क्या कोई आपकी लोकेशन ट्रैक कर रहा है या फिर कर सकता है? कई बार इस तरह से सवाल हमारे जेहन में आते हैं. ये तो साफ है कि मोबाइल नंबर के जरिए किसी की लोकेशन को ट्रैक किया जा सकता है. ऐसा नहीं होता तो पुलिस कैसे अपराधियों को मोबाइल नंबर या उनके फोन की मदद से ट्रैक करती.
ये तरीका इतना आसान भी नहीं है कि हर कोई इसका इस्तेमाल कर सके. कई बार लोगों को लगता है कि वो इंटरनेट से किसी ऐप को डाउनलोड करेंगे और उनका काम हो जाएगा.
इसकी मदद से किसी की भी लोकेशन को ट्रैक किया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है. IP ऐड्रेस, Mac ऐड्रेस से आपको किसी यूजर की संभावित लोकेशन मिल सकती है, लेकिन ये सब इतना आसान नहीं है. आइए जानते हैं लोकेशन ट्रैकिंग के कुछ तरीकों के बारे में.
मोबाइल फोन चोरी होने पर आप अगर FIR कराने जाएंगे, तो पुलिस आपके फोन का IMEI नंबर मांगती है. इसकी मदद से ही फोन को ट्रेस किया जाता है. हालांकि, इसके लिए कोई अलग से सेटअप नहीं है, बल्कि पुलिस टेलीकॉम कंपननियों पर निर्भर करती है.
दरअसल, संदिग्ध या फिर चोरी हुए फोन्स को ट्रैक करने के लिए पुलिस टेलीकॉम कंपनियों को IMEI नंबर देती है. जैसे ही इस IMEI नंबर वाले फोन में कोई सिम लगता और एक्टिव होता है, टेलीकॉम ऑपरेटर को इसकी जानकारी मिल जाती है.
एक्टिव नंबर किस सेल टॉवर से कनेक्टेड है और उससे एक्टिव नंबर की दूसरी कितनी है? ये सभी जानकारी टेलीकॉम कंपनी पुलिस को देती है, जिसकी मदद से अपराधियों को ट्रेस किया जाता है.
IP ऐड्रेस या मैक ऐड्रेस की मदद से भी किसी की लोकेशन पता लगाई जा सकती है. लेकिन इसके कुछ शर्त हैं. आईपी ऐड्रेस यानी इंटरनेट प्रोटोकॉल एक यूनिक नंबर्स का सेट होता है. हर डिवाइस का एक आईपी ऐड्रेस होता है.
इसे आप किसी के घर के ऐड्रेस जैसा ही समझ सकते हैं, जिसकी मदद से उस डिवाइस की लोकेशन का पता लगाया जा सकता है. हालांकि, ये काम इतना आसान नहीं होता है. क्योंकि सबसे पहले आपको किसी डिवाइस का आईपी ऐड्रेस चाहिए होगा, जो अपने आप थोड़ा पेचीदा काम है.
एक बार आपके हाथ आईपी ऐड्रेस लग जाए, तो आप IP Lookup या Wolfram Alpha जैसी वेबसाइट्स की मदद से डिवाइस की लोकेशन पता कर सकते हैं. हालांकि, इन वेबसाइटेस से आपको सटीक लोकेशन नहीं मिलेगी. बल्कि उस डिवाइस के एरिया की लोकेशन पता की जा सकती है.
ये भी डिपेंड करता है कि जिस शख्स को IP ऐड्रेस से ट्रैक किया जा रहा है वो इसकी कितनी समझ है. क्योंकि इन दिनों IP ऐड्रेस लगातार बाउंस कराने का भी चलन तेजी से बढ़ रहा है. ऐसा करके आप को फर्जी लोकेशन भी मिल सकती है.
इस तरीके का इस्तेमाल आम जनता कर सकती है. किसी भी थर्ड पार्टी ऐप की मदद से यूजर की लाइव लोकेशन नहीं पता की जा सकती है. हां, कोई चाहे तो अपनी लोकेशन आपसे शेयर जरूर कर सकता है.
वहीं Truecaller जैसे कॉलर आईडेंटिटी ऐप्स का इस्तेमाल भी आप इसके लिए कर सकते हैं. इसकी मदद से आपको कॉलर के बारे में कुछ जानकारी जरूर मिल जाएगी. मसलन उसका संभावित नाम, नंबर किस टेलीकॉम ऑपरेटर का है और एक सर्किल से खरीदा गया है.