स्मार्टफोन खरीदने अगर किसी दुकान पर जाते हैं या फिर ऑनलाइन साइट पर तो आपने फास्ट चार्जिंग का नाम तो सुना होगा. वैसे कुछ साल पहले तक इस तरह के टर्म का इस्तेमाल नहीं होता था, लेकिन अब यह हर ब्रांड की ब्रांडिंग का हिस्सा बन चुका है.
स्मार्टफोन ब्रांड्स ने पिछले कुछ सालों में फास्ट चार्जिंग के टेक्नोलॉजी को हैंडसेट में जोड़ा है, जिसकी वजह से फोन तेजी से चार्ज हो जाते हैं. तेजी से भागती आजकल की 'मेट्रो लाइफ-स्टाइल' में रैपिड या फास्ट चार्जिंग बड़े काम की टेक्नोलॉजी है.
यह टेक्नोलॉजी जितने काम की है, उतनी ही नुकसानदायक भी हो सकती है. दरअसल, सभी स्मार्टफोन फास्ट चार्जिंग सपोर्ट नहीं करते हैं. करते भी हैं, तो उनके लिए अलग-अलग लिमिट होती है.
मसलन- सैमसंग के ज्यादातर फोन्स में 18W या 25W की ही चार्जिंग देखने को मिलती है. वहीं रियलमी के स्मार्टफोन- 18W, 33W, 67W और यहां तक की अब 150W की फास्ट चार्जिंग सपोर्ट के साथ आ रहे हैं. शाओमी भी 120W तक की चार्जिंग ऑफर कर रहा है.
कई बार आपने सुना या देखा होगा कि लोगों के फोन डेड हो जाते हैं या फिर ऑन होती ही ऑफ हो जाते हैं. इस तरह की दिक्कत खासतौर पर पुराने डिवाइसे (लगभग दो साल पहले वाले) में देखने को मिलती है.
वैसे तो किसी डिवाइस के डेड होने की कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन फास्ट चार्जिंग के मामले बहुतायत देखने को मिलते हैं. दरअसल, बहुत से लोगों की आदत होती है कि फोन को जल्दी चार्ज करने के लिए फास्ट चार्जर का यूज करते हैं.
चूंकि, हर फोन में फास्ट चार्जिंग का सपोर्ट नहीं मिलता है, इसलिए फोन के डेड होने के मामले आते हैं. कई बार तो यूजर्स टाइप-सी चार्जिंग वाले लैपटॉप चार्जर का भी इस्तेमाल फोन चार्ज करने के लिए कर लेते हैं.
इस तरह की आदतें आपका नुकसान करा सकती हैं. फास्ट चार्जिंग की वजह से स्मार्टफोन तेजी से गर्म होते हैं और इसकी वजह से कई बार मदरबोर्ड में शॉर्ट सर्किट हो जाता है. फोन में ब्लास्ट तक की स्थिति का सामना आपको करना पड़ सकता है. बेहतर होगा कि आप अपने फोन को चार्ज करने के लिए ओरिजनल और बॉक्स में आने वाले स्टैंडर्ड चार्जर का ही इस्तेमाल करें.