शोधकर्ताओं ने नई तकनीक ईजाद की है, जिससे घास जैव-ईंधन (बायो फ्यूल) में परिवर्तित होकर हवाई जहाज के ईंधन के रूप में प्रयोग में लाई जा सकती है. बेल्जियम में घेंट विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक केर्न खोर ने बताया कि अभी तक जमीन पर उगने वाली घास का उपयोग जानवरों के चारे के रूप में होता रहा है, लेकिन अब घास को जैव-ईंधन के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है.
वह बताते हैं कि इसके भारी मात्रा में पाए जाने के कारण, यह ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है.
खोर ने अपनी निरीक्षण विधि में घास के टुकड़े टुकड़े कर इसका तब तक इसका परीक्षण किया, जब तक कि इसे ईंधन के रूप में प्रयोग न किया जा सके.
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घास के बाओडिग्रेडेबिलिटी में सुधार के लिए पहले इसका परीक्षण किया गया, फिर इसमें जीवाणुओं की मदद ली गई, क्योंकि जीवाणु घास में पाई जाने वाली सुगर को लैक्टिक एसिड और इसके डेरिवेटिव्स में बदल देते हैं.
लैक्टिक एसिड, एक तीव्र रासायनिक के रूप में बाओडिगड्रेबिलिटी प्लास्टिक (पीएलए) और ईंधन जैसे यौगिकों को उत्पादित करने में मदद करता है.
इस लैक्टिक एसिड को बाद में कैप्रोइक एसिड में परिवर्तित किया जाता है और इसे आगे डेकेन में बदला जाता है. इसके बाद इसका उपयोग वायुयान के ईंधन के रूप में किया जाता है.
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वैज्ञानिक खोर बताते हैं कि हालांकि यह कदम क्रांतिकारी है, लेकिन इसे वास्तविकता में बदलने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
वह आगे बताते हैं कि अभी तक घास की कुछ मात्रा को ही जैव-ईंधन में बदला जा सकता है. हाल की यह प्रणाली काफी महंगी है और मशीनों को इस नई प्रणाली को अपनाना चाहिए.
घेंट विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक बयान में वैज्ञानिक खोर ने कहा, 'यदि हम आशावादी हैं, तो हम अपने काम को व्यावसायिक दुनिया के सहयोग से आगे ले जा सकते हैं. हम इस नई तकनीक की कीमतों को कुछ कम कर सकते हैं और संभव है कि कुछ सालों में हम सब घास की मदद से उड़ान भरें'.