क्या आपको पता है कि दुनिया का सबसे अच्छा कैमरा कौन सा है?
आप अपना जवाब सोचें तब तक एक छोटी सी कहानी बताता हूं. मेरे एक करीबी दोस्त हैं - एक बड़े टीवी चैनल के मशहूर रिपोर्टर. फोटोग्राफी का उन्हें ऐसा जबरदस्त शौक है कि कैमरा, लेंस, ट्राइपॉड, फिल्टर्स और फोटोग्राफी की किताबों पर लाखों रुपये खर्च कर चुके हैं. तरह-तरह के कैमरा-लैंस का जखीरा ऐसा कि पूरा कैमरा बैग बेच दें तो शायद एक नयी गाड़ी आ जाए! मोबाइल फोन के कैमरे से उन्हें सख्त चिढ़ है. इसे वो 'खिलौना', 'टुटपुंजिया' और 'फोटोग्राफी के लिए कलंक' मानते हैं. इसलिए, वो ब्लैकबेरी का ऐसा फोन रखते हैं जिसमें कैमरा है ही नहीं.
केदारनाथ में जब भयंकर तबाही हुई तो रिपोर्टिंग के लिए वो आनन-फानन में वहां भागे. अब जहां न सड़क थी न गाड़ी का रास्ता वहां अपना भारी भरकम कैमरा बैग वो कैसे ले जाते! केदारनाथ पहुंचने के लिए, पहाड़ों के ऊपर कई दिनों के पैदल रास्ते से टीवी रिपोर्टिंग के लिए जितना सामान ले जाना था वही मुश्किल था. आखिरकार, जान की बाजी लगाकर किसी तरह वो पहुंचे. जो रिपोर्टिंग मौके से उन्होंने की, उसकी तो देश-दुनिया में तारीफ हुई. लेकिन मेरे दोस्त खुद कहते हैं कि इस बेहद खतरनाक और यादगार अनुभव का कोई फोटो नहीं ले पाने का अफसोस उन्हें जिंदगी भर रहेगा...
अब तो आप समझ गए न? दुनिया का सबसे अच्छा कैमरा वही है जो जरूरत के वक्त आपके पास हो. और ये कैमरा है आपके मोबाइल फोन का. फेसबुक पर नई प्रोफाइल पिक्चर लगानी हो या किसी यादगार लम्हे को दोस्तों के साथ शेयर करना हो - यही तो वो कैमरा है जो हर मौके पर आपका साथ देता है.
ये सच है कि बड़े कैमरों के मुकाबले मोबाइल फोन का कैमरा कई मामलों में 'बेचारा' होता है. लेकिन ये भी सच है कि सिर्फ बंदूक खरीद लेने से कोई निशानेबाज नहीं बन जाता. आइए, जानते हैं कि कुछ बातों का ध्यान रखकर कैसे हम मोबाइल के कैमरे से भी दिल जीतने वाली फोटो ले सकते हैं.
1. क्लिक से पहले :
कैमरे की सेटिंग्स चेक करें - क्या कभी आपने अपने मोबाइल फोन के कैमरे को ऑन करने के बाद उसकी सेंटिग्स में झांक कर देखा है? ट्रिक्स का कैसा खजाना छिपा है वहां! फोन के मॉडल के हिसाब से आपको वहां शूटिंग मोड्स, इफेक्ट्स, टाइमर, आइएसओ, जीपीएस, गाइडलाइन्स... ऐसी तमाम चीजें दिखेंगी. सारे सेटिंग्स की बात करके उलझाने के बजाय, मैं आपको सिर्फ बेहद जरूरी कुछ बातें बताता हूं. 'इमेज क्वालिटी' की सेंटिग्स में 'सुपरफाइन' (या सबसे अच्छा, एक्सिलेंट, या 100 परसेंट, जो कुछ भी लिखा हो) उसे चुनिए. इसके बाद रिसोल्यूशन में जाकर जो भी सबसे ज्यादा रिशोल्यूशन दिख रहा हो उसे सलेक्ट करें. ज्यादा रिशोल्शन का मतलब है की फोटो की फाइल बड़ी बनेगी और आप इससे अच्छा प्रिंट भी बनवा सकते हैं. अगर आपके कैमरे या मेमोरी कार्ड में जगह कम पड़ रही हो तो रिसोल्यूशन कम करें लेकिन 'इमेज क्वालिटी' को बिल्कुल कम मत करें. फोन कैमरे में यदि 'एंटी शेक मोड' है तो उसे ऑन कर लें.
