देश में जैसे-जैसे कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा रहा है, वैसे-वैसे साइबर खतरे भी बढ़ रहे हैं, क्योंकि पिछले पांच सालों में बैंकिंग सिस्टम में साइबर हमलों की घटनाओं की संख्या नए उच्चस्तर पर पहुंच गई है.
एसोचैम और पीडब्ल्यूसी द्वारा किए गए संयुक्त अध्ययन से यह जानकारी मिली. अध्ययन में कहा गया है कि पिछले साल अक्टूबर में भारतीय बैंकों के एटीएम कार्ड को निशाना बनाया गया था, जिससे 32 लाख डेबिट कार्ड प्रभावित हुए थे.
अध्ययन में कहा गया है, 'इससे व्यवसायों और व्यक्तियों द्वारा साइबर सुरक्षा को बढ़ाने के प्रयास करने की जरूरत है.'
अध्ययन में कहा गया है कि पिछले चार सालों में भारतीय वेबसाइटों पर हमला पांच गुना बढ़ा है. हालांकि साइबर सुरक्षा के लिए देश का बजटीय आवंटन वित्त वर्ष 2012-13 में महज 42.2 करोड़ रुपये था.
इस अध्ययन में कहा गया है, 'साइबर हमलों के खतरों के बावजूद वित्त वर्ष 2012-13 में साइबर सुरक्षा पर 42.2 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो कि वित्त वर्ष 2010-11 की तुलना में 19 फीसदी अधिक है, जबकि अमेरिका इस मद में 65.8 करोड़ डॉलर और यूएस-सीईआरटी 9.3 करोड़ डॉलर खर्च करता है.'
इस अध्ययन में बताया गया कि नोटबंदी के कारण ई-वॉलेट सेवाएं और मोबाइल वॉलेट ऐप डाउनलोड में भारी वृद्धि देखी गई है. एसोचैम के महासचिव डी. एस. रावत ने कहा, 'भारत जैसे-जैसे कैशलेस अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहा है, साइबर हमलों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. इसलिए हमें इसे निपटने के लिए तत्काल और व्यापक कदम उठाने होंगे.'