scorecardresearch
 

भारत का पहला प्राइवेट मून मिशन, एक छोटी सी आशा नाम का यह रोवर उतरेगा चांद पर

इस छोटे और पावरफुल रोवर का नाम ‘एक छोटी सी आशा’ (ECA) रखा गया है. टीम इंडस का सेलेक्शन Google Lunar Xprize के लिए भी हुआ है. इसके तहत इस रोवर को पहले चांद पर सॉफ्ट लैंड कराया जाएगा और चांद की सतह पर इसे 500 मीटर चलाया जाएगा

Advertisement
X
ईका (एक छोटी सी आशा) रोवर
ईका (एक छोटी सी आशा) रोवर

Advertisement

चांद पर जाना और वहां का अध्यन करना हमेशा से दुनिया भर के लिए गंभीर और महत्वपूर्ण विषय रहा है. हालांकि एक बार के बाद चांद पर कोई भी मानव मिशन नहीं भेजा गया है. भारत की तरफ से चंद्रयान भेजा गया जो मानवरहित मिशन था. दुनिया के कई देश चांद पर अपने रोवर यानी रोबोटिक एक्सप्लोरर भेजने की तैयारी कर रहे हैं जिससे वहां का अध्यन किया जा सके. दुनिया में गिने चुने देश ही हैं जिन्होंने चांद पर रोवर यानी ऐसा रोबोट भेजा है जो वहां की स्टडी करता है.

भारत से चांद तक जाएगा ‘एक छोटी सी आशा’ रोवर

टीम इंडस एक भारतीय स्टार्टअप है और यह देश की पहली प्राइवेट कंपनी होगी जो चांद पर अपना रोवर भेजेगी . इसे इसरो के पीएसएलवी के मदद से 28 दिसंबर को इसे लॉन्च किया जाएगा. कंपनी का दावा है कि यह दुनिया का सबसे हल्का रोवर है जो चांद की सतह पर पहुंचेगा.

Advertisement

हमने चांद पर जाने वाले इस रोवर का फंक्शनल प्रोटोटाइप का जायजा लिय और यह जानने की कोशिश की है कि यह कैसे चांद तक भेजा जाएगा और यह काम कैसे करता है. इससे बेहतर तरीके समझने के लिए हमने टीम इंडस के लीड रोवर सिस्ट सिस्टम इंजीनियर करण वैश्य से बातचीत भी की है जिन्होंने इसे बनाने में अहम रोल निभाया है.

चांद की सतह पर 500 मीटर चलने के बाद गूगल देगा 20 मिलियन डॉलर

इस छोटे और पावरफुल रोवर का नाम ‘एक छोटी सी आशा’ (ECA) रखा गया है. टीम इंडस का सेलेक्शन Google Lunar Xprize के लिए भी हुआ है. इसके तहत इस रोवर को पहले चांद पर सॉफ्ट लैंड कराया जाएगा और चांद की सतह पर इसे 500 मीटर चलाया जाएगा. अगर यह ECA रोवर चांद पर 500 मीटर चलने में कामयाब रहा तो इसे Google Lunar Xprize का विनर माना जाएगा और गूगल टीम इंडस को 20 मिलियन डॉलर देगी.

सिर्फ 7 किलो का होगा यह रोवर

करण वैश्य ने कहा है, ‘इसकी खासियत ये है कि चांद पर अभी तक जितने भी रोवर भेजे गए हैं वो काफी भारी हैं और अब चीन, रूस और अमेरिका ने भेजे हैं. यह 6.5 से 7किलो वजन का होगा और यह सबसे हल्का होगा.’

Advertisement

ECA रोवर के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए करण ने कहा, ‘यह 4 व्हील ड्राइव रोवर जिसके तहत हर चक्के को अलग अलग कंट्रोल किया जा सकता है. इसके सामने दो हाई डेफिनिशन कैमरे लगे हैं जो 4 मेगापिक्सल के हैं. ये दोनों कैमरे हमारी आखों की तरह काम करते हैं. पहले लेफ्ट और फिर राइट से फोटो क्लिक करते हुए इमेज प्रोसेसिंग से यह जान सकेंगे कि चांद के सतह का पत्थर कैसा और यह रोवर इसपर चल पाएगा या नहीं’

इस रोवर में सोलर पैनल लगे हैं जिससे इसमें दी गई लिथियम आएन बैटरी चार्ज होती है और इससे रोवर में लगे मोटर, कैमरा और प्रोसेसर चलते हैं. गौरतलब है कि यह ईका रोवर चांद पर 1 लूनर डे यानी 14 अर्थ डे तक यह चलेगा.

इस रोवर को पहले मुख्य स्पेसक्राफ्ट (लैंडर) में रखा जाएगा इसके अंदर ये जमीन से चांद तक जाएगा. स्पेसक्राफ्ट इसरो के PSLV के अंदर रखा जाएगा. इसरो का PSLV एक बार से 800 किलोमीटर ऊपर छोड़ेगा इसके बाद बचे हुए 4 लाख किलोमीटर की दूरी स्पेसक्राफ्ट खुद तए करेगा. चांद पर पहुंचते ही वहां की सतह पर इस रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग की जाएगी. सॉफ्ट लैंडिंग यानी इस तरह से यह उतरेगा कि यह वहां मूव कर सके. स्पेसक्राफ्ट ECA रोवर को सतह तक उतारेगा और इसके बाद यह रोवर सतह पर चलना शुरू करेगा.

Advertisement

भारत को इससे क्या होगा फायदा

करण वैश्य के मुताबिक अभी तक दुनिया में सिर्फ तीन देश हैं जो चांद पर गए हैं. रूस, चीनी और अमेरिका के बाद अब भारत इस मिशन के जरिए उस लीग में शामिल हो सकता है. भारत में उन गिने चुने देशों में शामिल हो सकता है.

करण वैश्य ने कहा है, ‘हम इस मिशन के जरिए दुनिया को दिखा सकते हैं कि वर्ल्ड क्लास टेक्नॉलॉजी और अव्वल दर्जे की इंजीनियरिंग ये भारत से भी मुमकिन है. मौजूदा दौर में भारत को ज्यादातर कंप्यूटर साइंस और कोडिंग, सॉफ्टवेयर सर्विस देने वाले देश के तौर पर जाना जाता है जो सही नहीं है. हमलोग मैन्यूफैक्चरिंग, टेक्नॉलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर सबकुछ यहां कर सकते हैं और यह मिशन उसका प्रूफ है.

ये मून मिशन चंद्रयान से कैसे अलग है?

करण वैश्य ने कहा है, ‘भारत ने चंद्रयान 1 भेजा है जो चांद की ऑर्बिट में घूमता है और एक छोटा डिवाइस है जो चांद की तरफ छोड़ देता है और वो जैसे ही चांद की सतह पर गिरता है तो वह काम करना बंद कर देता है. इस रोवर का काम वहीं से शुरू होता है. यानी चांद की सतह पर पहुंचने के बाद यह रोवर काम करना शुरू करता है, इसलिए यह चंद्रयान से अलग है.

Advertisement

Advertisement
Advertisement