कैमरे का लेंस साफ करें - आगे पढ़ने से पहले, अपने मोबाइल फोन के कैमरा लेंस को जरा तिरछा करके ध्यान से देखें. दिखे न उंगलियों के निशान? फोन के कैमरे को बचाने के लिए कोई लेंस कवर नहीं होता. इसलिए जाने-अनजाने में आपकी उंगलियां इसपर लगती रहती हैं. यही छिपे हुए निशान, धूल और गंदगी आपकी फोटो के दुश्मन हैं जो आपकी फोटो को धुंधला कर देते हैं. फोटो लेने से पहले लेंस को एक मुलायम कपड़े से पोंछ लें. चश्मा साफ करने का कपड़ा इसके लिए ठीक रहेगा.
चलकर और करीब जाएं - आप जिस चीज की फोटो लेना चाहते हैं, चलकर उसके जितना पास हो सके जाएं. इसके तीन फायदे हैं. एक तो फोटो की क्वालिटी बेहतर होगी, दूसरा आपके फ्रेम से फालतू की चीजें हट जाएंगी और तीसरा ये कि अगर फोटो लेते वक्त कैमरा हिल भी गया तो इसका फोटो पर कम असर पड़ेगा. मोबाइल फोन के कैमरे का न सिर्फ लेंस छोटा होता है बल्कि लाइट को फोटो में बदलने वाला सबसे जरूरी हिस्सा 'सेंसर' भी छोटा-सा होता है. लेंस और सेंसर की इस कमी से निपटने का सबसे आसान तरीका है पास से फोटो लेना.
लाइट बढ़ाने का इंतजाम करें- फोटो, पूरी तरह 'लाइट' और 'शैडो' का ही खेल है. कुछ चुनिंदा महंगे मोबाइल फोन को छोड़ दें, तो ज्यादातर फोन के कैमरों की सबसे बड़ी मजबूरी ही यही है कि वो कम लाइट में अच्छी फोटो नहीं ले पाते. अपने कैमरे की इस मजबूरी को समझें. जिसकी फोटो लेनी हो, संभव हो तो उसे दिन के उजाले में लाएं. नहीं तो खिड़की-दरवाजे खोलें, परदे हटाएं, लाइट जलाएं. अच्छी लाइट का इंतजाम हो गया, तो समझो आधा काम हो गया. सबसे बढ़िया लाइट वो है, जो रौशनी तो अच्छी दे, लेकिन आंखो को चुभे नहीं. जैसे सुबह और शाम की लाइट, या फिर बादल में छिपे सूरज की रौशनी.
सही बैकग्रांउड चुने - सही बैकग्रांउड वो है, जिसमें आपके असली 'सब्जेक्ट' (वो चीज जिसकी आप फोटो ले रहे हैं) खिल कर सामने आए. बैकग्रांउड कभी भी चमकीला, भड़कीला या इतना रंगीन नहीं होना चाहिए कि असली सब्जेक्ट ही उसके आगे दब जाए. किसी व्यक्ति की फोटो खींच रहे हैं तो फूलों की बैकग्राउंड के बजाय, टूटी बदरंग पुरानी दीवार ज्यादा अच्छी रहेगी. कभी भी, आपके सब्जेक्ट पर जितनी लाइट है, बैकग्रांउड में उससे ज्यादा लाइट नहीं होनी चाहिए. बैकग्रांउड की लाइट या तो सब्जेक्ट से कम होनी चाहिए या फिर उतनी ही.
