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रेलवे का वो 'कवच' जो रोक सकता था ओडिशा ट्रेन हादसा? आखिर कैसे करता है काम

What Is Railway Kavach: बालासोर में हुआ ट्रेन हादसा 280 लोगों के लिए काल बनकर आया. काल जिसने कई परिवारों में मातम पसार दिया है, लेकिन क्या इस भयानक एक्सीडेंट को रोका जा सकता था. विपक्ष लगातार सरकार से सवाल कर रहा है. सवाल उस 'कवच' को लेकर है, जिसके जरिए रेलवे जीरो एक्सपीडेंट के लक्ष्य को हासिल करना चाहता है. आइए जानते हैं क्या है ये 'कवच'.

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Balasore Train Accident: बालासोर ट्रेन हादसे की एक तस्वीर
Balasore Train Accident: बालासोर ट्रेन हादसे की एक तस्वीर

ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार रात एक भीषण हादसा हो गया. तीन ट्रेनों के बीच हुई टक्कर में अब तक 280 लोगों की मौत हो चुकी है और रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है. इन सब के बीच विपक्ष लगातार एक सवाल उठा रहा है. सवाल रेलवे की उस तकनीक को लेकर है, जिसका डेमो कुछ वक्त पहले दिखाया गया था. 

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सवाल उठ रहे हैं रेलवे के कवच प्रोजेक्ट को लेकर, जिसे रेलवे ने जीरो एक्सीडेंट टार्गेट हासिल करने के लिए लॉन्च किया था. हालांकि, रेलवे की कवच टेक्नोलॉजी को सभी ट्रैक पर अभी तक नहीं जोड़ा गया है. 

रेलवे के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने जानकारी दी है कि इस रूट पर कवच सिस्टम नहीं लगा था.  इसका एक डेमो इस साल की शुरुआत में भी दिखाया गया था, जिसमें आमने-सामने आने पर दो ट्रेनें अपने आप रुक जाती हैं. 

क्या है रेलवे का Kavach प्रोटेक्शन सिस्टम? 

कवच एक ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है, जिसे भारतीय रेलवे ने RDSO (रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन) के जरिए विकसित किया है. इस सिस्टम पर रेलवे ने साल 2012 में काम करना शुरू किया था. उस वक्त इस प्रोजेक्ट का नाम Train Collision Avoidance System (TCAS) था. 

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इस सिस्टम को विकसित करने के पीछे भारतीय रेलवे का उद्देश्य जीरो एक्सीडेंट का लक्ष्य हासिल करना है. इसका पहला ट्रायल साल 2016 में किया गया था. पिछले साल इसका लाइव डेमो भी दिखाया गया था. 

कैसे काम करता है कवच? 

ये सिस्टम कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस का सेट है. इसमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइसेस को ट्रेन, ट्रैक, रेलवे सिग्नल सिस्टम और हर स्टेशन पर एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है. ये सिस्टम दूसरे कंपोनेंट्स से अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए कम्युनिकेट करता है. 

जैसे ही कोई लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप करता है, तो कवच एक्टिव हो जाता है. इसके बाद सिस्टम लोको पायलट को अलर्ट करता है और फिर ट्रेन के ब्रेक्स का कंट्रोल हासिल कर लेता है. जैसे ही सिस्टम को पता चलता है कि ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही है, तो वो पहली ट्रेन के मूवमेंट को रोक देता है. 

सिस्टम लगातार ट्रेन की मूवमेंट को मॉनिटर करता है और इसके सिग्नल भेजता रहता है. अब इस पूरी प्रक्रिया को आसान भाषा में समझते हैं. इस टेक्नोलॉजी की वजह से जैसे ही दो ट्रेन एक ही ट्रैक पर आ जाती हैं, तो एक निश्चित दूरी पर सिस्टम दोनों ही ट्रेनों को रोक देता है.

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दावों की मानें तो अगर कोई ट्रेन सिग्नल जंप करती है, तो 5 किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी ट्रेनों की मूवमेंट रुक जाएगी. दरअसल, इस कवच सिस्टम को अभी सभी रूट्स पर इंस्टॉल नहीं किया गया है. इसके अलग-अलग जोन में धीरे-धीरे इंस्टॉल किया जा रहा है. 

22 दिसंबर 2022 को रेल मंत्री ने राज्यसभा में एक प्रश्न का लिखित जवाब देते हुए बताया, 'कवच सिस्टम को फेज मैनर (चरणबद्ध) तरीके से इंस्टॉल किया जाएगा. कवच को साउथ सेंट्रल रेलवे के 1445 किलोमीटर रूट और 77 ट्रेनों में जोड़ा गया है. इसके साथ ही दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा कॉरिडोर पर भी इसे जोड़ने का काम चल रहा है.' 

कैसे हुआ हादसा?

बालासोर ट्रेन हादसे की शुरुआती खबर जब आई तो टक्कर एक एक्सप्रेस और मालगाड़ी के बीच बताई जा रही थी. इस हादसे में 30 लोगों के मौत की जानकारी मिली थी, लेकिन कुछ ही वक्त बाद हादसे की पूरी डिटेल आई. इसमें पता चला की हादसा दो ट्रेनों के बीच नहीं बल्कि तीन ट्रेनो के बीच हुआ है. 

हादसे बहानगा बाजार स्टेशन के पास हुआ है. एक्सीडेंट के वक्त आउटर लाइन पर मालगाड़ी खड़ी थी. हावड़ा से आ रही कोरोमंडल एक्सप्रेस बहानगा बाजार से लगभग 300 मीटर दूर डिरेल हुई.

ये हादसा इतना भयानक था कि कोरोमंडल एक्सप्रेस का ईंजन मालगाड़ी के ऊपर चढ़ गया और इसकी बोगियां तीसरे ट्रैक पर जा गिरीं. इस बीच तेज रफ्तार से आ रही हावड़ा-बेंगलुरु एक्सप्रेस डिरेल हुई कोरोमंडल एक्सप्रेस की बोगियों से टक्करा गई. 

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