अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो चुका है. अब वहां के लोगों को एक और डर सता रहा है. दरअसल लोग अपनी सेफ्टी के लिए डिजिटल आईडी मिटा देना चाहते हैं.
वहां के लोगों को ये भी डर है कि तालिबान उन्हें बायोमैट्रिक डेटाबेस और डिजिटल हिस्ट्री के आधार पर उन्हें ट्रैक न कर सके. ये डिजिटल आईडी आधार की तरह ही है जो भारत में लोगों की पहचान के लिए यूज किया जाता है.
यूएन के सेक्रेटरी जनरल और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अगाह किया है कि अफगानिस्तान में पत्रकार और ऐक्टिविस्ट रिस्क पर हैं.
गौरतलब है कि अफगानिस्तान में भी भारत की तरह ही लोगों की डिजिटल आइडेंटिटी तैयाक की गई है. वोटिंग के लिए डिजिटल आईडी कार्ड्स बनाए गए थे जिनमें उनका बायोमैट्रिक डेटा भी शामिल था. ऐक्टिविस्ट्स वॉर्न कर रहे हैं कि लोगों पर अटैक करने के लिए इनका यूज अब तालिबान कर सकता है.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक ह्यूमन राइट्स फर्स्ट ग्रुप ने ट्विटर पर लिखा है, 'हम समझते हैं कि अब तालिबान अफगानिस्तान के लोगों के बायोमैट्रिक डेटाबेस और इक्विप्मेंट को ऐक्सेस करने वाला है'
डेटाबेस ऐक्सेस करने का मतलब तालिबान के पास यूजर्स के फिंगरप्रिंट्स होंगे, फेशियल डेटा होगा और साथ ही आईरिस स्कैन्स भी होंगे. इससे उन्हें वैसे लोगों की पहचान करने में आसानी होगी जो तालिबान की मुखालफत करते रहे हैं.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुकाबिक अमेरिका के कुछ प्राइवेसी ग्रुप्स फारसी लैंग्वेज में गाइड जारी कर रहे हैं. इन गाइड में बताया गया है कि कैसे वहां के यूजर्स अपनी डिजिटल हिस्ट्री डिलीट कर सकते हैं.
उदाहरण के तौर पर फेशियल रिकॉग्निशन को बायपास करने के लिए ऐसे कपड़े पहनना जो फेस को धुंधला कर दे, अलग अलग तरह के मेकअप चेहरे पर लगाना. हालांकि आईरिस स्कैन को बायपास करना बेहद मुश्किल है.
रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल पहले भी तालिबान ने सरकार के बायोमैट्रिक सिस्टम को यूज करके सिक्योरिटी फोर्स को टारगेट किया था. डेटाबेस में उनके फिंगरप्रिंट भी निकाले गए थे.
गौरतलब है कि इस कहीं भी यूजर का डिजिटल डेटाबेस पर इस तरह का खतरा रहता है. क्योंकि जब तक यूजर्स का डिजिटल डेटाबेस सही हाथों में है तो ठीक है, जैसे ही इनका ऐक्सेस गलत हाथों में गया यूजर्स तबाह हो सकते हैं.
आधार की बात करें तो यहां भी यूजर्स का संवेदनशील डेटा है. आधार में लोगों के आंखों का स्कैन भी है. प्राइवेसी ग्रुप्स इन्हीं सब संभावित गलत यूज को लेकर अगाह करते रहे हैं कि यूजर्स का बायोमैट्रिक डेटा की सेफ्टी को ट्रांसपेरेंट बनाना चाहिए. समय समय पर डेटा लीक की खबरें भी आती हैं.