व्हाइट बैलेंस ठीक करें - व्हाइट बैलेंस ठीक होने का मतलब है कि लाइट किसी भी रंग की हो, फोटो में हर चीज नैचुरल कलर की दिखे. यानी अगर फोटो बल्ब की पीली रौशनी में ली गई हो तो भी, पत्ते हरे दिखें और सफेद शर्ट सफेद. अगर आप ज्यादा पचड़े में नहीं पड़ना चाहते तो व्हाइट बैंलेस को 'ऑटो मोड' पर कर दें. फिर जिस चीज की फोटो खींचनी हो उस पर फोकस करके, कैमरे को तीन-चार सेकेंड एडजस्ट होने का मौका दें. आप देखेंगे कि फोटो का टोन बदल गया. अगर आप एडवांस यूजर हैं, तो लाइट के हिसाब से व्हाइट बैलेंस के दूसरे मो़ड्स को चुनें.
स्पेशल इफेक्टस को भूल जाएं - कैमरे के सेंटि्ग्स में, हो सकता है आपको ललचाने वाले तरह-तरह के ऑपशन दिखें. 'ब्लैक एंड व्हाइट', 'सिपिया टोन', 'कार्टून इफेक्ट', 'टॉय कैमरा इफेक्ट', 'निगेटिव इफेक्ट' और जाने क्या-क्या. लेकिन मेरी सलाह है अगर आप इनमें से किसी का भी इस्तेमाल नहीं करेंगे तो फायदे में रहेंगे. वजह बिल्कुल साफ है. अगर आपने सीधी सादी, बिना किसी इफेक्ट के फोटो ली है तो आप बाद में प्रोसेसिंग के दौरान, आसानी से मनचाहा इफेक्ट डाल सकते हैं. रंगीन फोटो को, बाद में ब्लैक एंड व्हाइट बनाना बांए हाथ का खेल है. लेकिन कैमरे में ही अगर आपने ब्लैक एंड व्हाइट मोड चुन कर फोटो ली हो, तो बाद में उसे रंगीन बनाना बेहद मुश्किल होगा.
2. क्लिक के समय :
होरिजेंटल या वर्टिकल - आप सबसे पहले ये तय करें के आपकी फोटो में 'मेन सबजेक्ट' क्या है. किसी भी फोटो में, यहां तक सीनरी में भी, दिखने वाली हर चीज 'सब्जेक्ट' नहीं होती. 'सब्जेक्ट' वो चीज है जिसे आप पूरी तरह से हाईलाइट करना चाहते हैं. असल सब्जेक्ट क्या है ये फैसला कर लेने के बाद ये सोचें की उसको हाईलाइट करने के लिए फोन को होरिजेंटल (चौड़ाई में) रखना ठीक होगा या फिर सीधा यानी वर्टिकल. हो सके तो फोन को दोनों तरह से पकड़ कर देखें. ज्यादातर फोटो होरिजेंटल मोड में अच्छे लगते हैं और इसे कंप्यूटर पर स्क्रीन सेवर बनाना आसान होता है. लेकिन प्रोफाइल फोटो वर्टिकल मोड में सुंदर लगते हैं. फोन सीधा हो या होरिजेंटल, इस बात का खास ध्यान रहें कि कैमरा सीधा हो, किसी तरफ झुका हुआ नहीं.
जूम को भूल जाएं - फोन कैमरा ऑन करते ही आपको जूम करने का ऑप्शन दिखेगा. ज्यादातर टच स्क्रीन फोन में कैमरा ऑन करने के बाद आप स्क्रीन पर दो उंगलियों से पिंच करके (यानी चुटकी से) जूम करके, सब्जेक्ट को पास ला सकते हैं. लेकिन फोन के कैमरे में जूम का इस्तेमाल कभी मत करें. कुछ खास मंहगे फोन को छोड़ दें, तो अधिकतर फोन में ऑपटिकल जूम नहीं होता. और डिजिटल जूम फोटो को बर्बाद कर देता है. असल में डिजिटल जूम, लोगों को लुभाने के लिए मार्केटिंग के एक नुस्खे के अलावा कुछ नहीं है.
