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Pegasus पिछले कुछ दिनों से खबरों में है. Pegasus एक स्पाईवेयर है जिसे इजरायल की कंपनी NSO Group ने बनाया है. हाल ही में ये खुलासा हुआ कि Pegasus का इस्तेमाल कई देशों की सरकार जासूसी करने के लिए कर रही हैं.
इस इन्वेस्टिगेशन में भारत का भी नाम आया है. खुलासा ये भी हुआ है कि भारत के कई पत्रकार, एक्टिविस्ट्स और विपक्ष के नेताओं की जासूसी Pegasus से की गई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 180 से ज्यादा पत्रकारों की जासूसी की जा रही थी.
दरअसल Pegasus मामले का खुलासा करने में कई इंटरनेशनल न्यूज ऑर्गनाइजेशन का हाथ है. इनमें Forbidden Stories और Amnesty नाम के ऑर्गाइनजेशन मुख्य रूप से शामिल है.
कैसे हुई ये पूरी इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग और कैसे दुनिया को ये पता चला कि Pegasus जैसे टूल्स प्राइवेसी पर कितना गहरा असर डाल रहे हैं. आइए जानते हैं.
Pegasus ग्सोबल जासूसी की इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग में दुनिया भर के 80 पत्रकारों ने हिस्सा लिया. लगभग 10 देशों के पत्राकारों ने मिल कर इसकी जांच की है और इसमें 17 मीडिया ग्रुप्स शामिल रहे हैं.
Forbidden Stories के मुताबिक इस इन्वेस्टिगेशन की शुरुआत 50 हजार फोन नंबर्स के रिकॉर्ड के साथ हुई. इसे एम्नेस्टी इंटरनेशनल और फॉरबिडेन स्टोरीज ने मिल कर ऐक्सेस किया. इसके बाद फॉरबिडेन स्टोरीज के दो पत्रकारों ने दुनिया भर के कई मीडिया हाउस से संपर्क करके उन्हें अपने साथ लाया.
सभी लोग कोरोना वायरस महामारी के दौरान पेरिस में मिले. तब तक Pegasus ग्लोबल जासूसी की कम ही जानकारी उन्हें पता थी. मिलने के बाद Pegasus Project की शुरआत की गई.
महीनों तक सभी पत्रकारों ने एक दूसरे से सिक्योर कम्यूनिकेशन किया. 10 देशों में इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोग थे. इनमें भारत, फ्रांस, बेल्जियम, मैक्सिको, लेबनन, अमेरिका और ब्रिटेन शामिल हैं. ग्राउंड पर जितने भी पत्रकार थे सभी एक दूसरे से सिक्योर कम्यूनिकेशन करते थे.
पेरिस से फॉरबिडेन स्टोरीज की टीम ने Pegasus पर लीड हासिल किया और अपने साथी पत्रकारों के जरिए मैक्सिको, दुबई, सउदी अरब और भारत से लीड इकठ्ठा किया.
पेगासस प्रोजेक्ट के पत्रकारों ने ये पाया कि उनके कई साथी पत्रकार सरकार द्वारा की जा रही इस जासूसी का टारगेट हैं यानी उन पर जासूसी की जा रही थी.
फॉरबिडेन स्टोरीज के मुताबिक 20 देशों के 180 से भी ज्यादा पत्रकारों को संभावित टारगेट के तौर पर हाईलाईट किया गया था. एम्नेस्टी टेक ने इनमें से कुछ पत्रकारों का फॉरेंसिक किया और पाया कि उनकी निगरानी Pegasus के जरिए की जा रही थी.
पेगासस प्रोजेक्ट के रिएक्शन के तौर पर कई बड़े बदलाव देखे गए. उदाहरण के तौर पर इजरायल की कंपनी NSO Group, जिसने Pegasus बनाया है, ये कंपनी ऐमेजॉन का इंफ्रास्ट्रक्चर यूज करती थी. ऐमेजॉन ने रिएक्शन के तौर पर NSO Group को दिया गया इंफ्रास्ट्रक्चर शट डाउन कर दिया.
इसके बाद मोरक्को की तरफ से फॉरबिडेन स्टोरीज पर मानहानि का मुकदमा कर दिया. अब धीरे धीरे कई देशों में इस जासूसी की जांच करने की मांग उठ रही है. उधर WhatsApp हेड ने इसे प्राइवेसी पर बड़ा हमला बताया है. क्योंकि Pegasus वॉट्सऐप भी हैक कर सकता है.
इतना ही नहीं, इस इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग से ये भी सामने आया है कि ऐपल के आईफोन भी Pegasus से सुरक्षित नहीं हैं. इस जांच से पहले ये क्लियर नहीं था कि ये स्पाईवेयर किस किस तरह से फोन और दूसरे सिस्टम को इंफेक्ट कर सकता है. लेकिन अब साफ है कि ये Pegasus कितना खतरनाक है और इसके संभावित खतरे क्या क्या हैं.