दुनिया का सबसे बड़ा सोशल नेटवर्क चलाने वाली कंपनी फेसबुक एक नई डिजिटल करेंसी लेकर आने वाली है. पिछले हफ्ते कंपनी ने लिब्रा नाम की एक नई करेंसी लाने का ऐलान कर दिया. फेसबुक की इस योजना की भनक तकरीबन एक साल पहले लग चुकी थी जब उसने फेसबुक मैसेंजर के मुखिया डेविड मार्क्स को ब्लॉकचेन प्रोजेक्ट में लगा दिया था.
दुनियाभर में इस प्रोजेक्ट को लेकर तरह-तरह के कयास लगने शुरू हो गए थे. लेकिन उन सारे कयासों पर पिछले हफ्ते मंगलवार को विराम लग गया जब फेसबुक ने कहा कि वह सस्ती करेंसी लांच करने जा रहा है जिससे बहुत सस्ते में और आसानी से देश विदेश में पैसा भेजा जा सकता है.
लिब्रा पूरी तरह से न तो बिटक्वाइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी होगी और न ही मौजूदा बैंकों की तरह काम करेगी. शुरुआत में यह इन दोनों का मिलाजुला रूप होगा. फेसबुक का दावा है कि इसे कारोबार जगत से लेकर आम आदमी आसान और सुरक्षित तरीके से पैसे का लेनदेन कर सकता है. इसके लिए न तो बैंक की जरूरत होगी और नही बिचौलियों की.
फिलहाल विदेश में पैसा भेजने पर औसतन सात फीसदी रकम बैंक और बिचौलिये के रूप में काम करने वाली कंपनियां सर्विस चार्ज के नाम पर ले जाती हैं. सर्विस चार्ज का यह धंधा तकरीब 50 अरब डॉलर का है.
पहले से इस धंधे में लगे बैंकों और बाकी वित्तीय संस्थाओं को डर है कि लिब्रा उन्हें बाहर न कर दे. हालांकि लिब्रा अभी लॉन्च नहीं हुई है और उसके आने की सूचना भर से दुनिया भर के बैंक रेगुलेटर और सरकारें शक की निगाह से देखने लगी हैं.
फेसबुक के लिए दुनिया भर में अपना सिक्का चलाना आसान नहीं होगा. हालांकि अगले साल लॉन्च होने वाले लिब्रा ने क्रॉस बॉर्डर लेनदेन के कुल 613 बिलियन डॉलर को टार्गेट किया है.
डिजिटल नोट जारी करने की इस योजना में फेसबुक अकेले नहीं है. वीज़ा और ऊबर सहित करीब 27 बड़ी कंपनियां फेसबुक के साथ इस बड़े ग्लोबल पेमेंट सिस्टम में साथ खड़ी हैं. हर कंपनी कम से कम एक करोड़ डॉलर लगा रही है. नई करेंसी की देखरेख स्विट्जरलैंड स्थित एक नॉन प्रॉफिट संस्था लिब्रा एसोसिएशन कर रही है.
फेसबुक ने केवल करेंसी ही नहीं लॉन्च किया है बल्कि एक इलेक्ट्रॉनिक बटुआ (वॉलेट) कैलिब्रा भी लांच करने की घोषणा की है. लिब्रा के लिए कई ऐसे बटुए होंगे उनमें से एक फेसबुक का कैलिब्रा भी होगा.
लिब्रा क्रिप्टो करेंसी नहीं है
लिब्रा क्रिप्टो करेंसी इसलिए नहीं है कि क्योंकि इसे कुछ लोग नियंत्रित करेंगे. जबकि क्रिप्टो में ऐसा कोई सिस्टम नहीं होता. वह पूरी तरह से डिसेंट्रलाइज होती है. क्रिप्टो करेंसी से इसकी समानता और मौजूदा सिस्टम से अलग करने वाली केवल एक चीज है और वो है ब्लॉकचेन यानी इलेक्ट्रॉनिक बही-खाता.
ब्लॉकचेन एक तरह की टेक्नोलॉजी है, यह एक प्लेटफॉर्म है जहां डिजिटल करेंसी या किसी भी चीज को डिजिटल बनाकर उसका रिकॉर्ड रखा जा सकता है. यानी ब्लॉकचैन एक डिजिटल लेजर है. वहीं बिटक्वॉइन और लिब्रा एक तरह से डिजिटल माध्यम है, जिसके जरिए कोई चीज खरीदी या बेची जा सकती है.
ब्लॉकचेन 2008 में डिजाइन किया गया था. इसमें प्रत्येक ब्लॉक एक मेगाबाइट पर फिक्स होता था. अब लेनदेन की गति बढ़ाने वाली तकनीक का इंतजार हो रहा है.
लेनदेन की स्पीड
ब्लॉकचेन तकनीक के बारे में बताते हुए संजय शर्मा कहते हैं, "बिटकॉइन प्रति सेकेंड सिर्फ सात लेनदेन (transactions) कर सकता है. इसकी तुलना में लिब्रा प्रति सेकेंड 1000 लेनदेन कर सकता है. इस दौरान बिटकॉइन का मूल्य तेजी से घटता बढ़ता है, लेकिन लिब्रा मजबूत पकड़ के साथ अपना मूल्य स्थिर रख सकता है. लिब्रा का मकसद है कि पब्लिक इसे स्वीकारे. इसके लिए लिब्रा का फोकस मुख्यत: प्रतियोगी ट्रांजेक्शन फीस और स्थिर मूल्य पर है."
सौ से ज्यादा निजी कंपनियां
इस पेमेंट सिस्टम में फेसबुक अकेला नहीं होगा. वीसा, उबर समेत सौ से ज्यादा प्राइवेट प्लेयर होंगे जो इस सिस्टम को मॉनिटर करेंगे. फिलहाल इनकी संख्या करीब 27 है, लेकिन इसे सौ तक ले जाने की योजना है. फिलहाल लिब्रा को कोई कानूनी आधार नहीं मिला है और न ही सरकारों का समर्थन. ऐसे में इस नई डिजिटल करेंसी की राह आसान नहीं होगी.