लेंस पर सीधी लाइट बचाएं - याद कीजिए की जब कार की हेडलाइट आपकी आंखो से टकराती है तो क्या होता है. आंखे इस तरह से चौंधिया जाती हैं कि कुछ दिखाई नहीं देता. यही हाल कैमरे के लेंस का भी होता है. इसलिए फोटो लेते समय, किसी तेज लाइट की धार को सीधे कैमरे की लेंस पर नहीं पड़ने दें. जिस तरफ से लाइट आ रही हो, उस तरफ, आप अपने फोन के साथ खडें हो ताकि सीधी लाइट आपके सब्जेक्ट पर पड़े न कि आपके फोन कैमरे के लेंस पर.
फ्रेमिंग ही है सब कुछ - फ्रेमिंग का मतलब है - फोटो में क्या चीज रखी जाए, कहां पर रखी जाए और किस चीज को हटाने की कोशिश की जाए. इसके लिए फोन को जरा इधर-उधर, ऊपर-नीचे ले जाकर देखें कि कहां से सबसे सुंदर फ्रेम बनता है. ये एकदम जरूरी नहीं है कि आप जिसकी फोटो ले रहे हैं वो फ्रेम के बिल्कुल बीचों-बीच दिखे. सब्जेक्ट को एकदम बीच में डालना अकसर फोटो को बोरिंग बना देता है. हेड रूम (सिर के उपर छोड़ी जाने वाली खाली जगह), लुक रूम (इंसान जिस तरफ देख रहा हो उसके आगे ज्यादा जगह छोड़े) का ख्याल रखें. 'रूल ऑफ वन थर्ड' के बारे में जरूर पढ़ें और इसे लागू करें. फोटोग्राफी का ये सबसे जरूरी नियम कहता है कि अपने फ्रेम को तीन हिस्सों में बांट कर देखें - दो हिस्से में आपका मेन सब्जेक्ट होना चाहिए और तीसरे हिस्से को बैकग्रांउड के तौर पर इस्तेमाल करें. अगर आपके कैमरे की सेटिंग्स में Grid Lines या Guidelines है तो उसे ऑन रखें. फ्रेमिंग में इससे काफी मदद मिलेगी.
फ्लैश है दोधारी तलवार - मोबाइल फोन के छोटे से LED फलैश से लाइट, एक गोली की तरह निकल कर सामने की चीज से टकराती है. इससे फोटो का नैचुरल फील गायब हो जाता है और एक हिस्सा ज्यादा ब्राइट दिखने लगता है. फ्लैश की सीधी तेज लाइट का ये भी मतलब है कि ये एक भद्दी सी शैडो बना सकती है, जो फोटो का मजा खराब कर देती है. अगर लाइट कम हो और रौशनी का कोई और इंतजाम नहीं हो, तो फ्लैश इस्तेमाल करना आपकी मजबूरी है. लेकिन बिना फ्लैश के भी एक दो फोटो लेकर रख लें. फ्लैश की तीखी रौशनी को सॉफ्ट करने के लिए चाहें तो इसके आगे एक पतला सफेद कागज या सफेद टेप लगाकर भी देख सकते हैं. बात सुनने में उल्टी लगेगी, लेकिन अगर आप तेज धूप या तेज लाइट में फोटो ले रहें हों, तो फैल्श का इस्तेमाल करें. ये शैडो को कम करने में आपकी मदद कर सकता है.
