दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि व्हाट्सऐप पर फॉर्वर्ड किए गए किसी भी दस्तावेज को सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. सबूत के लिए असली दस्तावेज दिखाने जरूरी हैं. व्हाट्सऐप ही नहीं बल्कि यह किसी भी इंस्टैंट मैसेजिंग ऐप पर लागू होगा.
जस्टिस संजीव सचदेवा ने कहा है कि एविडेंस ऐक्ट 1872 के तहत कोर्ट की कार्यवाही के लिए फॉर्वर्ड किए गए दस्तावेज वैलिड नहीं माने जा सकते. जज ने अरुणाचल प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री कालिखो पुल के कथित केस में नेशनल लॉयर्स कैंपेन द्वारा दाखिल की गई याचिका को खारिज कर दिया.
इन याचीकाकर्ताओं ने कोर्ट में ये भी बहस की कि अरूणाचल प्रदेश राज्य, इसके पुलिस, दिल्ली पुलिस, पश्चिम बंगाल पुलिस और सीबीआई को कोड क्रिमिनल प्रोसिजर, 1973 के सेक्शन 154 के आधार पर FIR दर्ज करने के लिए आदेशित किया जाए, कि कोई भी जानकारी जो पुलिस को मुहैया कराई गई है वो आपराधिक प्रक्रिया को गति देने के लिए पर्याप्त है.
मिली जानकारी के मुताबिक, एक कथित डॉक्यूमेंट को सुसाइड नोट बताया जा रहा है, इसे माना जा रहा है कि दिवंगत मुख्यमंत्री ने सुसाइड करने से एक दिन पहले लिखा था. हालांकि याचिकाकर्ता, व्हाट्सऐप में सर्कुलेट हो रहे डॉक्यूमेंट के अंग्रेजी अनुवाद की एक टाइप की गई हिंदी प्रतिलिपी के ओरिजनल कॉपी को पेश करने में असमर्थ रहे.
पूछे जाने पर याचिकाकर्ता कथित व्हाट्सऐप पोस्ट के सेंडर का नाम बताने तक में भी नाकाम रहे. इतना ही नहीं किसी ने ये भी जानकारी नहीं दी कि किसको पहली बार ये पोस्ट मिला था. ऐसी स्थिति में अदालत ने प्रतिक्रिया में कहा कि: हम इस संवाद को स्वीकार नहीं कर सकते. कम से कम इस केस तो बिल्कुल भी नहीं. याचिकाकर्ता किसी भी जानकारी की पुष्टि के लिए जिम्मेदार नहीं हैं.
याचिकाकर्ता बस इतना मानते हैं कि कथित जानकारी व्हाट्सऐप पर महज एक पोस्ट है या वेबसाइट पर मौजूद कथित अनुवाद है. किसी भी जानकारी कोई पुख्ता सुबुत भी नहीं है. यहां तक याचिका में ये भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि याचिकाकर्ताओं ने किस आधार पर कथित पोस्ट पर भरोसा किया है.