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iPhone नहीं सिर्फ एंड्रॉयड यूजर्स की कॉल/मैसेज डीटेल्स क्यों रखता है FB?

फेसबुक ही नहीं बल्कि एंड्रॉयड पर सवाल उठने चाहिए, क्योंकि जब बात आपकी निजता और सिक्योरिटी की है तो इससे समझौता नहीं किया जा सकता है. हमने कई एंड्रॉयड यूजर्स से फेसबुक डेटा डाउनलोड करने को कहा और हमने लगभग सभी के फेसबुक डेटा में कॉल डीटेल्स और टेक्स्ट मैसेज पाया. इनमें डेट, ड्यूरेशन और कॉन्टेंट शामिल हैं.

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Representational Image
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फेसबुक डेटा लीक के बाद इस पर सोशल मीडिया वेबसाइट पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. लेकिन क्या एंड्रॉयड की सिक्योरिटी पर सवाल नहीं उठने चाहिए? आपको यह थोड़ा अटपटा जरूर लग सकता है, लेकिन यह सच है. अभी हाल में ही रिपोर्ट आई कि फेसबुक के पास आपकी कॉल डीटेल्स से लेकर टेक्स्ट मैसेज की भी जानकारी है जिसे आप खुद भी ऐक्सेस कर सकते हैं.

फेसबुक के पास जिन यूजर्स के कॉल और टेक्स्ट मैसेज का डेटा है वो ज्यादातर एंड्रॉयड यूजर्स हैं. ऐसा क्यों है कि एंड्रॉयड यूजर्स के कॉल और मैसेज का डेटा फेसबुक अपने पास रखता है, जबकि ऐपल iPhone यूजर्स के साथ ऐसा नहीं है . हमने इसके लिए एंड्रॉयड और iOS यूजर का फेसबुक डेटा डाउनलोड करके देखा और पाया है कि iOS यूजर्स की कॉल डीटेल्स और टेक्स्ट मैसेज फेसबुक पर नहीं है. जबकि एंड्रॉयड यूजर की कॉल डीटेल्स और मैसेज पढ़े और देखे जा सकते हैं.

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ऐसे में सिर्फ फेसबुक ही नहीं बल्कि एंड्रॉयड पर सवाल उठने चाहिए, क्योंकि जब बात आपकी निजता और सिक्योरिटी की है तो इससे समझौता नहीं किया जा सकता है. हमने कई एंड्रॉयड यूजर्स से फेसबुक डेटा डाउनलोड करने को कहा और हमने लगभग सभी के फेसबुक डेटा में कॉल डीटेल्स और टेक्स्ट मैसेज पाया. इनमें डेट, ड्यूरेशन और कॉन्टेंट शामिल हैं.

आम तौर पर एक धारणा है कि एंड्रॉयड सुरक्षा और प्राइवेसी के मामले में iOS से कम है. चाहे बात प्ले स्टोर पर मैलवेयर अटैक की हो या यूजर परमिशन को आसान बनाने की.

ऐप परमिशन सिस्टम

फेसबुक के पास किस यूजर का कितना ज्यादा डेटा है वो इस बात पर भी डिपेंड करता है कि उसके स्मार्टफोन में ऐप परमिशन सिस्टम कैसा है. ऐप परमिशन सिस्टम यानी वो फीचर जिससे कोई ऐप आपके स्मार्टफोन में इंस्टॉल होने से पहले आपसे कुछ इजाजत लेता है ताकि वो आपके स्मार्टफोन और आपकी गतिविधियों पर नजर रख सके. अब इसके पीछे दलील जाहे जो भी हो.

iOS की बात करें तो ऐप परमिशन में प्राइवेसी सेटिंग्स को तरजीह दी जाती है. प्राइवेसी ऑप्शन को ऊपर रखा जाता है और ऐसे में यूजर के लिए उसे डिसेबल या एनेबल करना आसान होता है. जबकि एंड्रॉयड में ये आसान नहीं है, खासकर पुराने वर्जन के एंड्रॉयड में यूजर्स खास परमिशन को डिसेबल नहीं कर सकते. जबकि आप iOS में किसी ऐप को दी गई वैसी परमिशन जिसकी जरूरत नहीं है उसे डिसेबल कर सकते हैं.

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एंड्रॉयड पर फेसबुक मैसेंजर ऐप इंस्टॉल करने के दौरान आपसे कई परमिशन मांगी जाती हैं जिनमें एक एक ऑप्शन ये होता है जिससे आप फेसबुक के मैसेज एंड्रॉयड के नैटिव मैसेज में इंपोर्ट कर सकते हैं. इसके अलावा आपके पास परमिशन कंट्रोल करने के लिए ज्यादा ऑप्शन नहीं होते, जबकि iOS में मैसेंजर ऐप इंस्टॉल करते वक्त आपको कई बार पॉप अप मिलता है जिससे आप कंट्रोल कर सकते हैं कि कौन सी परमिशन ऐप को देनी हैं और किस तरह की परमिशन नहीं देनी है. यह महज उदाहरण के कैसे एंड्रॉयड यूजर्स जाने अनजाने में ऐप्स को जरूरत से ज्यादा परमिशन देकर खुद को खतरे में डाल लेते हैं.

स्टडीज में भी यह पाया गया है कि iOS के मुकाबले मैलवेयर अटैक एंड्रॉयड पर ज्यादा होते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि एंड्रॉयड को ज्यादा ओपेन सोर्स माना जाता है, जबकि ऐपल iOS को कंट्रोल करता है और थर्ड पार्टी ऐप्स आप आसानी से इंस्टॉल नहीं कर सकते जो ऐप स्टोर पर उपलब्ध न हों. लेकिन एंड्रॉयड में कहीं से भी ऐप इंस्टॉल कर सकते हैं . आप ये जान सकते हैं कि एंड्रॉयड के अंदर क्या है, लेकिन iOS में ऐसा करना लगभग असंभव है. ऐप डेवेलेपर्स एंड्रॉयड ऐप में आसानी से बदलाव कर सकते हैं जिससे सिक्योरिटी खामी पैदा हो सकती है.

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चूंकि ऐपल अपना सोर्स कोड जारी नहीं करता, इसलिए भेद पाना और भी मुश्किल है जिसे आप जेलब्रेक के नाम से जानते हैं. एंड्रॉयड की बात करें तो यहां फोन आसानी से रूट करके इसमें हर तरह के बदलाव किए जा सकते हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि एंड्रॉयड को iOS लेवल का सिक्योर बनाना आसान नहीं है. क्योंकि ऐपल हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों को कंट्रोल करता है जबकि एंड्रॉयड किसी भी कंपनी के स्मार्टफोन में होता है ऐसे में गूगल के लिए इसे कंट्रोल कर पाना मुश्किल है.

फेसबुक के हालिया डेटा लीक और डेटा रिकॉर्ड करने की घटना से सबक लेते हुए गूगल को एंड्रॉयड में बदलाव करने की जरूरत है, ताकि यूजर की प्राइवसेसी और सिक्योरिटी से समझौता ना किया जा सके.

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