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'उस आदमी की जानकारी चाहिए एक खबरी उसके पीछे लगा दो...' ऐसे डायलॉग आपने कई फिल्मों में सुने होंगे, लेकिन किसी खबरी से आपका पाला शायद ना पड़ा हो? मगर इंटरनेट की दुनिया में कई डिजिटल खबरी हैं, जो आपकी जानकारी चोरी करते हैं. चोरी करके नीलाम करते हैं और फिर अपनी जेब भरते हैं. हम बात कर रहे हैं हैकर्स की, जो आपका डेटा चुराते हैं.
डेटा लीक की खबरें हमें अक्सर सुनने को मिलती हैं. कभी Facebook का तो कभी किसी अन्य प्लेटफॉर्म्स के यूजर्स का डेटा लीक होता है, लेकिन लीक हुए इस डेटा का होता क्या है. हैकर्स इसे कहां बेचते हैं और इनकी कीमत कैसे तय होती है. क्या आपने कभी इन सब पर विचार किया है.
हैकर्स आपका और इंटरनेट पर मौजूद करोड़ों लोगों का डेटा अक्सर खंगालते रहते हैं. यूजर्स के डेटा को चोरी करने के लिए हैकर्स कई तरह के लूप होल्स तलाशते हैं. लूप होल्स यानी ऐसा दरवाजा या खामी, जहां से डेटा चुराया जा सके. आइए जानते हैं इस हैकर्स, हैकिंग और डेटा चोरी की पूरी कहानी.
सबसे पहले बात करते हैं डेटा कैसे चोरी होता है? स्कैमर्स इंटरनेट पर मौजूद लोगों का डेटा चुराने के लिए किसी बड़ी वेबसाइट में कोई खामी खोजते हैं. इस खामी के सहारे स्कैमर्स वेबसाइट या फिर प्लेटफॉर्म के डेटाबेस में सेंधमारी करते हैं और फिर लाखों यूजर्स का डेटा चुराते हुए हैं. चोरी हुआ ये डेटा Dark Web पर पहुंचता है, जहां इसकी निलामी होती है.
अब समझते हैं डार्क वेब क्या होता है. दरअसल, इंटरनेट की दुनिया को तीन हस्सों में बांटा गया है. पहला हिस्सा सर्फेस वेब है, जिसका इस्तेमाल लगभग हर एक शख्स करता है. यानी आप इंटरनेट पर जो कुछ सर्च करते हैं, ये सब सर्फेस वेब का हिस्सा है, लेकिन ये इंटरनेट की दुनिया का मामूली हिस्सा होता है.
इसके बाद बारी आती है डीप वेब की, जहां तमाम ऐसे वेब पेज होते हैं, जो सामान्यतः सर्च इंजन पर नजर नहीं आते हैं. आप किसी भी विषय पर ज्यादा जानकारी के लिए इंटरनेट पर पन्ने-दर-पन्ने डेटा को खंगालते हैं, तो ये डीप सर्च का हिस्सा बन जाता है. आखिर में बारी आती है Dark Web की.
इसके नाम की तरह ही ये दुनिया भी काली है. यहां तक पहुंचना हर किसी के बस बात नहीं है. हालांकि, पिछले कुछ सालों में डार्क वेब में एंट्री आसान हो गई है, लेकिन यहां अंडरवर्ल्ड की तरह हर कदम पर खतरा होता है. खतरा हैकर्स का, स्कैमर्स का और अपने साथ ठगी का. डार्क वेब का एक्सेस स्पेशल ब्राउजर के जरिए होता है. यहां पर ही आपके डेटा की खरीद फरोख्त होती है.
Dark Web में अलग-अलग डेटा की कीमत अलग-अलग होती है. किसी यूजर की डेटा की वैल्यू 1010 डॉलर तक हो सकती है. अगर किसी ने ऑनलाइन लॉगइन डिटेल्स चोरी की हैं, तो इसकी कीमत 50 डॉलर होती है. क्रेडिट कार्ड और उससे जुड़ी दूसरी जानकारियों की कीमत 17 डॉलर से 120 डॉलर तक हो सकती है.
ऑनलाइन बैंकिंग लॉगइन डिटेल्स की कीमत 65 डॉलर तक होती है. वहीं हैकर्स फेसबुक अकाउंट की कीमत 45 डॉलर, क्लोन्ड VISA और पिन की डिटेल्स 20 डॉलर, स्टोलेन PayPal अकाउंट की डिटेल्स 20 डॉलर होती है. हैक्ड वेब और Uber व Netflix जैसी एंटरटेनमेंट सर्विसेस के यूजर्स का डेटा 40 डॉलर तक की कीमत पर बिकता है.
हैकर्स इन डेटा को Dark Web पर लिस्ट करते हैं. इन डेटा के साथ एक छोटा सैंपल भी लिस्ट किया जाता है, जो फ्री एक्सेस के लिए उपलब्ध होता है. खरीदार सैंपल डेटा को क्रॉस चेक करता है और जब उसे सब कुछ ठीक लगता है, तो सौदेबाजी शुरू होती है. स्कैमर्स ज्यादातर डेटा क्रिप्टोकरेंसी के बदले खरीदते हैं, जिससे उनके बारे में कोई जानकारी हासिल ना की जा सके.
लोगों के साथ ठगी के तमाम मामले आपने सुने होंगे. इन स्कैमर्स के बाद यूजर्स की बहुत सारी डिटेल्स पहले से ही मौजूद होती हैं. वैसे तो ये डिटेल्स कई तरह से हासिल की जा सकती है. इन तरीकों में से एक Dark Web से खरीदा गया डेटा होता है. यानी डार्क वेब के खरीदे डेटा की मदद से ही स्कैमर्स लोगों के साथ ठगी करते हैं.