डेटा की खपत होती है. ये आंकड़ा 2018 के अंत तक 9.8GB था. LTE सब्सक्रिप्शन के बढ़ते नंबर्स, सर्विस प्रोवाइडर्स द्वारा दिए जा रहे आकर्षक डेटा प्लान्स और युवाओं द्वारा वीडियो देखने की आदत में बदलाव के चलते हर महीने की खपत में वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट में कहा गया कि प्रति माह मोबाइल डेटा ट्रैफिक में सीएजीआर (कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट) में 23% फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे 2018 का 4.6 एक्साबाइट का आंकड़ा बढ़कर 2024 में 16 एक्साबाइट तक पहुंच सकता है. भारत में स्मार्टफोन यूजर बेस साल 2024 तक 1.1 बिलियन तक पहुंच जाएगा, वहीं मोबाइल सब्सक्रिप्शन्स 2018 के लगभग 610 मिलियन से बढ़कर 2024 में 1.25 बिलियन तक हो जाएगा.

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रिपोर्ट में आगे कहा गया, '5G नेटवर्क आ जाने और कॉम्पैटिबल डिवाइसेज बाजार में उपलब्ध हो जाने के बाद 360-डिग्री वीडियो स्ट्रीमिंग और ऑग्मेंटेंड/ वर्चुअल रिएलिटी मोबाइल ट्रैफिक ग्रोथ के महत्वपूर्ण कारक हो सकते हैं.' एरिक्सन इंडिया के हेड नितिन बंसल ने कहा कि, डिवाइस की बेहतर पहुंच, किफायती डेटा टैरिफ प्लान्स और वीडियो जैसे डेटा बेस्ड कंटेंट डेटा की ग्रोथ बढ़ा रहे हैं.

क्या सस्ते डेटा के बावजूद ऑनलाइन नहीं जा पाएंगे लाखों यूजर्स?

इकोनॉमिक टाइम्स ने अपनी एक एनालिटिकल रिपोर्ट में बताया है कि सस्ते डेटा ने भारत में मोबाइल इंटरनेट को लेकर क्रांति ला दी. लेकिन आधे से ज्यादा मोबाइल-फोन यूजर्स अभी भी इसका हिस्सा नहीं है और टैरिफ में बढ़ोतरी की भी संभावना है. ऐसे में लाखों लोग आगे भी इंटरनेट से वंचित रह सकते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि डेटा कि लागत अभी भी कई लोगों के लिए ज्यादा है, साथ ही डिवाइसेज अभी भी किफायती नहीं हैं.

लोगों के बीच अवेयरनेस की भी कमी है, उन्हें ऑनलाइन आने के फायदों की जानकारी नहीं है. कंटेंटे ढेरों है, लेकिन सभी के लिए उपलब्ध नहीं हैं. इसके अलावा हेल्थकेयर और एजुकेशन बेस्ट ऐप्स भी सभी भाषाओं में उपलब्ध नहीं हैं.

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