
सरकार बनाम ट्विटर ही नहीं, बल्कि सरकार बनाम वॉट्सऐप भी हो चुका है. WhatsApp सरकार के नए नियम के खिलाफ कोर्ट जा चुका है. आखिर ऐसा क्या है जो WhatsApp मानने को तैयार नहीं है?
दरअसल इस IT Rule के तहत ये प्रावधान है कि जरूरत पड़ने पर WhatsApp को किसी मैसेज के ओरिजिनिटेर के बारे में सरकार को जानकारी देनी होगी. WhatsApp ने इस नियम को मानने से साफ इनकार कर दिया है.
WhatsApp की क्या दलील है?
WhatsApp का कहना है कि WhatsApp मैसेज एंड टु एंड एन्क्रिप्टेड होते हैं. इस एन्क्रिप्शन का मतलब मोटे तौर पर ये है कि वॉट्सऐप भी यूजर्स का चैट नहीं पढ़ सकता है. वॉट्सऐप के मुताबिक कंपनी को ये अख्तियार ही नहीं है कि वो किसी का चैट पढ़ सके या किसी एजेंसी को दे सके.
ट्रेसिब्लिटी का हो सकता है गलत इस्तेमाल...
WhatsApp के मुताबिक एंड टु एंड एन्क्रिप्शन की वजह ये मुमकिन नहीं है. कंपनी ने कहा है कि मैसेज ट्रेस करने के कई संभावित खतरे हैं और इसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है.
उदाहरण के तौर पर अगर आपने एक इमेज डाउनलोड की और उसे शेयर कर दिया, इसका स्क्रीनशॉट ले कर फिर से भेज दिया.
इसी तरह किसी के द्वारा भेजा गया आर्टिकल वॉट्सऐप पर फॉरवर्ड कर दिया ऐसी स्थिति में आपको ओरिजिनेटर के तौर पर ट्रीट किया जा सकता है. लेकिन सही मायनों में आप उसके ओरिजिनेटर नहीं हैं.
WhatsApp के मुताबिक कोई भी किसी टेक्स्ट को कॉपी पेस्ट करके उसनें अपनी बातें ऐड करके किसी को भी भेज सकता है. WhatsApp ने कहा है कि इसे पेड़ की तरह समझना चाहिए जिसकी कई टहनियां होती हैं, एक टहनी को देख कर ये अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि और कितनी टहनियां हैं.
ह्यूमन राइट्स का उल्लंघन? निर्दोष लोग हो सकते हैं शिकार...
WhatsApp ने अपने ब्लॉग पोस्ट में कहा है कि ट्रेसिब्लिटी की वजह से जांच के दौरान निर्दोष भी पकड़े जा सकते हैं, या जेल जा सकते हैं.
इस ब्लॉग पोस्ट में कहा गया है कि अगर कोई शख्स कंटेंट क्रिएट करता है जो आगे चल कर सरकार की नजर में वो खराब हो जाता है तो ऐसी स्थिति में कंपनियों से यूजर्स का डेटा मांगा जा सकता है. भले ही पहले वो सरकार के प्वाइंट ऑफ व्यू से नुकसानदायक न हो.
ट्रेसिब्लिटी से एंड टु एंड एन्क्रिप्शन कैसे टूट रहा है?
WhatsApp के मुताबिक कंपनी ने 2016 से कॉल्स, मैसेज, फोटोज और वीडियोज शेयर करने पर एंड टु एंड एन्क्रिप्शन लगाया था.
कंपनी के मुताबिक ट्रेसिब्लिटी की वजह से WhatsApp को यूजर्स के प्राइवेट मैसेज का ट्रैक रखना होगा. यानी किसने क्या कहा और किसने क्या शेयर किया है. ऐसे में अरबों मैसेज का ट्रैक रखना होगा.
ट्रेसिब्लिटी के लिए मैसेजिंग सर्विसेज को इनफॉर्मेशन स्टोर करके रखना होता है ताकि समय पड़ने पर ये देखना जा सके किसने क्या मैसेज किया है. अगर ऐसा किया गया तो एंड टु एंड एन्क्रिप्शन टूटेगा.
एक मैसेज ट्रेस का मतलब सभी मैसेज का ट्रेस.. कैसे?
WhatsApp ने अपने ब्लॉगपोस्ट में ये भी क्लियर किया है कि एक मैसेज को ट्रेस करने के लिए हर मैसेज को ट्रेस करना होगा.
WhatsApp के ब्लॉगपोस्ट में कहा गया है कि इस बात का अंदाजा लगा पाना मुश्किल है कि फ्यूचर में सरकार कौन से मैसेज की जांच करना चाहेगी. ऐसा करके एक सरकार जो ट्रेसिब्लिटी चाहती है वो एक तरह का मास सर्विलांस यानी जन निगरानी की तरह है.
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आपके हर पर्सनल मैसेज किए जाएंगे स्टोर...
सरकार के इस नियम को मानने के लिए मैसेजिंग सर्विस को एक बड़ा डेटाबेस तैयार करना होगा. इस डेटाबेस में आपके द्वारा सेंड किए गए हर मैसेज का रिकॉर्ड होगा या आपकी एक परमानेंट आईडेंडिटी स्टैंप क्रिएट होगा.
ये ठीक आपके फिंगरप्रिंट की तरह है जिससे ये आपके प्राइवेट मैसेज का खुलासा किया जा सकेगा. आप किससे बाते कर रहे हैं और क्या बातें कर रहे हैं.
अगर ऐसा हुआ तो कंपनियां अपने यूजर्स का और ज्यादा डेटा कलेक्ट करने लगेंगी. ऐसे में जब लोग चाहते हैं कि कंपनियों के पास उनका डेटा कम से कम हो.
सरकार का क्या कहना है?
सरकार की तरफ से पहले भी ये कहा गया था कि वॉट्सऐप कोई टूल बनाए जिससे मैसेज के ऑरिजनिटेर का पता लगाया जा सके. इस बार भी ऐसा ही कहा गया है. सरकार के ताजा स्टेटमेंट के मुताबिक इस नियम से आम लोगों को दिक्कत नहीं होगी. लेकिन WhatsApp ने कहा है कि इससे सभी की प्राइवेसी खतरे में आएगी.