फोन हिला, फोटो बेकार - ये बात मालूम तो हर किसी को है लेकिन फिर भी अकसर क्लिक करते समय ही फोन हिल जाता है. फोन को हमेशा दोनों हाथों से पकड़ें और क्लिक के लिए अंगूठे का इस्तेमाल करें. फोन छोटा सा हो, तो जिस हाथ में फोन है उसे दूसरे हाथ से कलाई के नीचे पकड़े - जैसे फायर करते समय रिवाल्वर पकड़ते हैं. कोहनी तक अपने हाथों को सीने से सटा लें और क्लिक करते समय पल भर को सांस रोक लें. आसपास किसी चीज से टेक लगा सकें, या हाथ को टिका सकें तो सबसे अच्छा है. जिस चीज की फोटो ले रहें हों, वो भी न हिले तो बहुत ही अच्छा.
शटर-लैग का ध्यान रखें - डिजिटल कैमरों की एक लाइलाज बीमारी का नाम है 'शटर-लैग'. जब आप क्लिक करते हैं - फोटो असल में उसके कुछ देर बाद खिंचती है. क्लिक करने और असल में फोटो खिंचने के बीच के फासले को ही शटर लैग कहते हैं. अच्छे कैमरों में शटर लैग कम या नहीं के बराबर होता है जबकि सस्ते फोन और डिजीटल कैमरों में आप इसे साफ महसूस कर सकते हैं. शटर लैग खेल खराब न करे इसके लिए असल मौके से एक क्षण पहले क्लिक करें. और क्लिक करने के बाद एक-दो सेकेंड फोन को बिना हिलाए उसी पोजिशन में रखें. थोड़ा बहुत एंगिल बदल कर तीन-चार फोटो खिंच लें ताकि बाद में सबसे बेहतर चुन सकें.
3. क्लिक के बाद :
हो सके तो फोटो को कंप्यूटर पर ट्रांसफर करें - बड़े स्क्रीन पर फोटो में आपको कई ऐसी चीजें दिखेंगी जो फोन के छोटे से स्क्रीन पर ठीक से पता नहीं चलतीं. केबल की झंझट के बिना फोटा कंप्यूटर पर भेजने के लिए ब्लूटूथ का इस्तेमाल करें. उससे भी आसान है फोटो को किसी क्लाउड सर्विस - जैसे ड्रॉपबॉक्स, पिकासा या गूगल प्लस पर अपलोड कर दें और कंप्यूटर पर उसे डाउनलोड कर लें. कंप्यूटर पर फोटो को देखने का बाद अच्छी फोटो को रखकर बाकी को डीलिट कर दें.
अब बारी है फोटो चमकाने की - फोटो को सुंदर बनाने के लिए, उसमें नई जान डालने के लिए एंडिटिंग के तमाम मुफ्त सॉफ्टवेयर मौजूद हैं. अधिकतर लोगों का काम 'पिकासा' या 'गूगल प्लस' के एडिटिंग सॉफ्टवेयर से बखूबी चल जाएगा. पहले पिक्चर से फालतू हिस्सा हटाने के लिए उसे Crop करें. फिर रंग, टोन और लाइट को मनमाफिक करें. स्पेशल इफेक्टस, जैसे ब्लैक एंड व्हाइट, सीपिया करना चाहें, तो उसकी भरमार है इन सॉफ्टवेयर के भीतर.
फोन के भीतर भी हो सकती हैं एडिटिंग - फोटो को कंम्पूटर पर भेजना अगर आपको झंझट का काम लगता है तो फोन के लिए भी तमाम फोटो एडिटिंग ऐप्स मुफ्त उपलब्ध हैं. फोटो में जान डालने के लिए Pixlr Express और Pics Art - Photo Studio शानदार हैं. इनमें से किसी को डाउनलोड कर लें और अपनी फोटो से, जितनी चाहे कलाकारी करें. फोटो पर स्पेशल इफैक्ट्स जितना चाहे, आजमाएं. लेकिन अपनी original फोटो को हमेशा बचा कर रखें.
बस, अब फोटो को जहां चाहें शेयर करें और शान से कहें - फोटो देखो, कैमरा न पूछो !
लेखक आज तक के वरिष्ठ संवाददाता हैं.