कैम्ब्रिज एनालिटिका के बाद से फेसबुक लगतार प्राइवेसी को लेकर सुर्खियों में है. एक बार फिर कंपनी का नाम प्राइवेसी से संबंधित विवाद में आ गया है. कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि कंपनी 2016 से एक रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए कुछ यूजर्स को उनका डेटा ऐक्सेस करने के लिए पैसे दे रही है.
टेलीक्रंच ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पैसे के बदले फेसबुक ने यूजर्स को 'फेसबुक रिसर्च' VPN ऐप इंस्टॉल करने को कहा, जो कंपनी को फोन और वेब एक्टिविटी का ऐक्सेस देता है. रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी इसके लिए हर महीने $20 देती है और रिफेरल फीस भी देती है. कंपनी जिन यूजर्स को पैसे देती है उनकी उम्र 13 से 25 के बीच है.
टेकक्रंच को फेसबुक ने बताया है कि कंपनी यूसेज हैबिट पर डेटा इकट्ठी करने के लिए रिसर्च प्रोग्राम चला रही है और इसे बंद करने की कोई प्लानिंग नहीं है. गार्जियन मोबाइल फायरवॉल सिक्योरिटी स्पेशलिस्ट विल स्ट्राफैच ने टेकक्रंच को बताया कि पैसे के बदले फेसबुक वेब सर्च, लोकेशन इंफॉर्मेशन, सोशल मीडिया ऐप्स के मैसेज और बाकी डेटा को चेक करने का ऐक्सेस ले लेता है.
फेसबुक द्वारा भुगतान किए जाने के लिए यूजर्स को ऐप इंस्टॉल कर VPN को रन करने देना होता है. रिपोर्ट्स ऐसी भी हैं कि यूजर्स को अपने अमेजन ऑर्डर पेज का स्क्रीनशॉट भी लेने को कहा जाता है. साथ ही इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ये ऐप फेसबुक के ‘Onavo Protect‘ ऐप की तरह है जिसे प्राइवेसी नियमों के उल्लंघन के चलते ऐपल ने बैन कर दिया था. बाद में इस ऐप को अगस्त में हटा दिया गया था.
टेकक्रंच को फेसबुक ने बताया कि कंपनी यूजर्स के स्मार्टफोन हैबिट और यूज को समझने के लिए रिसर्च प्रोग्राम पर काम कर रहा है. फेसबुक के एक प्रवक्ता ने कहा 'बाकी कंपनियों की ही तरह हम रिसर्च में शामिल होने के लिए लोगों को इनवाइट करते हैं इससे हमें उन चीजों को पहचानने में मदद मिलती है जो हम बेहतर कर सकते हैं.' चूंकि ये रिसर्च फेसबुक को ये समझने में मदद करने के उद्देश्य से है कि लोग अपने मोबाइल डिवाइसेज का उपयोग कैसे करते हैं, इसलिए हमने हमारे द्वारा इकट्ठे किए जाने वाले डेटा के प्रकार और वे कैसे भाग ले सकते हैं, इसके बारे में काफी जानकारी साझा की है. हम इन जानकारियों को दूसरों के साथ शेयर नहीं करते और लोग जब चाहें इस रिसर्च में हिस्सा लेना छोड़ सकते हैं.