क्या आप एक प्रीपेड सिम कार्ड के लिए 4,900 रुपये खर्च करेंगे? इतने पैसे खर्च करने के बाद भी आपको 17 रुपये प्रति मिनट की दर से इनकमिंग और आउटगोइंग कॉल्स मिलेंगी. ये कीमतें आपको काफी ज्यादा लग सकती है, लेकिन कभी भारत में लोग टेलीकॉम सर्विसेस के लिए इतने पैसे ही खर्च करते थे.
आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाजार है. यहां आपको बहुत बड़ी आबादी के हाथ में स्मार्टफोन मिलेगा. मगर इसकी शुरुआत एक दिन में नहीं हुई है. आज हम भारत की आजादी का 75वां महोत्सव मान रहे हैं.
हमारी शुरुआत कहां से हुई और कैसे भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाजार बना. आइए देश के इस सफर पर एक नजर डालते हैं.
साल 1995, जब भारत में GSM सर्विसेस की शुरुआत हुई. तत्कालीन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु और केंद्रीय टेलीकॉम मिनिस्टर सुख राम के बीच भारत की पहली GSM कॉल की गई. यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जब GSM नेटवर्क पर पहली कॉल की गई.
आज हम भले ही 5G नेटवर्क की लॉन्चिंग की तैयारियां कर रहे हैं, लेकिन उस दौर में पहली GSM कॉल ने आज के दौर की नींव रखी थी. ये कॉल Nokia के हैंडसेट से की गई थी. इस दौर में लोगों के हाथ में हैवी फोन्स हुआ करते थे.
कार्डलेस जैसे डिजाइन वाले इन फोन्स के साथ लैंडलाइन वाली मजबूरियां नहीं थी. Philips से लेकर Nokia (पहली वाली कंपनी) तक कई सारे ब्रांड्स मार्केट में मौजूद थे. आज इन ब्रांड्स का नाम यादों में ही रह गया है.
साल 2002 जब भारतीय बाजार में CDMA के एंट्री हुई. CDMA को टेलीकम्युनिकेशन की दूसरी पीढ़ी माना जाता था. उस वक्त GSM सर्विस मार्केट में छा चुकी थी.
2G कम्युनिकेशन के बाजार में GSM सर्विसेस का 80 परसेंट कब्जा था. बाजार में कई ब्रांड्स मौजूद थे, लेकिन Tala Tele और Reliance ने CDMA के जरिए एंट्री की.
CDMA की शुरुआत के साथ फीचर्स फोन्स मार्केट में आ चुके थे. नोकिया के छोटे फीचर्स फोन्स का भारतीय बाजार में दबदबा था. सैमसंग ने भी यहां एंट्री कर ली थी और CDMA सर्विसेस के साथ सैमसंग ने एक नए रास्ते से अपनी जगह तलाशनी शुरू कर दी थी.
साल 2004 में मोबाइल्स फोन्स कनेक्शन्स की संख्या लैंडलाइन सब्सक्राइबर्स से ज्यादा हो गई. यहां से एक नए युग की शुरुआत हो रही थी. किसी ने नहीं सोचा था की अगले एक दशक में यह बाजार पूरी तरह से बदलने वाला है.
इस एक दशक में फीचर्स फोन्स में फीचर बढ़ने लगे. सिर्फ कॉल करने वाले फोन्स का ये सफर अब कैमरा वाले फोन्स, मज्यूजिक प्लेयर और वीडियो प्लेयर्स वाले फोन्स के दौर में पहुंच गया था. लोगों के हाथ में वॉकमैन नहीं फोन हुआ करते थे.
2004 से 2014 के बीच भारत में एंड्रॉयड और आईफोन दोनों की ही एंट्री हो चुकी थी. फीचर्स फोन्स के मार्केट में जिस नोकिया का दबदबा था. वह हर दिन किसी ना किसी ब्रांड्स से पिछड़ रही थी.
सैमसंग ने मार्केट में अपनी धाक जमा ली थी और फिर 2014 आता है. इस साल फोन से स्मार्टफोन्स का बाजार बने भारत में कई बड़े चीनी प्लेयर्स की एंट्री होती है. इन प्लेयर्स की लिस्ट में Xiaomi एक बड़ा नाम था.
वैसे तो स्मार्टफोन के कई पॉपुलर ब्रांड्स मौजूद थे, लेकिन Xiaomi, Oppo, Vivo और OnePlus जैसे चीनी ब्रांड्स ने धीरे-धीरे भारतीय फोन बाजार में कब्जा जमाना शुरू कर दिया.
साल 2016 में रिलायंस जियो लॉन्च हुआ. जियो की लॉन्चिंग स्मार्टफोन्स के लिए किसी क्रांति से कम नहीं है. आज आप जो हर तबके के हाथ में स्मार्टफोन देख रहे हैं. इसमें जियो की बड़ी भूमिका है. जियो की एंट्री से पहले टेलीकॉम सेक्टर वॉयस कॉल प्लान्स ओरिएंटेड था.
जियो के आने के साथ ही इंटरनेट का महत्व और खर्च दोनों बढ़ गए. आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाजार है. यहां तक पहुंचने में देश की आबादी के साथ सस्ता इंटरनेट और सस्ते चीनी स्मार्टफोन्स का बड़ा योगदान है.
Jio की एंट्री के बाद टेलीकॉम इंडस्ट्री में कई बड़े बदलाव देखने को मिले. इससे पहले तक लोगों के पास कुछ रीजन स्पेसिफिक टेलीकॉम कंपनियां थी. मगर तेजी से बदले मार्केट में वह कंपनियां टिक नहीं पाईं. जियो की एंट्री के कुछ साल बाद यानी आज हमारे पास सीमित विकल्प बचे हुए हैं.